Sunday, October 31, 2010

रविवार यानी खर्चे का दिन

ज्योतिष मे विश्वास करने वाले मित्रगण इस बात पर यकीन कर सकते है जो मै लिखने जा रहा हूं बाकि का पता नही क्या सोचेंगे।मेरी जन्मकुंडली जोकि कन्या लग्न की है बारहवें घर मे भगवान सूर्यदेव दैत्यगुरु शुक्राचार्य के साथ विराज़मान है। सूर्य-शुक्र की यह युति धनाढय बनाती ऐसा दावा ज्योतिषी करते है। अपने अल्प ज्योतिष के ज्ञान के आधार मै इस युति के सन्दर्भ मे इस निष्कर्ष पर पहूंचा हूं कि चूंकि कुंडली का बारहवा घर खर्चे का है सो सूर्य देवता के दिन यानि रविवार के दिन मै अपने अन्दर एक खास तरह की खर्च करने की बैचेनी महसूस करता हूं यदि मै इसको सायास इसको नज़रअन्दाज़ भी करना चाहूं तो कुछ ऐसे संयोग स्वत: बन जाते है कि इस दिन मै अपनी जेब जरुर ढीली करता हूं चाहकर भी खुद को रोक नही पाता हूं। यह बात मै पिछले एक साल से नोटिस कर रहा हूं जिससे मेरी ज्योतिष पर श्रद्दा और भी बढती ही जा रही है, बात केवल सूर्य देव के खर्चे करवाने तक ही सीमित नही है मै प्रतिदिन ग्रहों की अपनी कुंडली मे स्थिति को लेकर वैसा ही फल भी प्राप्त और तदनुसार अपना व्यावहार महसूस करता हूं।

आज मै सुबह दस बजे घर से निकल गया था बालके के लिए ड्रेस लानी थी और आपको यकीन नही आएगा मै ठीक दस बजने से पहले दुकान पर पहूंच गया और उसके लिए दो पेंट और जूते खरीद कर लौटा सर्दीयां आ रही है और अभी वो नेकर मे ही स्कूल मे जा रहा था सो मैने उसके लिए पेंट खरीदने का फैसला किया।

इसके बाद थोडी देर घर पर बैठने के बाद मेरे दिमाग मे फिर से खर्चे का कीडा काटने लगा मैने सोचा क्यों न एक फिरोज़ा रत्न की अंगुठी बनवा ली जाए मैने अपने रत्न वाले भईया को फोन किया और उसने कहा डाक्टर साहब! तुरंत आ जाओ अभी बन जाएगी फिर इसके बाद मै अपनी बाईक पर सवार पर हो कर हर की पैडी स्थित उसकी दुकान पर जाने के लिए निकला लेकिन आधे रास्ते मे बाईक ने चलने से मना कर दिया अजीब सा नखरा कर रही थी मतलब चलती-चलती रुक जाती थी और वो भी आधे रास्ते पर जहाँ दूर-दूर तक कोई मैकनिक भी नही है मै हैरान और परेशान बाईक को जैसे तैसे धकेलता हुआ चला जा रहा था तभी पीछे से देवदूत की भांति मेरे मित्र योगेश योगी,योगेन्द्र जी और डा.सुशील उपाध्याय जी अपने स्कूटर से आ गये उन्हे देखकर मुझे राहत भी मिली और शर्म भी लगी मैने बताया कि संभवत: बाईक का प्लग शार्ट हो गया है जिस पर उन्होने एक बार बाईक का प्लग चैक किया लेकिन कुछ हल नही निकला।

सुशील जी ने तो यहाँ तक कह दिया कि डाक्टर साहब यह बाईक आपकी काया के समक्ष कुतिया की माफिक लग रही है मै बस मन मसोस कर ही रह गया है वैसे 2011 मे मेरी बुलट लेने का मन है तब ही काया के अनुरुप वाहन जचेंगा।

खैर! धीरे-धीरे योगी जी ने मेरी बाईक को अपनी स्कूटर से जोडा और जैसे तैसे हम हाई वे से शहर मे दाखिल हो गये मैने अंतिम रुप से सडक पार करने के लिए एक बार फिर से बाईक स्ट्रार्ट की और वो बेशरम स्ट्रार्ट हो गई हो क्या गई फिर तो ऐसी दौडी कि रुकी ही नही मैने एक बार पीछे मुडकर देखा तो कही पर भी अपने साथी योगी जी नही दिखाई दिए एक बार मैने सोचा पीछे उनको देखकर आउं फिर लगा कि अब यह चालू हालत मे है सो पहले अपना काम निबटा लूं बाद मे योगी जी ने फोन भी किया मुझे लेकिन सच मे मुझे सुनाई नही दिया जब मै देखकर उनको काल बैक किया तो उन्होने शिकायती लहजे मे कहा कि वें मेरा मैकनिक की दुकान पर इंतजार कर रहे थे फिर मैने उनको अपनी मजबूरी बताई जिसे उन्होने मान लिया। मैने रत्न की दुकान पर बैठ कर एक फिरोज़ा उपरत्न की अंगुठी तैयार करवाई तथा वही धारण भी कर ली हालांकि विधि विधान से शुक्रवार को धारण करुंगा। इसके बाद घर आया खाना खाया और सो गया अभी अभी सो कर उठा हूं चाय पी और आपके साथ आज अपने अनुभव सांझे किए बस यही है आज का रोजनामचा जो ज्योतिष से शुरु होकर शाम की चाय पर खत्म हुआ...।
डा.अजीत

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