Tuesday, October 26, 2010

करवा चौथ

आज करवा चौथ है जब तक मेरा विवाह भी नही हुआ था तभी से मुझे पता नही इस व्रत से एक खास किस्म की चिढ सी है। इसमे मेरी कोई पुरुषवादी अहम की कोई भूमिका नही है बस पता नही क्यों मुझे आजके दिन अच्छा नही लगता है। चूंकि मै देहात की पृष्टभूमि का रहने वाला हूं इसलिए एक वजह यह भी है कि मैने कभी अपनी माताजी को यह व्रत करते नही देखा हमारे घर मे यह परम्परा हमारी पीढी की बहूओं ने शुरु की है मेरी दादी जी का तो अब तक यह मानना रहा है कि यह ब्राह्मण और बनियों त्योंहार है। क्षत्रिय कुल के महिलाएं अपने पति को राजतिलक लगा कर युद्द मे लडने और विजयी होने के लिए के भेजती थी जबकि आज कल उल्टा ही हो रहा है करवा चौथ के व्रत के नाम पर मेरी पत्नि मेरे प्राणों की रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करेंगी और अपनी स्वास्थ्य सम्बंधी दिक्कतों को नज़र अन्दाज करके सारा दिन मेरे लिए भुखी भी रहेगी यहाँ तक कि जल भी ग्रहण नही करेगी। ये सब बातें मुझे तकलीफ देती है मै उसके प्रेम एवं भावनाओं का सम्मान करता हूं इसलिए साक्षी भाव से इस दिन चुप ही रहता हूं वरना उसको बुरा लगेगा। सच कहूं तो मेरे प्राणों के लिए उसका ईश्वर के सामने गिडगिडाना मुझे ठीक नही लगता। आज के इस भौतिकवादी और प्रतिस्पर्धा के युग में दूनिया के रंगमंच से अपने अभिनय जितना नियत है उसको अदा कर चलते बनना ही बुद्दिमानी है सो ऐसे मे हमारे प्राणों और आयू की वृद्दि की प्रार्थना करके परोक्ष रुप से हमारी परेशानी बढा ही रही है अब ये बात कोई भारतीय पत्नि समझने से रही मै एकाध बार बहस भी की इस बात पर लेकिन हर बार मै असमर्थ रहा अपनी पत्नि को यह तर्क समझाने मे कि आयू बढाने की कामना करना आज के युग मे कोई अच्छी बात नही है बल्कि कष्टों को बढावा देना है।

मुझे नही पता कि कोई करवा भगवान है भी या नही लेकिन अपनी पत्नि की श्रद्दा देखकर मै चुप ही हूं क्यों किसी का दिल दुखाया जाए उस पर तुर्रा यह भी तो है कि ये व्रत भी तो मेरे लिए ही रखा जा रहा है सो नैतिक दबाव अलग से महसूस होता है।

अभी-अभी विश्वविद्यालय से लौटा हूं पत्नि ने नये कपडे पहन रखे है हालांकि सूट मुझे नही भाया और मैने उसको कह भी दिया जिस पर उसका उत्तर था कि आपको तो कोई चीज़ अच्छी लगती कब है खासकर मेरी...!

मैने कुछ नही कहा बस यह करवा चौथ पर अपनी पुराण कहने बैठ गया हूं अभी दिन सामान्य ही बीता है रात का पता नही कि कुछ खास हो जाए जिन्दगी अपने ढंग से रास्ते तलाश रही लेकिन पहले ये धुन्ध छंटनी भी जरुरी है जो मेरे चारो तरफ फैल गई है जिसे रायता फैलना भी कहा जा सकता है...। डा.अजीत

No comments:

Post a Comment