Monday, August 24, 2015

दोस्ती

'दोस्ती' के बहाने एक जरूरी बात:

दोस्ती दुनिया का एक खूबसूरत रिश्ता है। हम अपने दोस्त खुद चुनते है और इसलिए हमें दोस्ती के मामलें में शिकायत करने का हक नही बनता है। चाहे दुनिया आभासी हो या वास्तविक दोस्तों की उपस्थिति हमें एक ख़ास किस्म की अपनत्व भरी सुरक्षा प्रदान करती है।
कभी कभी कुछ अपरिहार्य कारणोंवश इस खूबसूरत रिश्तें पर ग्रहण लग जाता है यहां तक दोस्ती स्थगित हो जाती है या फिर टूट जाती है। मेरे ख्याल से बहुत ईगो सेंट्रिक होना,संवाद का अभाव, गलतफहमियों के बादल और एकतरफा अपेक्षाओं से यह रिश्ता कई बार उस स्थिति में चला जाता है जहां से वापसी सम्भव नही हो पाती है।
किसी भी परिस्थिति में दोस्ती टूटना जीवन की एक अप्रिय घटना होती है और हम भावावेश अतिरेकता में कुछ ऐसी बातें भी करनें लगते है जो नही करनी चाहिए।
जिस शख्स को आपने कभी अपना अच्छा दोस्त कहा होता है सम्बन्ध टूटने के बाद उसके बारे में तेजी से राय बदलती जाती है और हम कहीं न कहीं नकारात्मक होते चले जातें है।
मेरे हिसाब से दोस्त छूटने और दोस्ती टूटने पर हमें कम से कम इन बातों से बचना चाहिए ताकि खत्म हो चुके सम्बन्ध में भी एक न्यूनतम गरिमा बची रहे:
1. कभी किसी दुसरे मित्र के साथ टूटे रिश्तें की समीक्षात्मक चर्चा से बचना चाहिए। जिस दोस्त को आपने कभी अच्छा कहा होता है उसको बाद में बुरा कहने से भी बचना चाहिए।
2. प्रायः प्रसंगवश लोगबाग आपको उस दिशा में ले जा सकते है जहां आपके उस मित्र का संदर्भ जुड़ा होता है मगर आपको सख्त ऐतराज़ जताते हुए उस पूर्व मित्र की पीठ पीछे की निंदा आदि में न खुद शामिल होना चाहिए न किसी दुसरे को उसके बारें सामाजिक चटखारे का विषय बनाने की इजाजत देनी चाहिए।
3. कभी भी अभिधा/लक्षणा/व्यंजना या व्यंग्य की शैली में ऐसी कोई बात अपने स्तर पर न करें जिससे आपके पुराने साथी को कोई तकलीफ पहूँचे मेरे हिसाब से ऐसे बात करना कतई गरिमापूर्ण नही होता है।
4. किसी भी रिश्तें के टूटने की हमेशा द्विपक्षीय वजहें होती है इसलिए कभी खुद को न्यायोचित ठहराते हुए एकपक्षीय आरोपण न करें बल्कि आत्मालोचन करते हुए खुद के पार्ट पर हुई गलतियों का विवेचन करें ताकि किसी नए रिश्तें में आपसे उनकी गलतियों की पुनरावृत्ति न हो।
5. जिस दोस्त के साथ आपने अपना क्वालिटी टाइम शेयर किया होता है उसकी सुखद स्मृतियों को याद रखें गलती करना मनुष्य का स्वभाव है। राग द्वेष छल झूठ ये सब मानवीय वृत्तियाँ है जो किसी किसी व्यक्ति की सीमा बन जाती है। इसलिए कड़वी बातों को जीवन अनुभव और सुखद बातों को अपनी स्मृतियों का हिस्सा बनाएं।
6. यदि दोस्ती के आपके अनुभव अच्छे नही है या आपके दोस्त ने आपको पीड़ा भी पहूँचाई है तब भी उदारमना हो उसके व्यवहार को उसकी कमजोरी या सीमा समझते हुए क्षमाशील होते हुए आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि जीवन एक यात्रा है हम इसी तरह के अनुभवों से बहुत कुछ सीखते हैं।
7.  दुनिया की तरह मानवीय सम्बन्धो की लोच भी गोल है जो छूट गया है वो कभी न कभी फिर लौट कर आप तक जरूर आता है इसलिए जो आपके अस्तित्व का हिस्सा है वो आपसे अवश्य जुड़ेगा उसके जाने पर खेद न करें और जो आपके अस्तित्व की यात्रा का सहचर नही है उसे आप किसी भी ढंग से बाँध कर नही रख सकते हैं।
...निसन्देह जीवन में किसी को दोस्त बनाना और फिर उसका छूट जाना एक बेहद कष्टकारी और पीड़ादायक अनुभव होता है मगर कुछ सम्बन्धो की आयु नियति द्वारा भी निर्धारित करती है बाकि हम सब की मानवीय कमजोरियां यह तय कर देती है कि कौन कहां तक साथ चलेगा। दिन ब दिन जटिल होती दुनिया में साथ तो अक्सर मिल जाता है मगर साथी नही मिलतें है।
मुझे लगता है कि किसी भी जागरूक सम्वेदनशील मनुष्य को दोस्ती टूटने की दशा में भी एक खास स्तर से नीचे नही उतरना चाहिए दोस्ती नितांत ही व्यक्तिगत चीज है इससे जुड़े खराब अनुभवों को ढ़ोते रहना और सार्वजनिक करना मेरी दृष्टि में गरिमापूर्ण नही होता है।
इसी हवाले से दो शेर आप सबके नज्र करता हूँ:

जाने कौन सी मजबूरियों का कैदी हो
वो साथ छोड़ गया है तो बेवफा न कहो

ये और बात है के दुश्मन हुआ है आज मगर
वो मेरा दोस्त था कल तक उसे बुरा न कहो
राहत इंदौरी
© डॉ.अजित