Sunday, January 1, 2012

2012

साल का बीत जाना मेरे लिए ठीक वैसा है जैसे घडे से धीरे-धीरे पानी का रीत जाना क्योंकि हर नया साल अपने साथ नये सपने नई चुनौतियां लेकर आता है जिनमे से कुछ ही पूरे हो पाते है बाकि सभी ऐसे ही अधूरे पडे रहे जाते है। हर जाने वाला साल अपने होने की एक ऐसी जमानत होता है जिसमे हमारी खट्टी-मिट्ठी यादें दर्ज़ रहती हैं।

कल ही गांव से लौटा हूँ वैसे तो एकाध तकनीकि पर कम भरोसा करने वाले मित्रों ने 31 दिसम्बर को ही एसएमएस भेज कर अपनी शुभकामनाओं की औपचारिकता खत्म की क्योंकि कई बार 1 जनवरी को मोबाईल का नेटवर्क जाम हो जाता है लेकिन आज सुबह जैसे ही मैने अपने मोबाईल का स्वीच ऑन किया तुरंत ही कतार में खडे एसएमएस की झडी सी लग गई मैने सभी को एक-एक करके पढा और साक्षी भाव से पढता रहा इसे आप मेरी काहिली ही समझ सकते है कि मैने किसी को जवाब मे हेप्पी न्यू ईयर नही कहा हाँ मैने कल जरुर अपने दो गुरुजनों को मैसेज़ भेजे हर साल मै ऐसा ही करता हूँ इसके अलावा मित्रों/रिश्तेदारों को कोई मैसेज़ नही भेजा क्या करुँ मुझे दिल से ही ऐसी कोई प्ररेणा नही मिलती और मैने सायास कुछ करना नही चाहता हूँ।

अब थोडा कुछ 2011 के बारें मे बतिया लिया जाए बेचारा अब मेरे घर मे कुछ दिन तक बस कैलेंडर की शक्ल मे पडा रहेगा और फिर किसी दिन रद्दी वाले के साथ रवाना हो जायेगा। तारीख के हिसाब से तो मुझे कुछ ज्यादा याद नही है लेकिन एकाध बातों के साथ यह कह सकता हूँ कि यह साल भी अन्य सालों की तरह से औसत ही गुजरा पिछले कई सालों से या यूँ कहूँ सभी गुजरने वाले सालों में ऐसा कुछ खास नही घटा जिसका जश्न मनाया जाये और न ही ऐसा कुछ खोया जिसका अफसोस किया जा सके।

पिछले साल मे दो बडी घटना घटी मेरे जीवन मे एक तो 18 मार्च को मेरे यहाँ दूसरा बेटा हुआ और दूसर जून में मैने जर्नलिज़्म एंड मॉस कम्यूनिकेशन मे यूजीसी-नेट की परीक्षा पास की इसके अलावा मुझे इस बार अपनी तदर्थ नियुक्ति मे बढा हुआ वेतन भी मिला। इसके अलावा कुछ भी ऐसा खास नही हुआ जिसकी यहाँ चर्चा करुँ... इस 2012 में मेरे सामने कई चुनौतियां है कुछ प्रकट किस्म की और कुछ गुप्त प्रकट चुनौतियों से फिर भी एक बार निबटा जा सकता है लेकिन गुप्त किस्म की जो चुनौतियां होती है उनसे निबटना बेहद मुश्किल काम है।

खैर ! अभी तक तो कुछ रास्ता नज़र नही आ रहा है लेकिन दिल मे एक उम्मीद जरुर है कि शायद कुछ बीच का रास्ता निकल आयेगा और जीवन के घर्षण से कुछ राहत मिलेगी।

आखिर मे 2011 में जो सबसे बडी क्षति हुई है उसका जिक्र करता चलूँ थोडा दिल हल्का हो जायेगा 2002 में अपने मित्र बनें अभिषेक जी ने हमसे इस साल औपचारिक रुप से नाता तोड लिया मतलब आजकल वें अपने गर्दिश के दिन बेहद तन्हा होकर काटना चाहते है इसी सिलसिले मे वे पिछले एक साल से सम्पर्क शुन्य चल रहे है पिछले साल मे बमुशकिल दो बार ही फोन पर बात हो पायी और अब तो इसकी भी उम्मीद नही है क्योंकि कल ही मुझे एक मेरे मित्र ने बताया है अभिषेक जी अब जयपुर शिफ्ट हो गये है अपने मामा जी के पास।

अभिषेक जी के साथ का छूटना किसी सदमे से कम नही है पिछले एक साल मे कई बार ऐसा हुआ कि मन बेबस हो गया और टीस भर गयी बात करने का दिल्ली जाकर मिलने का बहुत मन हुआ लेकिन फिर अपने आप को रोक लिया क्योंकि जब अभिषेक ही हमारी शक्ल देखना नही चाहता तो फिर हम जबरदस्ती उसके लिए दिक्कते क्यों पैदा करें! बस निदा फाज़ली साहब की ये गज़ल सुनता रहा हूँ ना मुहब्बत ना दोस्ती के लिए वक्त रुकता नही किसी के लिए.... इसे सुनकर दिल को तसल्ली मिलती है।

रिश्तों के मामले में मै बडा निर्धन किस्म का रहा हूँ जो भी मिला दिल के करीब आया वही फिर अचानक दूर हो गया अब तो आदत सी हो गई है इस सब की...एक चीज़ और खुद के अन्दर महसूस कर रहा हूँ कि अब मन अविश्वासी सा हो गया है जल्दी से किसी बात पर यकीन नही कर पाता हूँ और लोग ये कहते है कि सीखने के लिए शंका को त्यागना पडेगा साथ ही विश्वास और समर्पण प्रदर्शित करना पडेगा लेकिन दिल है कि मानता नही...।

आज के लिए बस इतना ही आप सभी के लिए नववर्ष 2012 मंगलमय हो इसी शुभकामना के साथ विदा लेता हूँ.....।

डॉ.अजीत