Thursday, October 21, 2010

सेमीनार

आजकल अपने विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के तत्वाधान मे एक पर्यावरण विषयक अंतरराष्ट्रीय सेमीनार चल रही है सारा कैम्पस अकादमिक बारातियों से अटा पडा है कुछ चतुर और चटोरे किस्म के बालक इन तीन दिनों तक अंग्रेजी विभाग के ही मेहमान रहेंगे मतलब खासकर आश्रम मे रहने वाले विद्यार्थी इन तीन दिनों मे खुब माल-पूडी चाटे वो भी पूरी बेशर्मी के साथ अपने प्राध्यापकगणों से नजर चुराते हुए खाने के सभी आईटमस का स्वाद चखेंगे...बस यही एक उम्र है जिसमे लाज़ है कि आती नही बल्कि कल के किस्सों मे वे बडे गर्व के साथ अपनी इस फ्री भोजन की कलाकारी का बखान भी करेंगे कि कैसे वें साधिकार सेमीनारो के भोज्य अतिथि हुआ करते थें।

कुछ विदेशी प्रतिनिधि भी आए हुए है सभी हमारे ऐतिहासिक विश्वविद्यालय की खातिरदारी से अभिभूत है लेकिन कमबख्त बिसलेरी की बोतल है कि उनका साथ नही छोडती। भारत का पानी हज़म करने के लिए बडा खास किस्म का जिगरा चाहिए होता जो केवल भारतीय ही आसानी से कर पाते है कई बार तो उनके भी मरोडे उठने लग जाते है।

आज मैने कुछ अपने काम निबटाए मसलन छोटे भाई का ई टिकिट बनवाया और एक टिकिट खुद अपने सिस्टम से बुक करके देखा और वो हो भी गया कमाल की चीज़ है ये इंटरनेट भी घर बैठे सब काम तमाम हो जाते है यह टिकिट बुक करके मैने अपने अन्दर एक अतिरिक्त आत्मविश्वास महसूस किया वरना अपने ट्रेवल एजेंट पर आश्रित रहना पडता था उसका कमीशन अलग से देना पडता था। कुल मिला कर मामला निबट गया अच्छी तरह से और मैने एक नई चीज़ सीख भी ली है अब अपने लेपटाप से ये क्रिया कर्म किया जाएगा।

अभी एक मित्र के साथ शनिवार को जालन्धर जाने का विचार है हम दोनो कनाडा जाने की तैयारी कर रहें है उसी सिलसिले मे एक मध्यस्थ व्यक्ति से मिलना है।अब इसके बाद देखा जायेगा कि क्या समीकरण बनतें बिगडते है।

अक्सर मेरे साथ ऐसा होता है कि जाने से पहले कोई न कोई भौतिक बाधा आ ही जाती है लेकिन इस बार मन पक्का है कोई बडी बाधा न हुई तो जाना पक्का है।
आज के लिए इतना ही कल की बातें कल...

डा.अजीत

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