Monday, October 11, 2010

नक्शानवीस

वैसे तो उसने वास्तुकला की कोई औपचारिक शिक्षा नही ली है और न ही वह पेशेवर है लेकिन उसके इस हुनर का मुझे तब पता चला जब मै अपने घर के भूखंड का (गांव वाले) नक्शा बनाने की निष्फल कोशिस कर रहा था तब मेरे पत्नि ने इस तकनीकि कला मे अपना निष्णात होने का परिचय दिया और उसने बेटे के ज्योमिट्री बाक्स की मदद से हमारे घर के भूखंड एक त्रुटिरहित नक्शा तैयार करके मेरे हाथ मे थमा दिया वह भी हरिद्वार मे रहते हुए मात्र अपनी स्मृति के आधार पर...। मै हैरान था उसकी इस कला यदि सही समय पर उसको इस दिशा मे प्रोहत्सहान मिल गया होता तो वो एक बेहतरीन आर्किटेक्ट बन सकती थी अब बेचारी मेरी पत्नि है जिसके होने का अपना कोई सामाजिक गौरव नही हैं।

दरअसल मुझे यह नक्शा अपने एक वास्तुविद मित्र को भेजना है हमारे पैत्रक मकान मे कुछ गंभीर किस्म का वास्तुदोष है गांव मे जब-जब जाना होता है बडी नकारात्मक ऊर्जा महसूस होती है जिसके निवारण के हेतु मुझे उनका परामर्शन चाहिए था अब नक्शा बन गया सो कल उनको इसे स्कैन करा कर मेल कर दूंगा।

आज का दिन कुछ खास नही रहा चूंकि हमारे हेड साहब आजतक की छुट्टी पर थे सो मै जल्दी ही घर भाग आया विश्वविद्यालय मे बडी मायूसी और उदासी सी पसरी हुई थी क्योंकि अधिकांश छात्र दशहरे के लिए अपने-अपने घर चल गये है सो छात्रों के टोटे मे मेरे जैसे तदर्थ प्राध्यापक को नींद ही आएगी और सच बताउं आ भी रही थी इसलिए मै जल्दी घर आ गया और आदतन भरपेट खाना खाने के बाद निन्द्रा के आगोश मे खो गया शाम को ही आंखे खुली...फिर से एक बार अपने अस्तित्व को जोडता-तोडता हुआ मै खडा हो गया और बच्चों के लिए दूध,जूस आदि लेकर लौटा।

आजकल नवरात्र चल रहे है सो इन दिनों मेरे जैसे नास्तिक चटोरेजनो को एक बढिया अवसर मिल जाता है कुछ हटकर खाने का इसी परम्परा मे मैने दुकान से आधा किलो कुट्टू का आटा ले आया यह सोच कर कि आज शाम का भोजन इस व्रत वाले खाने से होगा हालांकि पत्नि ने पहले साफ मना कर दिया था कि यह सब कल बनेगा मै भी मान सा ही गया था लेकिन जब उसमे फ्रिज़ मे मेरे द्वारा लाई अमूल की दही का बडा पैक देखा तो शायद उसको मेरे उस खाने की वास्तविक जिज्ञासा का बोध हुआ और फिर उसने अभी-अभी मैने कुट्टू के आटे के परांठे दही और आलू की बिना हल्दी वाली सब्जी के साथ खाने के लिए परोसे...। सच बडा आनन्द आ गया और यह भी पता चला कि लोग कैसे इस कुट्टू के बल पर व्रत रख लेते हैं। बिना व्रत के व्रत के भोग का आज आनंद लिया गया है।

बस आज की यें ही दो बडी घटनाएं थी जिनका मैने उपर जिक्र किया है...दोनो अपना एक महत्व भी है और अर्थ भी अगर आप तक पहूंच पाएं तो एक सन्देश भी है...।

शेष फिर

डा.अजीत

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