Sunday, July 10, 2011

आमद

15 मई के सेवा विश्राम के बाद से अब फिर गुरुकुल मे अपने को स्थापित होने की जद्दोजहद शुरु होने की तैयारी चल रही है संभवत: अगस्त की प्रथम सप्ताह मे ही मेरे जैसे तदर्थ असि.प्रोफेसरगणो के भविष्य की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया शुरु होगी हर साल का वही पुराना झंझट...जिसमें अपने विभागाध्यक्ष की अनिच्छा के बावजूद भी मै किसी तरह से सेंध मारकर विभाग मे घुसने की जुगत मे लगा रहता हूँ पिछले साल तो एंट्री मिल गई थी इस बार किस मोर्चे पर लडाई लडी जाएगी इसके बार मे अभी कुछ कहा नही जा सकता है।

फिलवक्त घर मे छोटे बच्चे को संभालने मे भी मेरा छदम वक्त कट रहा है हालांकि पत्नि को इस बात की शिकायत है कि मुझे जितना गृहस्थी मे सहयोग करना चाहिए उतना मै नही कर पा रहा हूँ, उसे लगता है कि मै घरेलू कामों मे इसलिए हाथ नही बंटाता हूँ क्योंकि इसमे मेरा पुरुषवादी अह्म आडे आता है जबकि मै अकेला होता हूँ तो सारा काम खुद ही करता हूँ अब उसको कौन बताए कि जब मै अकेला होता हूँ तो प्रमादवश बमुश्किल एक वक्त ही खाना खाता हूँ...।

आजकल छोटा भाई भी साथ ही रह रहा है वो भी नौकरी की तलाश मे दर-बदर भटक रहा है मेरे एक रसूखदार मित्र की बिनाह पर मैने उसको यहाँ बुला लिया था ताकि कुछ सिफारिश से ही काम बन जाए लेकिन जब वक्त ठीक न हो तो अधिकांश प्रयास अकारथ चले जाते है ऐसा ही उसके साथ हो रहा है प्रदेश के एक प्रभावशाली काबीना मंत्री की सिफारिश के बाद भी काम नही बन सका है....बस यही कहूंगा कि सबका अपना भाग्य होता है उसके साथ ऐसा अक्सर होता रहा है कि ज़ाम लबो तक आतें-आतें छलक जाते है सो वह अब इसका अभ्यस्त हो चुका है। मेरे लिए यह एक मुश्किल वक्त मे प्रार्थना करने के जैसा है क्योंकि मै अपनी कनिष्ठजनों को परेशान देखकर कुछ ज्यादा ही परेशान हो जाते हूँ कुछ ऐसी ही फितरत है अपनी...।

मॉस कम्यूनिकेशन मे नेट पास होने के बाद से एक दूसरा भी विकल्प उभर रहा है सो अगर इस तरफ अवसर मिला तो कारंवा अब इसी दिशा मे कूच करेगा...वैसे मै भी अब उकता गया हूँ यहाँ मुझे वसीम बरेलवी साहब का एक शेर याद आ रहा है कि तुझे पाने की कोशिस इतना खो चूका हूँ मै कि अब तु मिल जाए तो मिल जाने का गम होगा...

येन-केन-प्रकारेण यह यथास्थिति खत्म होनी चाहिए...बस यही एक अभिलाषा है...।

आज बहुत दिनों बाद लिखा है इसलिए थोडी सी रौ नही बन पा रही है जल्दी ही अपनी औकात पर आता हूँ...।

डॉ.अजीत