Monday, November 1, 2010

सेलरी

आज मैने विश्वविद्यालय मे जाते ही वेतन के लिए भागदौड करनी शुरु कर दी थी क्योंकि 4 तारीख से छूट्टी पडने वाली है दीपावली की सो एक बार क्लर्क के लेवल से काम निकल जाए तो जल्दी ही बैंक पहूंच जाती है लेकिन आज की मेहनत जब सफल हुई जैसे ही मुझे एसएमएस मिला कि बैंक मे पहूंच गई है शाम को मै उस वक्त सो कर ही उठा था बस मूड रिफ्रेश हो गया और फिर मैने शुरु किया मुद्रा का तात्कालिक आवंटन जिस-जिस को देना था सभी को बांटता चला आया हूं बस अभी-अभी लौटा हूं।

इस बार मै दीपावली पर पहली बार अपने गांव नही जा रहा हूं पहली बार हरिद्वार मे दीपावली मनाई जाएगी, वैसे भी मुझे भी त्यौहारों का कोई खास शौक नही है बस महज़ एक औपचारिकता लगती है।

मैने आज ऐसा कुछ विशेष नही किया कि जिसकी चर्चा कर सकूं बस यूं ही दिन निकल गया मेरी बाईक मुझे कुछ जरुरत से ज्यादा परेशान करने मे लगी हुई है लगता है कि इसकी विदाई का वक्त आ गया है,जनवरी-फरवरी मे बुलट लेने का विचार है...। अब देखता हूं कि क्या होता है क्या नही।

डा.अजीत

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