Thursday, February 24, 2011

स्वामी रामदेव: दर्शन से नीति का सफर

भारतीय मीडिया और विशेषत: इलेक्ट्रानिक मीडिया अपने बालकीय व्यवहार से कईं बार हैरत मे डाल देता है पिछले कुछ दिनों से स्वामी रामदेव के भ्रष्टाचार और काले धन के विषय मे दिए गये ब्यानों और कांग्रेस के पलटवार को बडे ही चुटीले ढंग से दिखाया जा रहा है। यह वही मीडिया है जिसने स्वामी रामदेव को स्थापित कराने मे एक अभूतपूर्व भूमिका का निर्वहन किया था लेकिन आज जैसे ही उनके ब्यानों और कांग्रेस के पलटवार मे थोडी सी सनसनी दिखाई दी तो मीडिया ने इसे ऐसे प्रचारित किया जैसे उनके पास स्वामी रामदेव की सम्पत्ति की पता नही कौन सी एक्सक्लूसिव जानकारी हाथ लग गई है।

यह बात बहुत से लोग जानते है कि स्वामी रामदेव ने जब योग का प्रचार प्रसार शुरु किया था तब उनके पास इतना बडा तंत्र नही था,आर्य समाज़ की पृष्टभूमि के कारण गुरुकुल मे पढे हुए थें और गुरुकुल शिक्षा पद्दति मे योग शिक्षा का एक अनिवार्य अंग होता है आज भी गुरुकुल के ब्रहमचारी कठिन से कठिन योगासन आसानी से करते हुए देखे जा सकतें है।

इंडिया टूडे के मिसाल-बेमिसाल स्तम्भ मे उदय माहूकर की रिपोर्ट के साथ मीडिया ने उनका हाथ थामा था तब वें गुज़रात मे योग के शिविर लगाया करते थें,उसके बाद उन्होनें फिर कभी मुडकर नही देखा मीडिया ने उन्हें हाथो-हाथ लिया और उनको वह प्रतिष्ठा दिलाई जिससे खासकर हरिद्वार का संत समाज़ अभी तक वंचित था।

देश की बात बहुत बाद की है अभी तक हरिद्वार के अतीत व्यसनी लोग इस बात को हजम नही कर पायें कि कल तक जिस स्वामी रामदेव को वें साईकिल पर घुमता देखते थें वो अब हैलीकाप्टर मे घुमता है और उसके पास दूनिया का अत्याधुनिक आश्रम है। आज भी हरिद्वार में लोग उनके भूत की चर्चा करते पायें जातें है,और इसमे भी कोई दो राय नही है कि उनकी जितनी स्वीकार्यता देश भर में है हरिद्वार मे वें उतने ही सामान्य लिए जातें हैं।

निसंदेह स्वामी रामदेव ने योग के लिए जो कार्य किया है वह प्रशंसनीय है लेकिन इसके साथ उन्होनें व्यवसाय मे अपना हाथ आजमाया है इस बात को भी नकारा नही जा सकता है। आज योग,नैचरोपेथी,आयुर्वेद और हर्बल ट्रीटमेंट के नाम पर उनकी पुडिया मे इतना सामान है जिसको आसानी से बेचा जा सकता है।

देश की राजनीति शोध अध्ययन से नही चलती है शायद स्वामी रामदेव को इस बात का अन्दाज़ा नही था आज वें आकडों की भाषा बोलतें है जबकि इस देश का मतदाता भावनाओं के चक्कर मे वोट करता हैं। बुद्दिजीवी वर्ग पहले से ही एक मानसिक निराशा का शिकार है जिसे पता है कि इस देश मे कोई क्रांति नही हो सकती है। ऐसे मे स्वामी रामदेव की राजनीतिक पुनर्जागरण की बात को मीडिया और बुद्दिजीवी वर्ग मे कभी गंभीरता से नही लिया जबकि स्वामी रामदेव को अपने करोडों की संख्या मे अनुलोम-विलोम और प्राणायाम करते योग साधकों की वोट पावर पर गुमान हो गया है तभी तो वें शेर की तरह से दहाडतें और ललकारतें पाएं जाते हैं लेकिन यह भी उतना ही सच है कि उनके साधकों को ज्यादा दिलचस्पी अपने आरोग्य मे हैं और वे वोट और राजनीति की बात को उतनी रुचि से नही सुनतें है और योगी के मुख से आध्यात्मिक बातों के साथ अचानक राजनीति की कडवी बातें सुनने की उन्हें कोई ज्यादा चाह भी नही है। यह बस एक शिष्टाचार है,श्रद्दा है और विश्वास है जिसके चलते भीड के समर्थन का गुमान स्वामी रामदेव को होने लगता है,लेकिन इस भीड से उन्हे अप्रत्याशित रुप से वोट के रुप मे देशभक्त लोग मिल जायेंगे ऐसी उम्मीद करनी तो बेमानी ही होगी।

स्वामी रामदेव जिस व्यापक जन आन्दोलन के लिए जमीन तैयार करने की बात करतें है उसके सफल होनें के लिए अभी कई सवाल ऐसे है जिनके तार्किक जवाब खुद स्वामी रामदेव के पास भी नही है। मसलन भारतीय राजनीति का पुनर्जागरण कैसे होगा? भ्रष्टाचार कैसे दूर होगा और इसकी मान्य परिभाषा क्या है? क्या आगामी लोकसभा चुनाव मे भारत स्वाभिमान ट्रस्ट अपनी उम्मीदवार चुनाव मे उतारेगा या किसी राजनीतिक दल का समर्थन करेगा....आदि-आदि।

इस देश की अवाम के मिज़ाज को समझे बिना कोई बडे दावे करना एक प्रकार का अति उत्साह और जल्दबाजी ही है जैसा कि स्वामी रामदेव कर रहें है। सबसे बडी बात यह है कि यदि उनके भक्तों की श्रद्दाभाव को एक तरफ रख कर तटस्थ भाव के साथ स्वामी रामदेव के सेवा प्रकल्प पातंजलि योग पीठ के स्वरुप और कार्य विस्तार को देखा जाए तो जेहन मे कई तीखे सवाल उठतें है।

ऐसे ही कुछ सवालों की बानगी देखिए:

  • स्वामी रामदेव योगी से ज्यादा ब्रांड एम्बेसडर बन गये है, आपके उनके योग शिविर मे पातंजलि आयुर्वेद की औषधियों का प्रचार प्रसार बखुबी देख सकतें है।
  • हमेशा आम आदमी की बात करने वाले स्वामी रामदेव जो अक्सर एक आम आदमी की पीडा को अपनी पीडा बडे गर्व के साथ भी बतातें है उसी आम आदमी के अन्दर इतना मानसिक और सामाजिक साहस नही है कि वो पातंजलि योगपीठ की भव्य ओपीडी मे अपने ईलाज़ के घुस भी सके। बीपीएल तो बेचारा मेन गेट से भी एंट्री नही कर पायेगा। हो सकता है कि सरकारी खाना-पूर्ति के लिए कुछ गरीब लोगों के ईलाज़ का दावा उनका संस्थान करता हो।
  • स्वदेशी आन्दोलन और राजीव दीक्षित के आंकडो के बल पर स्वामी रामदेव स्वराज्य की अवधारणा और ग्रामोद्योग को पुनर्जीवित करने का बीडा उठायें हुए है लेकिन उनके आश्रम मे लगभग एक दर्जन से ज्याद विदेश से दान मे मिली गाडियां है जो उनके विदेशी भक्तों ने दान मे दी और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण तो खुद मित्सुबिशी की मोंटेरो कार का प्रयोग करते है। ऐसे मे एक जागरुक आदमी को यह बात बडी अखरती है कि देश मे स्वदेशी का ढिंडोरा पीटने वाले स्वामी रामदेव खुद विदेशी कम्पनियों की कारों का प्रयोग करते है और ये विदेशी वाहन उनके आश्रम की शोभा है तो फिर करनी और कथनी मे अंतर क्यो?
  • स्वामी रामदेव के पुराने साथी और तथाकथित रुप साधना के सहयोगी रहे स्वामी कर्मवीर ने उन्हें क्यों छोड दिया जबकि पातंजलि और दिव्य योग मन्दिर के शुरुवाती दिनों के सहयोगी रहे स्वामी कर्मवारी की छवि बडे ही ईमानदार और त्यागी साधक की रही है। स्वामी कर्मवीर का आरोप यह था कि स्वामी रामदेव ने योग का व्यवसायीकरण कर दिया है और आम आदमी तक योग पहूंचाने की उनकी कवायद अब पीछे छूट गई है वें अब मास के नही लिए नही क्लास के लिए उपलब्ध रहतें है। रोचक बात यह भी है कि स्वामी कर्मवीर ने उन्हें तब छोडा जब स्वामी रामदेव का योग कैरियर चरम था ऐसे मे वें निस्वार्थ थें यह बात तो स्पष्ट होती है।
  • स्वामी रामदेव,आचार्य बालकृष्ण और स्वामी कर्मवीर तीनों ने अपने शुरुवाती दिनों मे कनखल,हरिद्वार स्थित दिव्य योग मन्दिर मे आश्रय पाया था तथा यहीं से इन्होनें अपनी योग यात्रा आरम्भ की थी। स्वामी कर्मवीर के संस्थान छोड जाने के बाद दिव्य योग मन्दिर के मालिक और स्वामी रामदेव के गुरु रहे शंकर देव अपना पुराना मन्दिर छोड कर कहाँ चले गये इस बात का पता आजतक नही चल पाया है स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण सार्वजनिक मंचो से यह घोषणा करते रहें है उनके करोडों भक्त उनके गुरु की तलाश करेंगे लेकिन आज तक उनका कुछ पता नही चल पाया है, सुना जाता है इनके गुरु भी इनके कार्यकलापों से खिन्न हो गये थें।
  • योग शिविर के बडे-बडे मंचो से स्वामी रामदेव देश के भ्रष्टाचारी नेताओं के खिलाफ अपने व्यंग्यबाणों से वार करते नज़र आतें है लेकिन शायद यह बात कम ही लोग जानते है कि अपनी राजनीतिक पकड का प्रदर्शन का कोई मौका उन्होनें ने हाथ से नही जाने दिया है पातंजलि योगपीठ के विभिन्न सेवा प्रकल्पों के शिलान्यास या अनावरण समारोह में स्वामी रामदेव नें हर बार दर्जन भर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को हरिद्वार बुलाकर यह सन्देश देना चाहा है कि उनकी पकड कहाँ तक है? एक बार के कार्यक्रम मे तो हरिद्वार के जिला प्रशासन ने भी इतनी बडी वीवीआईपी की फौज के प्रोटोकाल को मेंटेन करने मे अपनी असमर्थता जाहिर कर दी थी। इन बडे नेताओं मे वें चेहरे भी शामिल है जिन पर देश की अदालतों में घोटालों के मुकदमे भी चल रहें है। सिद्दांतो की बात करने वाले स्वामी रामदेव के यहाँ नेताओं की बडी फौज कई बडें सवाल खडे करती है और सन्यासी का उनका राजनीति से अनुराग का भी पता चलता है।
  • यह सच है कि भारतीय राजनीति के पुनर्जागरण के लिए स्वामी रामदेव कठिन परिश्रम कर रहे हैं और उन्होने सुख-सुविधा सब कुछ त्याग दिया है यहाँ तक की अन्न का सेवन भी नही करते है लेकिन उन्होनें अपने चेलो और खासकर कारपोरेट और अभिजात्य चेलो के लिए विलासिता के सभी साधन जुटाए हुए हैं लेकिन फ्री मे नही इसके लिए अच्छा खासा पैसा खर्च करना पडता है। योग ग्राम के नाम से कुटियानुमा आवास से युक्त एक अलग गांव उन्होनें विकसित किया है जहाँ योग,पंचकर्म,आयुर्वेद चिकित्सा के नाम पर अलग-अलग किस्म के पैकेज़ उपलब्ध है यही स्थिति उनके गेस्ट हाउस की भी है। योग ग्राम में उनके विदेशी अतिथि खुब आनंद करते है लेकिन सशुल्क।
  • विदेश से काला धन वापस लाने के लिए स्वामी रामदेव रात दिन अपने योग शिविर के माध्यम से अलख जगा रहे हैं लेकिन खुद स्काटलैंड में दान मे मिले आइसलैंड को योग हेरिटेज़ के रुप मे विकसित कर रहे है जिससे डालर/पाउंड कमाया जा सके इसके अलावा उनके पास ह्युस्टन मे भी दान मे मिली सम्पदा है। विदेशी संस्कृति को भारत के लिए घातक बताने वाले स्वामी रामदेव ने विदेश मे अपने पैर जमाने मे कोई कसर नही छोडी है। पातंजलि यूके और यूएसए के नाम से उनका संगठन काम भी कर रहा है।

....और भी बहुत से विषय है जिनका यहाँ जिक्र नही किया गया है सवाल बस यही उठता है कि देश के भोलेमानस जिस श्रद्दा के साथ स्वामी रामदेव को योग ऋषि और सन्यासी मानकर उनका अनुशीलन कर रहें है उसके हिसाब से स्वामी रामदेव की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वो अपने जीवन मे सिद्दांत,त्याग,शुचिता और पुनर्जागरण जैसे भारी भरकम शब्दों का प्रयोग करने से पहले अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को भी समझें और अध्यात्म के साथ व्यवसाय को जोड कर आम आदमी से किसी क्रांति की अपेक्षा न करें। भ्रष्टाचार,गरीबी और बेरोज़गारी से जुझता यह भारत देश और इसकी करोडों जनता स्वामी रामदेव की तरफ एक आशा भरी निगाह से देख रही है ऐसे आप ब्यानबाजी और विवादों के चक्कर मे न पडते हुए कुछ सार्थक कार्य करना चाहिए तथा जो उन्होनें लोगो को स्वप्न दिखाया है उसी दिशा मे सोचना और कर्म करना चाहिए तभी उनका और देश का भला हो सकता है अन्यथा उत्थान और पतन की कहानियों से इस देश का इतिहास पटा पडा है और उनके हितचिंतक/प्रशंसक यह कभी नही चाहेंगे कि स्वामी रामदेव कभी इतिहास का विषय बन जाएं....।

डा।अजीत

Thursday, February 17, 2011

इंटरव्यूव

ये तकरीबन 2009 की बात है जब मुझे सुबह-सुबह मेरे एक शुभचिंतक ने फोन पर यह सूचना दी कि जिस पद पर मै तदर्थ काम कर रहा हूँ वह पद विश्वविद्यालय मे स्थाई नियुक्ति के लिए प्रकाशित किया है। निसंदेह मेरे लिए यह एक उत्साह देने वाली खबर थी फिर मैने पुरे मनोबल के साथ इस पद के लिए विधिवत ढंग से आवेदन भी किया,धीरे-धीरे वक्त गुजरता गया इस उम्मीद पर कि जल्दी ही साक्षात्कार आयोजित होंगे और मुझे भी अपनी किस्मत आजमाने का मौका मिलेगा लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुरे दो साल बीत जाने पर भी आजतक उन पदों की नियुक्ति के लिए कोई कदम नही उठाया जिससे मुझे खासी निराशा हो रही है।
बीच-बीच एकाध बार अफवाह की शक्ल मे यह सूचना भी मिलती रही कि बस अब अगले महीने साक्षात्कार होने ही वालें है। इसी दौरान यह एक बडा परिवर्तन हुआ कि इस शैक्षणिक सत्र से मेरे विभाग के विभागाध्यक्ष दूसरे प्रोफेसर बन गये हैं मतलब पहले हेड मेरे गुरुजी थे अब उनका टर्म तीन साल बाद ही आयेगा। वर्तमान हेड और मेरे गुरुजी मे छत्तीस का आंकडा रहा है वैचारिक स्तर पर सो यह भी एक मुश्किल हालत रही है मेरे लिए लेकिन जैसे तैसे मै अपने तदर्थ रुप काम करने मे सफल रहा अन्यथा वर्तमान हेड साहब को मेरी शक्ल पसंद नही है।
इस बडी भूमिका लिखने का प्रयोजन यह है कि अब फिर यह खबर छन-छन कर आ रही है कि आगामी मार्च-अप्रैल में विश्वविद्यालय साक्षात्कार की एक श्रृंखला आरम्भ करने जा रहा है जिसमें अपने वाले पद का भी नम्बर आयेगा इस बार खबर कुछ पुष्ट सुत्रों से आ मिली है सो फिर से एक मानसिक हलचल से गुज़र रहा हूँ। जब यह पोस्ट प्रकाशित हुई थी तब मेरे गुरुजी हेड थें तब तो साक्षात्कार हुए नही जिसमें मेरे चयन होने के प्रबल संभावना भी थी और अब जब दूसर खेमे के हेड है तब साक्षात्कार का आयोजन हो रहा है। हालांकि मै बडी शिद्दत से इस दिन का इंतजार कर रहा था क्योंकि अब मै जीवन मे एकतरफा होना चाहता हूँ तदर्थ ज़िन्दगी जीते-जीते चार साल होने को जा रहें है।
बहरहाल, अब देखतें है कि क्या होता है? आपको बताता चलूँ कि फिलवक्त हम विभाग में तीन असि.प्रोफेसर है जो तदर्थ रुप से कार्य कर रहें है और तीनों ही यहाँ स्थाई होने के प्रबल अभिलाषी हैं अब देखतें है कि किसका सितारा चमकता है और कौन गेम से आउट होता है। सबके अपने-अपने समीकरण है और स्थाई होने के अपने-अपने तर्क।
जैसे ही इस संभावित साक्षात्कार की कोई नियत तिथि मेरे संज्ञान मे आती हैं मै फिर से आवारा की डायरी के कुछ पन्ने काले करुंगा सो अब के लिए इतना ही...।
तब तक हो सके तो मेरे लिए दुआ कीजिए....।
डा.अजीत

Wednesday, February 2, 2011

बात तज़रबे की...

वैसे तो मेरे एक करीबी दोस्त के हिसाब से मै कमअक्ला और गैरतज़रबा कार इंसान हूँ जिसे अपनी कीमत का भी नही पता है लेकिन फिर भी मै अपने वजूद के बिनाह पर अब तक जो मुझे ज़िन्दगी ने सिखाया है उसी पर कुछ सुत्र वाक्य या नीति वचन टाईप का कुछ लिखने का मन है सो आज यह पोस्ट लिख रहा हूँ।

मेरी ज़िन्दगी के कडवे मिज़ाज,हमसफर की बेरुखी और दूनियादारी की कम समझ होने के साथ ज़ज्बाती होने की जो सज़ा मुकर्रर की गई है उसी का फलसफा यहाँ हिस्सों मे पेश कर रहा हूँ यह मेरी शाश्वत भटकन का प्रतीक है और अपने जैसे किसी की तलाश का परिणाम भी...। इसे मेरे द्वारा किसी व्यक्ति विशेष का चरित्र चित्रण अथवा व्यक्तिगत अनुभव का सारांश न समझा जाए बल्कि इसका अर्थ अधिक व्यापक एवं सम्रग है...मै ऐसा समझता हूँ....।

अथ कथारम्भे:

  1. दूनिया मे अपने जैसा कोई और भी होगा ऐसा सोचना सबसे बडी मूर्खता है लोग अपने जैसे प्रतीत होतें है लेकिन होता कोई नही।
  2. ऐसे आदमी से सदैव सावधान रहना चाहिए जिसके पास खोने के लिए कुछ भी न हो।
  3. किसी के लिए अपने सपनों के साथ समझौता किसी हालत मे नही करना चाहिए वरना ज़िन्दगी भर एक कसक बनी रहती है।
  4. विश्वास मत करो संदेह करो डेकार्ते यह दर्शन ज्यादा प्रेक्टिकल है जिसे अक्सर भावुक लोग नकार देते है।
  5. अपने अतिरिक्त किसी से भी वफा की उम्मीद करना बेमानी है, सबकी अपनी-अपनी मजबूरी होती हैं।
  6. कच्ची भावुकता और परिपक्व संवेदनशीलता मे फर्क करना जितनी जल्दी सीख सको सीख लेना चाहिए वरना आप अक्सर रोते हुए पाए जाते हैं और हालात आप पर हँसते है।
  7. मित्रता के साथ कभी सामूहिक व्यवसायिक प्रयास की सोचना भी मूर्खता है अंत मे न दोस्ती नसीब होती है और न ही कुछ व्यवसायिक काम सिद्द होता है।
  8. अक्सर लोग आपका ज्ञान आपसे सीखकर आपके सामने ही बडी ही बेशर्मी के साथ बघार सकने की हिम्मत रखते है सो इसके लिए मानसिक रुप से तैयार रहना चाहिए।
  9. आप किसी के लिए सीढी बन सकतें लेकिन मंजिल कभी नही अक्सर लोग एक पायदान का सहारा लेकर उपर चढ जाते हैं और आप जडतापूर्वक यथास्थान खडे हुए रह जातें है।
  10. रंज,मलाल,अपेक्षा और अधिकारबोध ऐसे भारी भरकम शब्दों को समझने की मैंटल फैकल्टी लोगो के पास होती ही नही है।
  11. रिश्तों मे अपनी जवाबदेही अक्सर कम ही लोग समझ पातें है दोषारोपण बेहद आसान है लेकिन किसी की कमजोरियों के साथ उसका साथ निभाना बहुत मुश्किल काम है।
  12. सफलता सम्बन्धों का फेवीकोल है असफल लोग अक्सर एक साथ नही रह पातें है।
  13. अतीत व्यसन से बडा कोई दूसरा व्यसन दूनिया मे हो ही नही सकता यह आपको रोजाना जिन्दा करता है और रोजाना मारता हैं।
  14. दूनिया की सबसे बडी सच्चाई यही है कि आदमी इस भरी दूनिया में नितांत ही अकेला है,सम्बन्धो का हरा-भरा संसार एक शाश्वत भ्रम है।
  15. ....अभी बस इतना ही और भी बहुत सी बातें है लेकिन अगर मै सभी को लिखुंगा तो आपको लगेगा कि महान लोगों की उक्तियाँ टीप रहा हूँ।यह मेरा तज़रबा है अगर आप इससे कुछ सबक ले सकें तो मुझे खुशी होगी लेकिन यह सच है कि मैं आज तक नही ले पाया हूँ। आभार सहित... डा.अजीत