Thursday, July 10, 2014

बजट का गजट

लगभग सभी सरकारों की नजर में सस्ती ब्याज दरों पर फसली ऋण उपलब्ध कराना किसानों के हित एवं कल्याण का सबसे बड़ा कदम है। मुझे अफ़सोस होता है कि कर्जे के मकडजाल और सहकारी/सरकारी क्षेत्रों के बैंको में व्याप्त भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में किसान किस कदर फंसा हुआ है किसी को इसकी सुध लेने का समय नही है।
जेटली साहब ! महज सस्ता कर्ज किसानों की मदद नही करता है इससे तो उनका शोषण और बढ़ता है पहले तो आप अपने मंत्रालय के अधीन बैंको के कार्मिको और मेनेजरों का रिफ्रेशर कोर्स करवाईए उनको यह तमीज सिखाइए कि देश के अन्नदाता से किस तरह बात की जाती है आपकी ब्याज दर घटाने से उनकी खीझ और बढ़ती है ( न जाने क्यूं, शायद खुद को वेतनभोगी-टैक्स दाता अभिमान होता होगा) और उन्हें किसान में फ्री में लोन लेंने वाला दरिद्र जीव लगता है।
मै आर्थिक मामलों का जानकार नही हूँ परन्तु मेरी समझ में किसानों को सस्ती ब्याज दर पर ऋण देने की घोषणा सुनने पढ़ने में जरुर राहत भरी/लोकप्रिय लग सकती है परन्तु इससे कोई लाभ नही होगा। अगर मोदी सरकार सच में किसानों का भला करना चाहती है तो इन कुछ बिंदूओ पर जरुर सोचना चाहिए था गौरतलब है इन सुझावों को राज्य या केंद्र के अधिकार क्षेत्र में उलझाकर नही बल्कि एक कॉमन पालिसी के जरिए लागू करना चाहिए--
1. गन्ना मिल मालिकों पर गन्ना भुगतान के नियमित भुगतान की जवाबदेही बनाने के लिए एक केन्द्रीय आयोग/ट्रिब्यूनल बनाया जाए।
2. कृषि यंत्रो/कीटनाशक/अन्य कृषि रसायन पर सब्सिडी दी जाए तथा प्राइवेट कम्पनीयों की लूट रोकने के लिए इनके विपणन में सहकारी क्षेत्र को शामिल किया जाए।
3. ग्रामीण क्षेत्रों में सिचाई हेतु विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित की जाए और नहर/राजवाहों को फिर से पुनर्जीवित किया जाए।
4. कृषि उत्पादन के लिए मंडियों में आढतियों पर प्राइस मोनोपोली रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाए ( अधिकाँश आढ़ती किसान की उपज का मनमुताबिक़ भाव तय करवाते है और किसान को किस्तों में भुगतान करते है यदि किसान को अपनी कृषि उपज का तुरंत भुगतान चाहिए तो दो रूपये प्रति सैंकड़ा काट कर भुगतान करते है)
5. किसानों को विशेष पहचान पत्र जारी किए जाए तथा उन्हें कृषि कार्यो हेतु सब्सिडी पर डीजल उपलब्ध कराया जाए।
6. गाँव के स्तर पर एक प्रशिक्षित एग्री काउंसलर नियुक्त किया जाए जो किसानों को रोग,उर्वरक,कीटनाशक,जैविक खेती के बारें में परामर्श प्रदान करें। मिट्टी के परीक्षण के लिए ब्लॉक स्तर पर एक मोबाइल वेन हो जिसमे वैज्ञानिक खुद खेत पर जाकर मृदा के नमूनें एकत्रित करें और रिपोर्ट खुद किसानों तक पहूंचाए।

....बाकि आपके पास आईएएस/ कृषि आर्थिकी के जानकार लोगो की लम्बी फौज है उनको वातानुकूलित कमरों/ फर्जी सर्वो के आंकड़ो और गूगल की रिसर्च से बाहर निकलने के लिए कहिए ताकि वो किसानों की दरिद्र हालत से रुबरु हो सके ऐसे दिल्ली में बैठ कंप्यूटर पर बजट छापने से न आपकी सरकार का भला होगा और न किसानों का।

(बजट में किसानों के हित के मीडिया प्रचार पर एक किसान की गैर विशेषज्ञ टिप्पणी )