Thursday, December 13, 2012

ब्रेक



जिन्दगी की गाडी लम्बे समय से ब्रेक मारते-मारते ही चल रही है और इन्ही ब्रेक की श्रृंखला में मेरी तदर्थ से आमंत्रित व्याख्याता के रुप मे तब्दील हुई नौकरी में भी इस एक महीने का ब्रेक मिला है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने तीन महीने काम करने की अनुमति दी थी जो 30 नवम्बर को समाप्त हो गयी सो 1 दिसम्बर से बंदा निबट निठल्ला हो गया है।
एक तारीख से डिपार्टमेंट जाना बंद कर दिया है अब अल्टरनेट डे पर नहाता हूँ सारा दिन बिस्तर पर कम्बल में पडा रहता हूँ कमोबेश ज्यादा वक्त फेसबुक पर ही कटता है कभी-कभार दिल करता है तो कुछ पढ भी लेता हूँ।
ब्रेक मिलने का आर्थिक नुकसान वाला एक पहलू है लेकिन इसके अलावा मुझे यह भी नुकसान महसूस होता है वह है कि आपकी एक बंधी-बंधाई जीवनशैली बाधित हो जाती है फिर बहुत सी चीज़ें जो आपके रोजमर्रा की आदत का हिस्सा होती है वह छूट जाती है।
इस महीने मुझे घर पर रहने का एकमात्र लाभ यह मिला है कि मेरे कुछ काम पेंडिंग पडे हुए थे वह जरुर पूरे हो जायेंगे।
फेसबुक काफी समय और ऊर्जा ले लेती है इसके अलावा कुछ करने का मन ही नही होता है मुझे ज्ञात है कि यह उचित नही है लेकिन पहले भी बहुत सी अनुचित किस्म की जीवनशैली मै ऐसे ही जीता आया हूँ।
इस महीने के आखिरी हफ्ते में दिल्ली-जयपुर-अजमेर की यात्रा प्रस्तावित है हालांकि सर्दी बेहद ज्यादा हो रही है लेकिन फिर भी जाने की यथासम्भव कोशिस रहेगी यदि कोई भौतिक बाधा न रही तो जरुर यह यात्रा की जायेगी। दिल्ली में लगभग एक साल बाद कुछ सजातीय बंधुओं से मिलना होगा जिनसे परिचय फेसबुक के माध्यम से ही हुआ है हालांकि मेरे पहले मेल-मिलाप के अनुभव ज्यादा अच्छे किस्म के नही रहे है लेकिन फिर भी इस बार फिर से कुछ नये लोगों से मिलने का मन तो है।
बहरहाल, इस बेतरतीब सी जिन्दगी में फिलवक्त का एक भावी रोमांच यही बचा हुआ है कि जनवरी मे हमारे विश्वविद्यालय मे स्थाई नियुक्ति के लिए साक्षात्कार हो रहे हैं सो इस बार क्या तो मै स्थाई हो जाउंगा या फिर स्थाई रुप से विश्वविद्यालय से सेवाओं से मुक्त। पत्नि कुछ ज्यादा चिंतित है हालांकि मै भी सचेत हूँ लेकिन फिर भी पत्नि को लगता है कि यदि यहाँ नियुक्ति नही हुई तो फिर 5 साल से जो तदर्थ साधना चल रही थी अध्यापन की वह भी व्यर्थ चली जायेगी जो सच भी है यदि इस बार यहाँ अपने विश्वविदयालय में कुछ नही हुआ तो फिर यहाँ सम्भावना शेष भी नही बचेगी।
मेरे लिए मनोविज्ञान के अध्यापन की दिशा में स्थाई होने की यह अंतिम अवसर होगा क्योंकि मै इसके बाद फिर मनोविज्ञान मे मास्टरी के लिए प्रयास भी नही करुंगा फिर कहाँ करुंगा (मास कॉम अथवा हिन्दी) कुछ कह नही सकता हूँ।
आने वाला नया साल कई अर्थों में नया होगा यह जीवन की दशा और दिशा तय कर देगा ऐसा मेरा पूर्वानुमान है वह भी जनवरी के पहले पखवाडे तक ही इसके बाद क्या होगा वह न मै जानता हूँ और न कोई और।
मन निर्मूल आंशकाओं से भी भरा रहता है जब आपके अतीत के अनुभव कडवे किस्म के हो तो फिर कुछ सहज़ रुप मे मिल जायेगा इसकी आशा दिल नही कर पाता है इसलिए मुझे भी लग रहा है कि संघर्ष बडा है इस बार लेकिन फिर भी मै भयभीत नही हूँ बल्कि एक रोमांच भी है दिल मे कि जो भी होगा जीवन का एक स्थाई फैसला तो होगा।
जनवरी में जो भी होगा वो देखा जायेगा और फिर उसके बाद ही जीवन को किस दिशा मे ले जाना है वह देखा जायेगा सो फिलहाल यही सब चल रहा है।

शेष फिर
डॉ.अजीत