Friday, November 25, 2011

बाईसकोप

जीवन मे अपनी प्रासंगिकता तलाशने के लिए कितने जतन करने पडते है इस बात का अन्दाज़ा आज तब लगा जब तमाम उपाधियों योग्यताओं के बाद भी एक अदद स्थाई नौकरी के लिए जद्दोजहद बढती ही जा रही है पिछले सप्ताह कश्मीर गया था श्रीनगर मे एक नई सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनी है उसके पत्रकारिता विभाग में असि.प्रोफेसर पद के साक्षात्कार था। ओबीसी श्रेणी में अपना नाम था लेकिन दो दर्जन लोग आये थे लगभग कुल मिलाकर सामान्य और आरक्षित वर्ग के लोगो सहित कश्मीर मूल के लोगो से मिलना सुखद अनुभव रहा लेकिन पहली बार अपने देश मे परदेस का बोध भी हुआ जिस भारतीयता के तमगे को हम अपने माथे से चस्पा किए हुए गर्व के साथ घुमते रहते है वहाँ के बाशिन्दों के लिए वह एक जहीन से गाली से बेहतरीन कुछ नही है।

एक और बडी बात पता चली कि हिन्दी भाषी होना अपनी हिन्दी पट्टी तक तो ठीक है लेकिन शेष देश मे यह किसी काम की नही है जिस विश्वविद्यालय मे मेरा साक्षात्कार होना था वहाँ पढाई का अंग्रेजी माध्यम है और साक्षात्कार का भी ऐसे मे मेरे जैसे हिन्दी भाषी के सामने बडा धर्म सकंट था भले ही मेरे पास यूजीसी का नेट क्वालीफाई सर्टिफिकेट है लेकिन यदि अंग्रेजी मे धाराप्रवाह बोलना नही आता है तो वह महज़ एक कागज़ का टुकडा भर है।

अब उम्र के पकने की प्रक्रिया के साथ एक जतन यह भी करना कि अंग्रेजी बोलना आना चाहिए अपने आप मे बडी अजीब सी समस्या है मित्र भी सलाह दे रहें है कि यदि उच्च शिक्षा जमे रहना है तो अंग्रेजी पर अधिकार होना ही चाहिए उनकी बात तार्किक रुप से ठीक है लेकिन मेरी मानसिक स्थिति अभी तक इस बात के लिए तैयार नही है कि मै किसी इंगलिश स्पीकिंग कोर्स को ज्वाईन करुँ।

आज शाम ऐसे ही बेतरतीब ढंग से घुमता रहा अपनी कुछ खासो औ आम दोस्तों से अपनी फिक्रे तमाम करता रहा आज बहुत दिनों बाद आवारा की डायरी लिख रहा हूँ कमबख्त फेसबुक ने सारा वक्त और ऊर्जा चूस लिया है चाहकर भी वहाँ से मुक्त नही हो पा रहा हूँ जबकि वहाँ ऐसा कुछ भी नही है जिससे दिल को राहत मिलती हो बस कमेंटबाजी का चस्का है और कुछ भी नही....। मेरे करीबी दोस्त सुशील जी भी काफी निराश है कि मै ब्लॉग पर नियमित रुप से लिख नही रहा हूँ वें इस ब्लॉग के नियमित पाठक थे उनका कहना है कि फेसबुक पर लिखना अखबार में लिखने जैसा है जबकि ब्लॉग लेखन किताब लिखने जैसा है मै उनकी बात अक्षरश: सहमत हूँ। अब मेरी कोशिस रहेगी कि बिना गैरहाजिरी के लिख सकूँ।

आज मन अजीब सा बेबस और अनमना है सो ज्यादा नही लिख रहा हूँ कुछ ऊर्जा की जरुरत है जिसकी कमी लम्बे समय से महसूस कर रहा हूँ अपने को रिक्लेक्ट करके जल्दी ही हाजिर होता हूँ...!

शब्बा खैर !

डॉ.अजीत