Monday, May 16, 2011

वीआरएस

वीआरएस शब्द केन्द्र की समवर्ती सूची का विषय हो सकता है लेकिन अपने लिए एक सस्ता प्रहसन है जिसमें एक आत्म व्यंग्य छिपा हुआ है । तो जनाब मसला यह है कि जिस विश्वविद्यालय मे बतौर असि.प्रोफेसर मै पिछले चार सालों से पढा रहा हूँ वहाँ पर 15 मई को शैक्षणिक सत्र का आधिकारिक अवसान हो जाता है सो काम के बदले अनाज़ योजना की भांति इस तारीख के बाद विश्वविद्यालय के पास न हमारे लिए कोई काम बचता है और इसके बदले हमे दाम देने की जिजिविषा सो विश्वविद्यालय की छदम गौरवमयी साढे नौ महीने की नौकरी के बाद मेरे जैसे लगभग 100 तदर्थ लोगो को विश्राम दे दिया जाता है। यह विश्राम अवैतनिक होता है फिर से नये शैक्षणिक सत्र में विभागाध्यक्ष की कृपा/अनिच्छा/षडयंत्रों और एक लम्बी सस्ती किस्म की लडाई लडने के बाद फिर से अगस्त मे हमें सेवा मे ले लिया जाता है। इस दो ढाई महीने मै तो खानाबदोशी करता हूँ क्योंकि खुद को समय मिल जाता है एक नई लडाई और जद्दोजहद से लडने के लिए ऊर्जा समेट लेता हूँ। हर बार जिस दिन यह सत्रावसान का यज्ञ होता है मै संकल्प लेता हूँ कि ईश्वर करें मेरा यह आखिरी सत्र हो और मित्रों के बीच मे बैठ कर बडे-बडे दावें करता हूँ कुछ हठकर करने के....लेकिन अंतोत्गत्वा फिर से यही लौट आता हूँ और पुनश्च: नौकरी पाने की कुकर परिक्रमा में सबसे आगे कृपांकाक्षी बनकर घुमता हूँ।

सो कल एक दिन पहले ही अपना वीआरएस विश्वविद्यालय ने थमा दिया था क्योंकि आज रविवार था। दिन भर कुछ जबरदस्ती की व्यस्तता के बोध को बनाए हुए कुछ आम काम निबटाए फिर बेतरतीब ढंग से पसर गया घर आकर आजकल बालक गांव गये हुए है सो निपट अकेला हूँ वैसे तो अब अकेलेपन मे भी मज़ा आने लगा वरना एक वक्त हुआ करता था कि मूतने भी अकेले नही जाता था नहाने-हगने-मूतने का काम सामूहिक ही हुआ करता था और ऐसा कभी सोचा ही नही था कि ज़िन्दगी इस मोड पर ले आयेगी कि गिनती के लिए एक भी दोस्त का नाम जबान पर नही मिलेगा।

जिन्दगी अप्रत्याशित होने की जिद पर उतर आयी है मै भी देख रहा हूँ कि कैसे-कैसे रंग देखेने को मिलतें हैं। आज का दिन भी यूं ही बैठे बिठाए कट गया 18 को लखनऊ जाना है एक कानूनी लडाई के सन्दर्भ में फिर उसके बाद कारंवा किस दिशा मे जायेगा अभी कुछ नही पता है हाँ अभी केवल एक निर्धारित कार्यक्रम है कि संभवत: 25 मई को मै और डॉ.अनिल सैनी जी लुधियाना जा सकतें क्योंकि हमारा गोरखपुर जाने का पूर्ववर्ती कार्यक्रम निरस्त हो गया है। बातें तो सुशील जी से भी कुमायूं क्षेत्र मे जाने की हो रही है अब देखा जायेगा कि कब कार्यक्रम मूर्त रुप लेता है। मैने अभी तक अपने अनुभवों से यही सिखा है कि कुछ भी नियोजित मत करों जो भी होना होता है वह अपनी गति से घटित होता है उसमे अपना कुछ बस नही चलता है।

आज शाम एक पुराने हॉस्टल के परिचित का फोन आया था उसने एक मित्र की क्षेम-कुशल मुझ से जाननी चाही जिसका मुझे खुद भी नही पता है मै अब किस-किस की खबर रखुँ जबकि मैं खुद ही बेखबर जी रहा हूँ... फिर उसने एक बात ऐसी बताई जो सुनकर मै आधे घंटे तक बैचेन रहा...आखिरी ये दिन भी देखना था...!

खैर! अब मै ज्यादा विस्तार मे जाना नही चाहता हूँ क्योंकि अपने रिश्तों का ताना-बाना इस कदर उलझा हुआ है कि क्या सही है क्या गलत है इसका अभी फैसला करना मुमकिन ही नही है बस वैट एंड वाच की हालात ही बेहतर है।

आजकल अकेला रह रहा हूँ सो बडा अस्त-व्यस्त जी रहा हूँ न वक्त से ब्रेकफास्ट होता है और न ही डीनर बस सब कुछ अवसर और संयोग के सहारे पर निर्भर करता है। कल शाम को मै और मेरे मित्र डॉ.सुशील उपाध्याय जी का एक आत्मीय संवाद सत्र आयोजित होने जा रहा है फिर इसके बाद वे कल रात मेरी ही कुटिया पर प्रवास करेंगे सो कल ये वीरान चमन किस्सागोई से आबाद रहेगा...ये सोच कर आज रात नींद अच्छी आने के आसार हैं बशर्तें कोई पुरानी याद न छेड जाएं....।

शुभ रात्री( रात्री 11.02, 15/05/2011)

डॉ.अजीत