Monday, October 25, 2010

जालंधर- होशियारपुर

जब वक्त अनुकूल नही होता है तब ऐसे ही हालात बनते चले जाते है कि सकारात्मक प्रयास और उनकी ऊर्जा भी निरर्थक होती चली जाती है। उन दिनों मै गांव मे था जब मेरे मित्र डा.ब्रिजेश उपाध्याय का फोन मेरे पास आया कि उनकी जालन्धर के किसी ऐसे बन्दे से बात हुई है जो कनाडा जाने के वीज़ा दिलवाने का काम करता है, हम दोनो ही कनाडा का पी.आर.वीज़ा मतलब स्थाई निवास का वीज़ा लेने का प्रयास कर रहे है अब अपने देश और अपने लोगो से खासकर मेरा इतना मन भर गया है कि मै भाग जाना चाहता यहाँ से बहुत दूर....इतनी दूर जहाँ पर मै बेताल्लुक जी सकूं।

हम दोनो बडे उत्साह के साथ जालन्धर उस एजेंट से मिलने पहूंचे सारी रात का रेल का सफर काट कर वह हमे स्टेशन पर ही लेने आ गया था उसके लिए हम दो मूर्गे थे जिसका कीमा वो बनाना चाह रहा था। उसके तथाकथित घर पर ही हमारी मुलाकात हुई वैसे तो उसने दावा किया कि वह यूरोप से लेकर कनाडा यूएसए और देश भर मे घुम चूका है लेकिन बातचीत से ज्यादा पढा लिखा नही लग रहा था कभी-कभी अपने अंग्रेजी बोलने के ज्ञान का इनपुट दे देता था।

उसने हमारी शैक्षणिक योग्यता के बारे मे पूछा संभवत: उसको पहली बार हमारे जैसे पी.एच.डी.होल्डर क्लाईंट मिले थे हम अपने शोध पत्रों से लेकर विभिन्न अकादमिक उपलब्धियों का ब्खान किया लेकिन उसकी उसमे कोई खास दिलचस्पी नही थी बस वो डाक्यूमेंट देखता रहा हमने अपने सी.वी.सहित अपने सारे डाक्यूमेंट की एक-एक छायाप्रति उसको दे दी उसने बताया कि एक एक कापी नोटरी से सत्यापित करवा भेजनी पडेगी।

अब बात फीस की हुई तो उसने बडी सफाई से कहा एक बन्दे के एक लाख लगेंगे जिसमे उसका काम केवल एम्बेसी की वीज़ा हेतु कागजो की खानापूर्ति करेगा उसने साफ-साफ कह दिया कि कनाडा के हाई कमीशन मे मेडिकल और साक्षात्कार का पूर्णत: जिम्मेदारी हमारी खुद की होगी अगर उसमे फेल हुए तो फिर वो कुछ नही करा सकता है। हमने चाय पीते-पीते उसको यह बता दिया कि हम पी.आर. से ज्यादा पहले वहाँ नौकरी पाने के इच्छुक है जिस पर उसने अपनी असमर्थता जाहिर की और कहा कि मै वायदा नही करता लेकिन जो हेल्प हो सकती है वो करेगा।

कुल मिलाकर उसके काम के हिसाब से उसकी फीस बहुत ज्यादा थी सो हमने मन ही मन ये फैसला कर लिया था कि हम गलत बन्दे के पास आ गयें है वो दरअसल पंजाब के बेरोजगार युवाओं को कनाडा भेजने मे माहिर था खासकर लेबर स्किल्ड के लोगो को इतनी बडी डिग्री वाले लोगो की डील की उसको कोई जानकारी नही थी।

सारी बातचीत का सार यह रहा है हमने उसको अपने शेष कागजात भेजने का झुठा वायदा किया और उसके पंराठे का नाश्तें के औपचारिक आग्रह को विनम्रतापूर्वक मना कर दिया फिर उसने अपनी गाडी से हमे उस जगह पर छोड दिया जहाँ से हमे होशियारपुर की बस मिलनी थी।

होशियारपुर

मै पिछले साल से होशियारपुर आने का कार्यक्रम बना रहा था एक बार तो टिकिट भी बनवा लिए थे मैने और मेरे मित्र डा.अनिल सैनी जी ने लेकिन ऐन वक्त पर कुछ ऐसा घटित हो गया था कि हम लोग नही जा सकें थे। मैने सोचा जब जालन्धर तक आ ही गये है तो ये तमन्ना भी पूरी कर ली जाए यहाँ से मात्र 38 कि.मी.के आस पास है। होशियारपूर मै भृगु संहिता के सिलसिले मे आना चाहता था मुझे पता चला था कि फलित ज्योतिष के बडे प्रमाणिक ग्रंथ भृगु संहिता की मूल पांडूलिपियां यहा कुछ लोगो के पास संरक्षित है सो मै उनसे मिलना चाहता था।

बस मे खडे होकर लगभग 45 मिनट यात्रा की और होशियारपुर पहूंच गये। जिस भृगु शास्त्री के बारे मे मुझे पता था उनका नाम था श्री श्याम चरण त्रिवेदी। लगभग पचास रुपये रिक्शेवाले को देने के बाद उनके घर जाना हुआ,घर मे दो तीन भक्त लोग पहले से ही विराज़मान थे हमने अपना आने का मंतव्य बताया उस पर उन्होने कहा हमे पहले अपाईंटमेंट लेकर आना चाहिए था वैसे भी आजकल भगवान भृगु और विष्णु शयन मुद्रा मे है सो वें किसी भी प्रकार से उस ग्रंथ को पढकर कोई फलादेश नही बता सकते यहा जानकर मन खिन्न हुआ उन्ही के एक सेवक बार-बार आग्रह करने के बाद भृगु दरबार मे माथा टेका और फिर श्री श्याम चरण जी से संक्षिप्त वार्तालाप हुई।

मैने बताया कि मै परामनोविज्ञान पर अनुसंधान कार्य भी कर रहा हूं जिसे वें मेरी पी.एच.डी.की उपाधि के हेतु समझ बैठे और अपने समय का महत्व बताने लगे जिस पर मैने स्पष्ट किया कि आचार्य जी पी.एच.डी.तो मै चार साल पहले कर चूका हूं ये तो मेरी इस ग्रंथ और ज्योतिष की जिज्ञासा थी जो आपके यहाँ तक खींच लाई।

इसके बाद उन्होने बताया कि चार लोग और है होशियारपुर मे जिनके पास भृगु संहिता की पांडुलिपियां है उन्होने हमे सुझाव दिया कि हम एक बार सबके पास अपने जन्म कुंडली छोड दे जिसके भी ग्रंथ से वह मिल जायेगी वही फलादेश बताने मे सक्षम होगा।

मैने अपनी कुंडली,लग्न,राशि,लग्न और दशा आदि जो मुझे कंठस्थ था उनके नोट पैड पर लिख दिया जिस पर उन्होने आश्वासन दिया कि अगर उनकी पांडुलिपियों मे मेरी कुंडली मिली तो वें मुझे फोन से सूचित कर देंगे जिसका मुझे यकीन कम ही है। ब्रिजेश जी ने भी अपने जन्मादि की जानकारी लिख दी और फिर हमने वहाँ चाय पी कर विदा ली...।

यहाँ से भी निराशा ही हाथ लगी तभी मैने शुरु मे बुरे वक्त होने का जिक्र किया है फिर हमने होशियारपुर रेलवे स्टेशन पर लगभग आधे घंटे तक लोकल ट्रेन का इंतजार किया और ब्रेड पकोडे खाए उस समय भुख बडी तेज लगी हुई थी मैने साथ मे कोल्ड ड्रिंक भी पी..।

रात मे हमारी ट्रेन थी वह भी डेढ घंटा देरी से आई बस जैसे तैसे गिर पड कर आज हरिद्वार पहूंच गया हूं जिन्दगी फिर से पुराने ढर्रे पर चल पडी है। इस यात्रा के किस्से और भी है उनको लिखने बैठूंगा तो पोस्ट बहुत बडी हो जाएगी वैसी अब भी काफी विस्तार हो गया है।

शेष फिर

डा.अजीत

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