Sunday, June 15, 2014

कुछ वर्जन

नौकरी क्यों छोडी?
नौकरी नही छोड़नी चाहिए थी कुछ बीच का रास्ता निकालना चाहिए था।
इमोशनल होकर निर्णय लिया प्रेक्टिकल होकर सोचना चाहिए था तुम्हारा करियर सामने था सात साल की यूनिवर्सिटी में एडहोक जॉब रूपी साधना थी अब परमानेंट होने का नम्बर था।
तुम एक अतिसम्वेदनशील एकांतप्रिय चिन्तनशील प्राणी हो गाँव में जल्दी खुद को इररेलिवेंट फील करना शुरू कर दोगे।
तुम्हारा बड़ा बेटा शारीरिक चुनौतियों से जूझता है उसके पुनर्वास में तुम्हारी महत्वपूर्ण भूमिका है महान बनने के चक्कर में अपनी खुद की फैमली को क्यों दांव पर लगा रहे हो।
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(पिताजी के निधन और मेरी गाँव वापसी पर कुछ दोस्तों की सलाह,हितचिंता और नसीहतों के कुछ वर्जन )

---- रिश्तेदारों के वर्जन :
गाँव में तुम ही मेनेजमेंट देख सकते हो बड़ा भाई डॉक्टर है वो कुछ नही कर सकता है छोटे वाला इंजीनियर है उसको नौकरी करने दो तुम गाँव में रहो।
रिश्तेदारी में आना-जाना शुरू करो लोगो के जीने-मरने में शामिल हुआ करो अब मूंह मोडकर काम नही चलेगा।
जमीन में पोपलर के पेड़ लगवा दो।
बच्चें गाँव में रखो अपने साथ हरिद्वार अकेले छोड़ने ठीक नही है।
जीते जी जो पिताजी के विरोधी रहे अब पिताजी के जीवन से उदाहरण खोजकर हमारे लिए अपेक्षाओं के मानक तैयार करते है।

गाँववालों के वर्जन:
गली में आते-जाते सबसे राम-राम करते चला करो।
लोगो के सुख दुःख में शामिल हुआ करो।
लोगो के यहाँ उठ-बैठ के लिए जाया करो।
एक बड़ा वर्ग आपके परिवार में निष्ठा रखता है उनका हालचाल पूछते रहा करो।
इस पंचायत चुनाव में प्रधान का चुनाव लड़ना है उसकी तैयारी रखो।

देख लीजिए मित्रों,
एक पिता के जीवन से यकायक चले जाने से आपका जीवन किन-किन वर्जनों से घिर जाता है ये सारे वर्जन कल्पनातीत थे मेरे लिए अब इनके बीच रहकर इनसे जूझते हुए जीने और आगे बढ़ने का कौशल विकसित कर रहा हूँ सही क्या है गलत क्या है नही जानता हूँ बस हाल फिलहाल तो कुछ चुनौतियों से निबटने में लगा हुआ हूँ वक्त इतना कम है कि खुद की कमजोरी पर सोचने की फुरसत भी है।

Friday, June 6, 2014

ताप

दोस्तों ! इस बात यकीन करना मुश्किल है कि गाँव में दिन यदि चार घंटे लाइट लगातार आ जाए तो उस दिन हम इस बात की खुशी में रहते है कि आज बिजली बढ़िया चली है। याददाश्त के बिनाह पर कह सकता हूँ कि यदा कदा ही शाम को गाँव में लाइट देखी है सुबह घर के बुजुर्ग बताते है कि रात लाइट आई थी।
उत्तर प्रदेश के सम्पन्न कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उस गाँव का किस्सा कह रहा हूँ जिसकी आबादी लगभग बारह हजार है और गाँव में बिजलीघर भी है शेष यूपी के देहात का क्या हाल होगा समझा जा सकता है नेताजी के जिले या संसदीय क्षेत्र की रोशनी अपवाद हो सकती है।
सूर्य के प्रचंड ताप से खेत पर किसान खलिहान में पशु और घर पर बच्चे तप कर अपनी अपनी साधना में लीन है वातानुकूलित कक्षों के कहकहों में उनका जिक्र भी कहां शामिल होगा।
घर के एक से तीन साल के वय के बच्चें महीने भर में तीन से चार बार दस्त/बुखार की शिकायत से डॉक्टर के यहाँ जा चुके है अब बच्चा शाम को प्यार से लिपटना चाहता है तो गर्मी की आंच उसको मिनट भर में खुद से अलग कर देती है।
तपती दुपहरी में देह से टपकते पसीने की गंध को मिटा देना किसी भी देशी विदेशी डियो के बसकी बात नही है।
दो बखत स्नान और रात में छत पर मच्छरदानी लगाकर लेटने से थोड़ी राहत मिलती है रात को बारह से सुबह के पांच बजे तक जो बेसुध नींद आती है बस वही गाँव के जीवन का बोनस है इसकी तुलना एसी/कूलर और बंद कमरों की नींद से नही की जा सकती है।