Friday, October 8, 2010

फिलहाल...

फिलहाल ये लम्हा जी लेने दें...मेघना गुलज़ार की फिल्म का यह गीत बज रहा है शाम से मेरे लेपटाप पर दो दिन से मै ऐसी फुर्सत के लम्हों मे जी रहा था मतलब अतीत का व्यसन तो मुझे है ही तभी भावनात्मक रुप से परेशान भी रहता हूं अक्सर...कल का लेखा-जोखा आपके सामने इसलिए नही आ पाया क्योंकि कल मै एक महफिल मे मशरुफ था..देर रात से घर लौटा और उस वक्त कुछ लिखने का मन भी नही हुआ मै सीधा सो गया।कल विश्वविद्यालय से आकर खाना खा कर अपने मोबाईल का स्वीच आफ करके सो गया उठने पर जैसे ही फोन आन किया अचानक एक एसएमएस टपका कि आज शाम क्या कर रहें हो? एसएमएस अपने मित्र योगी जी का था मै तभी समझ गया कि आज की शाम अपने पुराने यार के साथ बीतेगी मैने तुरंत जवाब दिया कि मै खाली हूं और शाम को मिलते है,जैसे ही मै योगी जी के यहाँ पहूंचा योगी घर के बाहर ही मिल गया और फिर हम दोनो मेरी बाईक से सवार हो लिए एक शाम को रंगीन और हसीन बनाने जुगत में योगी पर एक ट्रीट भी बाकि थी बेटी के जन्म होने के उपलक्ष्य मे, सो हमने सोचा शहर के कोलाहल से बाहर एकांत के यह शाम बिताई जाए फिर हमने अपने खाने-पीने का सामान लिया और गंगा के एक सुनसान घाट पर बैठ गये लगभग दो घन्टे वही बैठे रहे यह घाट हमारे विश्वविद्यालय के सामने ही है लेकिन शाम को अक्सर सुनसान पडा रहता है यहाँ बैठने के लिए थोडा नीचे उतरना पडता है लेकिन ऐसे एकांत का भी एक अलग ही मज़ा है सामने गंगा की विशालता और नजदीक मन की लघुता क्या बेहतरीन जुगलबन्दी होती है मै ब्याँ नही कर सकता हूं जब कभी पढते थे तब अक्सर मेरी शाम यहाँ गुजरती थी वें भी सारी यादें ताज़ा हो गई कल...।

जैसे ही हम दो पुराने यारो की यह महफिल जमी पहले तो औपचारिक ही बातें होती रही थोडी देर मे दोनो के मन मे जो ढेरों पारस्परिक शिकवे-शिकायतों के जो पुलिन्दें जमा हो रखे थे वे सारे खुल कर सामने आने शुरु हो गये भावनाओं का ऐसा अनोखा विरेचन हुआ कि मन बहुत हल्का हो गया हम दोनो का ही...कुछ मेरी बदतमीजियां थी जिस पर योगी को मलाल और रंज था कुछ और मेरी अपेक्षा टूटने की पीडा थी हमने सब कुछ शेयर किया खुलकर और मानो फिर ऐसा लगा कि वक्त थम सा गया हो हम दोनो ही फ्लेशबैक मे चले गये अपने कालिज़ के दिनों सारी शरारतें और बेहूदगियों पर हमने इस महफिल मे तब्सरा(चर्चा) किया। कुल मिलाकर हम दोनो इस बात पर सहमत हुए कि यह एक बुरा वक्त था जिसकी परिभाषा हमने अपनी-अपनी मनस्थिति के हिसाब गढी...एक दूसरे से असहमत होते हुए हम अपने आत्मीयता के मसले पर सहमत थें।

गंगा का साक्षी मान कर हमने अपने अतीत और आज को जीने के एक कोशिस की इस दौरान मैने कोई फोन भी रिसीव नही किया योगी जी ने अपने मोबाईल के वालपेपर की जगह अपनी नन्ही सी बिटिया की तस्वीर लगा ली है जहाँ पर इससे पहले भाभी जी का कब्ज़ा था...संतान ऐसे ही अपनी जिन्दगी दखल बना लेती है अच्छा लगा यह सब देखकर।

मै पहले ही घर यह बोल कर निकला था आज मुझे आने मे आने मे वक्त लग जायेगा सो पत्नि देर रात से घर लौटने पर उतनी नाराज़ नही थी जितनी अक्सर रहती है।

घाट पर बतकही और गालबजाई करने के बाद हम योगी जी के घर पहूंचे मैने रात का खाना वही पर खाया हालांकि मैने आजकल शाम का खाना खाना छोड रखा है लेकिन आंटी जी के ममत्व के आग्रह के सामने मैने अपने डायटिंग के फंडे को एक तरफ रख कर खाना वंही पर खाया एक खास बात यह भी रही मैने और योगी ने एक ही थाली में साथ-साथ खाना खाया पुराने हास्टल के दिन याद आ गयें जब मै अक्सर अपने मित्रो के साथ अपना खाना शेयर करके खाया करता था..झूठन आदि की शुचिता मुझमें कभी से नही है सो एक थाली मे छोले और जीरे के छोंक वाल रायता खाने-पीने के बाद मै घर लौट आया...।

आज का दिन सामान्य ही बीता विभाग मे वर्तमान हेड की छूट्टी की सूचना से थोडी सी बेफिक्री बनी रही आज कोई लेक्चर भी नही हुआ बालक लगता है त्योहारों के बाद ही आएंगे। अपने गुरुदेव के कुछ अकादमिक काम निबटाए मसलन रिसर्च पेपर ई-मेल आदि की...।

आज बस इतना ही...शेष फिर

डा.अजीत

1 comment:

  1. PURANI DOSTI KI NAYEE SHURUAAT KE LIYE DR. SAHAB APKO HARDIK BADHAIE HO

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