Tuesday, September 30, 2014

वो तीन

मोहम्मद अजीज़ शब्बीर कुमार अनवर ये तीन ऐसे गायक है जो अस्सी-नब्बे के दशक में बेहद लोकप्रिय रहें है यूपी और बिहार में आज भी मोहम्मद अजीज़ के चाहने वालो की कमी नही है उनके रोमांटिक ड्युटस आज भी ऑटो/बस ने सुने जा सकते है इस दौर की पढ़ी लिखी पीढ़ी को न उनमे नाम याद होंगे और न उनके गाए सुपरहिट गीत हाँ उनको एक वर्ग विशेष की पसंद में जरुर टाइप्ड कर दिया गया है। मोहम्मद अजीज़ को बस/ऑटो ड्राईवर रिक्शा चालको की पसंद का गायक समझा जाने लगा है। मगर ये तीनो अपने अपने किस्म के अजीम फनकार रहें है सभी नही तो कुछ गीत मोहम्मद अजीज़ ने बेहद दिलकश आवाज में गाएं है चाहे वह कर्मा फिल्म का कालजयी गीत दिल दिया है जान भी देंगे ऐ वतन तेरे लिए या फिर फिल्म मुद्दत का रोमांटिक गीत प्यार हमारा अमर रहेगा याद करेगा ये जहां हो...ठीक ऐसे ही शब्बीर कुमार और अनवर के भी बेहद दिलकश गीत मौजूद है।
बदलते वक्त ने इस फनकारों को हमारी याददाश्त से बाहर कर दिया है मै कभी कभी इनके एकाकी जीवन की कल्पना करता हूँ तो सिहर जाता हूँ मोहम्मद अजीज़ ने खासी लोकप्रियता का समय भी जिया है अब जब उन्हें इंडस्ट्री में कोई नही पूछता है तब वो कैसे निर्वासन में जिन्दगी जीते होंगे ऐसे गुमनामी जिन्दगी जीना बेहद मुश्किल होती होगी पिछले दिनों कहीं पढ़ा था वो आर्थिक बदहाली से भी गुजर रहें है। फ़िल्मी दुनिया की कितनी छोटी याददाश्त होती है कल तक जो आपका स्टार गायक था आज गुमनाम है यही बात हम श्रोताओं की भी है हम आगे बढ़ते चले जाते है एक दौर कुमार शानू अलका याज्ञनिक सोनू निगम का था अब वो भी ढलान पर है अब अरजित मोहित चौहान या नए लोगो का दौर है। कुमार शानू को अब मै मोहम्मद अजीज की जगह जाता देखता हूँ उनके मेलोडियस सोंग्स भी अब एक वर्ग विशेष तक सीमित होकर रह गए वरना एक समय था जब रोमांटिक ट्रैक का मतलब की कुमार शानू था पुरानी आशिकी फिल्म के गीतों ने क्या धमाल मचाया था।
कुल मिलाकर मेरी तो आदत अतीत में जीने की रही है इसलिए गाहे बगाहे इन पुराने दौर के फनकारो को याद करता रहता हूँ। किशोर-रफी-मुकेश त्रयी की दुनिया से भी अलग फनकारों की एक दुनिया रही है जिन्होंने अपने फन की ताकत से अपने चाहने वाले पैदा किए अब आप उन्हें लोअर मीडिल क्लास समझ मूल्यवान न समझे तो यह आपकी समझ की सीमा हो सकती है। बड़े चेहरों के बीच खुद को जमाना बहुत हिम्मत की बात होती है हिन्दी फ़िल्मी गायकी के इन सर्वहारा का मै बड़े दिल से सम्मान करता हूँ और उन्हें उनके गीतों के माध्यम से शिद्दत से याद भी करता हूँ। भले वो आज हाशिए की जिन्दगी जी रहें है मगर मेरे लिए वो सदैव मेरे दिल के करीब ही रहेंगे उनको यादों में बचाकर रखना दरअसल उस दौर को बचाकर रखना था जब हम गुनगुनाने की सच्ची वजह अपने दिल में रखते थे आज की तरह नही कि गायक का नाम भी मुश्किल से याद रह पाता है। 

Monday, September 29, 2014

सच के आर-पार


विज्ञान के डर से आध्यात्म की शरण व्यक्ति को एक मानसिक सांत्वना तो देती ही है साथ ही जीवन के मिथ्या होने के बोध से साक्षात्कार करा कर उसे आपदा को भोगने के लिए मानसिक रुप से तैय़ार भी करती है।
गांव में स्कूल से लेकर बीए तक मेरा साथ देने वाला मेरा एकमात्र लंगोटिया यार है देवेन्द्र। अभी परसो मेरे पास आया था मिलनें के लिए दोपहर में कई घंटे सत्संग चला देवेन्द्र के साथ एक त्रासद कथा यह है उसकी पत्नि के गले मे भोजन नली में पिछले तीन साल से संकुचन हो रखा है जिससे भोजन निगलने मे उसे खासी दिक्कत होती है चंडीगढ पीजीआई में उसका उपचार भी करवाया मगर आशातीत सफलता नही मिली है डॉ वास्तविक बीमारी को भी नही खोज पाए थे दबे स्वरों और बुरी कल्पना में कुछ डॉ को यह भी सन्देह है कि यह गले का कैंसर हो सकता है। जब से पत्नि बीमार हुई है देवेन्द्र के लिए यह बेहद तनाव भरा वक्त रहा है उसका एक बेटा है घर भाई माता-पिता से भावनात्मक और मोरल सपोर्ट लगभग शून्य है। देवेन्द्र ने अपनी पत्नि के उपचार के लिए अपनी सामर्थ्य के हिसाब यथा सम्भव सब प्रयास किए कई कई दिन अकेले चंडीगढ पडा रहा जो जहां भी डॉक्टर बताता वही दिखाने चला जाता मगर कई से कोई उल्लेखनीय राहत नही मिली जब विज्ञान से राहत नही मिली तो उसने झाड फूंक वालों को भी खूब पत्नि को दिखाया मगर वहां के पाखंड से वह शीघ्र ही वाकिफ हो गया कहते है न जब आदमी परेशान होता है वह भी तर्कातीत हो किसी भी चमत्कार की उम्मीद लगा बैठता है इसी मनस्थिति में देवेन्द्र ने न जाने कहां कहां चक्कर न काटे मगर अंत मे हुआ वही ढाक के तीन पात।
फिलहाल एक साल देवेन्द्र की पत्नि का उपचार एक होम्योपैथ कर रहा है उससे उसे काफी आराम है अब वह एक-दो रोटी खा लेती है वरना एक बार तो नौबत तो यह भी आ गई थी कि वो तरल पदार्थ भी नही निगल पा रही थी। परसों मैने डरते-डरते देवेन्द्र से कहा भाई अगर यह कैंसर ही निकला तो क्या होगा एक पल के लिए देवेन्द्र भी सहम गया उसे सबसे ज्यादा फिक्र अपने पांच साल के बेटे की है भगवान न करें कुछ ऐसा वैसा हो जाए तो बच्चें का जीवन तबाह हो जाएगा..खैर मैने उसको कैंसर के कुछ एडवांस सेंटर पर जाकर टेस्ट वगैरह करवाने की सलाह दी है वो सहमत है मगर उसने बताया पत्नि बडे सेंटर पर जाने से डरती है कहीं कैसर की पुष्टि हो गई तो उसका क्या होगा फिलहाल वो इस भ्रम मे जीवन जी रही है कि होम्योपैथी से उसको आराम मिल रहा है और यही डॉक्टर उसको ठीक कर देगा।
इस त्रासद कथा का एक दूसरा पक्ष है जो मै बताने जा रहा हूं जब मै पीजी के लिए हरिद्वार आ गया देवेन्द्र गांव मे ही रह गया उसने प्राईवेट एम ए किया उस वक्त देवेन्द्र एक सामान्य गांव देहात का युवा था जिसकी अपनी लौकिक रुचियां थी धर्म और आध्यात्मिकता को बेकार की चीज़ समझता था उन दिनो मै वेदपाठी हुआ करता था वह मेरी भी मजाक बनाया करता था मगर अब पत्नि के इस स्वास्थ्य संकट के बाद जब मुसीबत ने चारो तरफ से घेर लिया अपने रक्त संम्बंधियों नें मूंह फेर लिया तब उसने आध्यात्म और ईश्वर को जानने समझने मे वक्त बिताना शुरु किया रामचरितमानस,गीता आदि का स्वाध्याय किया दैनिक पूजा आदि करने लगा है परसों उसने लगभग एक घंटे गीता के दार्शनिक पक्ष पर गजब का दार्शनिक व्याख्यान मुझे दिया स्थिर प्रज्ञ,जीवात्मा, सृष्टि चक्र, जीवन मरण, ईश्वर, माया,मोह. राग इन सब बिन्दूओं पर उसने धाराप्रवाह और तर्क सम्मत अपनी बात रखी है मै उसको अपलक सुनता रहा एक बार तो मुझे यकीन नही हुआ कि ये वही देवेन्द्र है जिस बीए पास को मै गांव छोड गया था जो धार्मिक कर्मकांड और व्रत रखने पर मेरा मजाक बनाया करता था।
गांव के जीवन और सीमित साधनों के साथ स्वाध्याय के बल पर उसने गीता के बारें जो समझ विकसित की है वो मेरे लिए हैरत मे डालने वाली थी उसने मुझसे कहा कि आप तो ज्ञानी ध्यानी आदमी है ( उसकी मान्यता है) कुछ और पुस्तकों का नाम बताईये ताकि ईश्वर को समझने मे मदद मिल सके मैने अपनी जानकारी के हिसाब से उसको कुछ नाम बताएं भी बल्कि यह भी आश्वासन दिया कि शहर से कुछ किताबें लाकर दूंगा।
इस पूरे प्रकरण का सारांश यही है कि कई बार विज्ञान जब इंसान को डराता है तब वह अपने मन की सांत्वना के लिए ईश्वर की शरण मे जाता है उसके अस्तित्व पर सवाल खडे करके उसे खोजता है मै दावे से कह सकता हूं यदि देवेन्द्र ने इस आपदकाल मे खुद को गीता के स्वाध्याय मे न लगाया होता तो वह मानसिक रुप से टूट चुका होता आज वह मजबूत होकर एक जीवनहंता बीमारी से लड रहा है साथ ही मानसिक रुप से दृढ हो रहा है। धर्म इस रुप मे जरुर उपयोगी हो सकता है।
परसों मै उसको अपलक होकर सुनता रहा है एकाध बिन्दूओं पर असहमत होते हुए भी उसका प्रतिकार नही किया गीता के तत्व दर्शन पर वह जितने अनुभूत अधिकार से बोल रहा था वह मेरे लिए चमत्कृत करने जैसा था उसकी बातों मे गीता के कर्म योग के तत्व दर्शन की बेहद प्रभावी और सरल भाषा मे व्याख्या थी। अपनी आंतरिक अनुभूतियों की बात कहूं तो उस दिन मै अर्जुन रुप में था और देवेन्द्र कृष्ण रुपी जीवन के तत्व का भाष्याकार...!
अज्ञेय ने सच ही कहा है दुख व्यक्ति को मांझता है..! मेरी दिल से यही कामना है कि यदि वास्तव मे ईश्वर जैसी कोई सत्ता विद्यमान है तो मेरे इस युद्धरत मित्र की पत्नि को सम्पूर्ण आरोग्य प्रदान करें ताकि विश्वास करने की वजह प्रज्ञा मे बची रहें।

डॉ.अजीत