आज का दिन कुल मिला कर काफी ठीक बीता,आज जब मै विश्वविद्यालय पहूंचा तभी से एक मन मे सकारात्मक किस्म की ऊर्जा का अहसास हुआ और यह पाजिटिव किस्म का अहसास जबरन पैदा किया हुआ नही था। शाम को जब मैने इसका मनोविश्लेषण करने का प्रयास किया तो पाया दरअसल आज की ऊर्जा की एक प्रमुख वजह यह भी रही है कि आज अचानक पिताजी अपने अभिभावक होने का परिचय देते हुए मेरे बैंक अकाउंट मे 3000 रुपये जमा करवाये उनकी फिक्र वैसे ठीक भी थी इस बार वेतन देर से मिलने की संभावना है क्योंकि विश्वविद्यालय मे जिस तदर्थ बिरादरी से मै ताल्लुक रखता हूं उसका वेतन प्राय: देर से ही मिलता है मतलब क्लर्को को समय से वेतन भेजने की कोई जल्दी नही होती है और यही पर मै आपको बताता चलूं कि अपने मानविकी संकाय के समस्त(कुल मिलाकर छह) प्राधयापकों का वेतन पत्र मै ही बनाता हूं मतलब मास्टरी के साथ-साथ बाबूगिरी भी करनी पडती है अब भाई अपनी गरज़ है सो करना पडेगा वरना करते रहो लम्बा इंतजार...। लगभग चार साल से नौकरी पर होते हुए भी और पिछले दो साल से सम्मानजनक वेतन मिलने के बावजूद भी मै घर से पैसे मांगने के मामले मे बडा ही बेशर्म किस्म का इंसान हूं पिछले तीन महीनों से जब भी हाथ तंग होता है घर फोन कर देता हूं...बस घर से पैसे मंगाना मेरे दिल को तो अच्छा नही लगता है लेकिन दिमाग कहता है ठीक ही है कम से कम किसी का कर्जा तो नही होता सिर पर...उधार लेने के मामले मे मै बहुत संकोची भी हूं और कमजोर भी कोशिस यही रहती है कि किसी से न मांगना पडे सिवाय अपने यार मकन्दा डा.अनिल सैनी जी के...।
आज उन्होनें ही मुझे अग्रिम वेतन दे दिया अपने पास से वो उन्होने पहले से ही वायदा भी किया हुआ था, उपर से घर से भी मदद मिल गई तो मेरी माली हालत थोडी ठीक हो गई है कम से कम आज के लिए। मैने कुछ देनदारी चूकायी मसलन दूध,अखबार और मकान का किराया आदि..।
जेब गर्म होने पर मैने सबसे जरुरी जो काम किया वो था अपनी पुरानी बाईक की सर्विस करवायी वो बेचारी दिन भर मुझ 93 किलो की लाश को ढोती फिरती है बिना किसी शिकायत के लेकिन पिछले कुछ दिनों से उसकी नाराज़गी सामने आ रही थी मतलब रास्ते मे अचानक बंद होकर अपने खराब होने का अहसास करा रही थी ऐसा कईं बार हुआ जब मै उसको खींच कर घर तक लाया या ऐसा हुआ उसने अपनी खुराक डबल कर दी सौ रुपये का तेल दो दिन मे डकार रही थी मै भी उसकी बेवफाई से हैरान था क्योंकि आप यकीन नही करेंगे पिछले आठ साल से मेरे पास यही बाईक है...कैलिबर क्रोमा अब बज़ाज कम्पनी ने बनानी भी बंद कर दी है सो एक तरह से एंटीक भी है।
आज दोपहर का खाना खाने के बाद मै सोने की बजाए सीधा मैकेनिक के पास गया और अपनी बाईक का नज़ला ठीक करवाया मिस्त्री भी उसकी अंदरुनी हालत देखकर इस तरह से हैरान हुआ जैसे टी.बी.के मरीज़ के फेफडो का एक्स रे देख कर डाक्टर होता है, मैने भी फिर आज दिल खोल कर उसका ईलाज़ करवाया और फिर 500 रुपये का पेट्रोल डलवा कर शहर का एक चक्कर लगाया वास्तव मे आज वो अपनी पुराने रौ मे दिखी सर्विस के बाद...।
जब देर से घर पहूंचा तो पत्नि भी थोडी नाराज़ थी मैने बाईक का किस्सा बताया लेकिन उसे कम ही यकीन हुआ मेरी बातों पर उसे लगता है कि मेरी अवारगी की वज़ह कुछ और भी है....खैर! उसकी भी गलती नही मै फोन करके भी दो अपने देर से आने की सूचना नही देता वो घर मे अकेली खटती रहती है बालक होमवर्क करने की बजाए कार्टूनों मे ज्यादा दिलचस्पी ले रहा है आजकल ये भी उसकी चिंता का विषय है मुझे कहती रहती है एक घंटा बच्चे को पढाया करों...दरअसल वो आम बच्चों की तरह अपनी मम्मी से कम डरता है, जब मैने कहा कि मै बडे बच्चों (एम.ए./एम.एस.सी.) को पढाउं या इसको उसका जवाब था कि बडा ही बच्चा पैदा कर लेते है...!
मै हँसता हुआ बाहर निकल गया अपनी ही धुन मे....वैसे बात उसकी तार्किक थी।
डा.अजीत
aapki dharadhar itni post dal gayi ki hum jaan hi nahi paaye .sach kaha kharche aay se jyada ho jaate hai to madd leni hi padti hai ,aese me apne parivaar se hi aas lagaya jaa sakta hai .
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