Friday, November 5, 2010

दीपावली

आज दीपावली है शहर मे मकान लडियों से सजे हुए है और गलियों मे पटाखों का शोर शराबा जोर से है। बारुद की गंध से माहौल युद्द के मोर्चे जैसा बना हुआ है लोगो की खुशी इजहार करने का ये तरीका भी थोडा अजीब ही है लेकिन आज के दीपोत्सव की खुशी के अवसर पर मै अपनी कोई दार्शनिक ब्यानबाजी नही करना चाहता सभी को मौलिक अधिकार है अपनी तरह से जीने का उसमे ये उत्सवधर्मिता भी शामिल है। मेरा अतंस इतना शांत और निर्जीव किस्म का है कि मुझे उत्सव आने पर सच कहूं कोई दिल से खुशी महसूस नही होती है ये मेरे साथ बचपन से ही है कुछ जरुरत से ज्यादा गंभीर बचपन जीया है सो वैसी ही आदत बन गई है अब कई बार पत्नि ताना मार देती है कि मेरे सत्संग के कारण वह भी सामाजिक जीवन और इसकी औपचारिकताओं के प्रति अलगाववादी हो गई है वह विवाह से पहले सामान्य परिवेश मे पली-बढी लडकी थी जिसने जीवन मे कभी दुख नही देखा था और जैसा एक आम लडकी की अपने भावी वैवाहिक जीवन को लेकर सपनें होते है ठीक उसके भी वैसे ही थें लेकिन मेरे साथ सप्तपदी होने के बाद अब सब कुछ बदल गया है वो कभी अपने प्रारब्ध का सहारा लेती है तो कभी नियति मानकर मेरे साथ कदम मिलाकर चलने की कोशिस करती रहती है। इसमे न मेरा कोई दोष है न उसका कोई दोष भगवान ने संयोग ही इस किस्म का तय किया था जिसका सहारा लेकर अपनी गृहस्थी चल रही है।

आज का दिन अपनी गृहस्थ पुराण कहने का नही है लेकिन मै इसलिए जिक्र कर रहा हूं कि मेरे घर पर आजकल पत्नि की छोटी बहन आयी हुई है जिसमे अपना अक्स देखकर मेरी पत्नि अपने विवाह से पूर्व के जीवन को उसके साथ जी लेती है उसे मेरी अवसादित किस्म की जीवन शैली का पता है सो सुबह से ही आग्रह कर रही थी कि मै बाज़ार से कुछ दीपावली का सामान खरीद लाऊं ताकि अपने बहन को उत्सव का बोध करा सके। मैने उसकी भावनाओं को समझते हुए वो सब सामान ला कर दिया जिसकी उसने लिस्ट मुझे थमाई थी,पत्नि की बहन ने (साली शब्द से मुझे सदैव से परहेज़ रहा है और कोई शब्द प्रचलन मे नही है सो पत्नि की बहन ही सम्बोधित कर रहा हूं) यथा सामग्री की उपलब्धता के आधार पर बहुत परिश्रम से एक सुन्दर रंगोली बनाई दीपावली पूजन के लिए आटे और थोडे बहुत रंगो से गणेश जी एक मनमोहक प्रतिमा उसने जमीन पर उकेरी जिसके कारण उसकी कला कौशल का मै कायल हो गया हूं अभी उसके घर वाले उसके लिए लडके की तलाश कर रहे है विवाह के लिए अभी-अभी बी.ए.पास किया है,उसके शिल्प को देखकर मेरे मन मे ये सवाल बार बार आ रहा था कि अगर ग्रामीण परिवेश की इस लडकी ने फाईन आर्ट्स की औपचारिक शिक्षा मिल गई होती तो ये एक बेहतरीन कलाकार बन सकती थी अब केवल बेचारी किसी परिवार की टिपिकल बहु बनेगी...सच मे ग्रामीण क्षेत्र मे संसाधनों का बहुत टोटा है और प्रतिभाएं ऐसे ही दम दोड देती है।

खैर! हमने सपरिवार दीपावली पूजन किया मै भी आधे-अधूरे मन से आरती मे सम्मलित हो गया था भगवान कितने क्रुर हो सकते है इसका मुझे अच्छी तरह से बोध है लेकिन फिर भी अपने ऐश्वर्य और विलासिता के लिए लक्ष्मी मैय्या की मैने न केवल पूजा की बल्कि एक भिखारी की तरह मन ही मन गिडगिडाया भी कि अर्थ प्रबन्धन के क्षेत्र मे अब मेरी और अग्नि परीक्षा न लें...मेरा सब्र कभी भी जवाब दे सकता है फिर ये मत कहना कि ये अनैतिक है सरस्वती ने जब पी.एच.डी तक की शिक्षा दी है तो अब ये मां लक्ष्मी का नैतिक फर्ज बनता है कि मेरी भव बाधा हरें...।

बस आज का दिन यूं ही बेवजह और औघडपन मे बीत गया दिन मे दो तीन बार अपने छोटे भाई से बतिया लिया वो अकेला गांव मे दीपावली मना रहा है...।

दिन भर मोबाईल पर दीपावली की शुभकामनाओं के फारवर्ड किए गये एसएमएस टपकते रहें जो औपचारिकता की चासनी मे लिपटे हुए थे मैने केवल चार का जवाब दिया बाकि सबको पढता रहा और डिलिट करता रहा...।

अब लेता हूं एक विश्राम कल की बातें कल होंगी...।

शुभ दीपावली...आत्मीय दीपावली!

डा.अजीत

2 comments:

  1. दीपावली के शुभ अवसर पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें

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