(यह पोस्ट एक दिन पोस्ट कर रहा हूं सो सभी घटनाएं 14 नवम्बर के हैं।)
माफी चाहूंगा दोस्तों पिछले कुछ दिनों से मेरे नियमित लेखन के दावे की हवा निकल रही हैं उसकी दो वजह है एक तो मै स्वस्थ नही हूं खांसी कुछ ज्यादा ही बढ गई है और सितोपलादि चूर्ण भी कुछ खास असर नही दिखा रहा है दिन मे फिर भी थोडा सामान्य रहता हूं लेकिन रात को कई बार खांसते-खांसते बुरा हाल हो जाता है श्वास नली से लेकर पेट तक दुखने लगता है।
आज मै पत्नि और बच्चे को मायके छोड कर आया हूं जैसाकि मैने पहले भी जिक्र किया है पत्नि का भाई दीपावली की रात एक दुर्घटना मे गंभीर रुप से घायल हो गया था आज उसकी अस्पताल से छुट्टी हो गई है वह नौ दिन अस्पताल मे बितानें के बाद आज घर लौटा है,सो पत्नि और बच्चा बुधवार की शाम तक लौटेंगे तब तक मै और मेरा छोटा भाई मकान पर रहेंगे खुद ही खाना पकायेंगे और खायेंगे यदि मै अकेला रहता तो बडे आलस मे भुख के साथ ये दिन गुजरते लेकिन चूंकि छोटा भाई साथ मे है सो अब मै नैतिक दबाव मे समय पर कुछ न कुछ खाने का प्रबन्ध जरुर करुंगा चलो! इसी बहाने मेरी भी पेट पूजा होती रहेगी।
आने वाले तीन दिन कुछ कुछ बैचलर लाईफ के जैसे बीतेंगे सो आज शाम हम दोनो मार्किट गये थे और ब्रेड,बटर और मैगी के चार पैकेट खरीद लाएं है ताकि क्षुधा शांत की जा सके। दाल-चावल बनाने मे मै माहिर हूं बस रोटी बनानी नही आती है सो अल्टरनेटिव फूडस पर ही ज्यादा निर्भर रहना पडेगा,दाल-भात तो मै पकाता ही रहूंगा।
रास्ते मे आते-आते हमने सूप का पान किया और एक प्लेट पाव भाजी भी खायी और आज रात का अपना इंतजाम कर लिया मतलब शायद आज रात के लिए कुछ रोटियां पत्नि बना कर चली गई है सो देर रात उनका भोग किया जायेगा।
कल का मीनू अभी तय नही है देखते है कल क्या खाया-पकाया जायेगा? खाना बनाना तो मुझे ठीक लगता है अगर कोई साथ मे हो अकेले मे मै कुछ नही पकाता हूं लेकिन बर्तन मांजना मुझे कतई रुचिकर नही लगता है इस बार छोटा भाई साथ मे सो आशा है कि कुछ सहयोग वह करेगा तो काम चल ही जायेगा।
कल की किस्सागोई अब होगी कल...।
डा.अजीत
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