आजकल वक्त बेवजह कट रहा है वैसे तो एक अरसे से मै इस प्रकार की जिन्दगी जीने का आदी हूं लेकिन पिछले कुछ महीनो मे मैने अपने सामर्थ्य अनुसार बहुत प्रयास किए है अपनी लाईफ मे रेडिकल चैंज लाने चाहे वह विदेश जाने का प्रयास हो या देश मे ही अपने आपको स्थापित करने की बात हो पर जो बात मेरी समझ मे आई है वह है कि सब कुछ अपनी इच्छानुसार हो पाना संभव नही होता है हम अपनी बेहतरी के लिए सोच सकते है कुछ बडे निर्णय ले सकते है लेकिन परिणाम सब नियति अधीन होता है और लब्बोलुआब यही कि कुछ सवाल ऐसे होते है जिनका जवाब शायद वक्त के पास ही होता शायद सबक की शक्ल में...।
पिछले तीन दिनों से बैचलर लाईफ जी रहा हूं मेरे साथ आजकल छोटा भाई रह रहा है हम पिछले तीन दिन से खुद ही खा-पका रहे है तीन वक्त मैगी खा कर काम चलाया बाकि दाल भात खाकर..आज जब रोटी की भुख ने बैचेन कर दिया तो होटल से रोटी लाया और दाल घर पर ही बनाई हमेशा की तरह दाल मे नमक कुछ ज्यादा हो गया था लेकिन भुख की तीव्रता के आगे घी के सहयोग से काम चल गया,वैसे तो मै दाल ठीक-ठाक बना लेता हूं लेकिन इस बार दाल की पाक कला मे कुछ हाथ जम नही रहा है नमक तीखा ही हो जाता है बस जैसे तैसे खा लेतें है।
आजकल विश्वविद्यालय मे कुछ खास नही हो रहा है प्रशासन की लोक सेवा आयोग से लडाई चल रही है पिछले दो दिन पहले कुछ छात्रो और शिक्षकों के विरोध प्रदर्शन पर पुलिस ने लाठियां भांजी और विश्वविद्यालय का छात्र संघ अध्यक्ष गंभीर रुप से घायल हो गया है तथा दून अस्पताल मे भर्ती है। पुलिस का चरित्र हमेशा से ही हिंसक रहा है और जैसे ही उन्हे मौका मिलता है वे ब्रिटिश कालीन दौर की तरह बर्बतापूर्वक अपना हाथ चला ही देती है हद की बात तो यह है कि एक कांसटेबिल और एस आई लेवल के पुलिस ने कुलपति जैसे ओहदेदार व्यक्ति को भी धकियाया गया वो भी सारा प्रोटोकाल को भूलकर,कुछ ने लाठियां खाई और कुछ ने तमाशा देखा तमाशबीन बनकर।
खैर ये सब तो राज काज़ की बातें है चलती ही रहेंगी...अभी अभी एक मित्र ने फोन करके सूचना दी है कि यूजीसी ने असिस्टैंट प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए नेट पास होने की अनिवार्यता से दिसम्बर 2009 तक के पी.एच.डी. डिग्री होल्डर्स को मुक्त किया है यह खबर व्यक्तिगत रुप से मुझे भी थोडी राहत देने वाली है क्योंकि इस नये नियम आने के बाद मेरी पात्रता पर संकट के बादल छट जायेंगे...।
शेष फिर...
डा.अजीत
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