Friday, November 19, 2010

आदत

आजकल मेरी प्रमादी प्रवृत्तियों की भरमार हो गई है मसलन मै कुछ जरुरत से ज्यादा आलसी हो गया हूं,इसी वजह से मै अपने नियमित लेखन के दावे से नजरें चुरा रहा हूं...आज फिर से वही गीत याद आ रहा है कि जब दर्द नही था सीने में...क्या खाक मज़ा था जीने में.. बस अब सन्दर्भ बदल गये हैं मैने महसूस किया है कि जब मै अत्यंत पीडा मे था आहत था बैचेन था तब अन्दर से एक ऐसी स्वाभाविकता से सृजनात्मकता फूंट रही थी कि कमाल का लेखन हो रहा था और इसी क्रम मे इस ब्लाग का भी अवतरण हुआ था मैने अपनी पीडा संवेदना इस ब्लाग पर खुब शेयर की हैं...बडी-बडी पोस्ट लिखकर अब मन:स्थिति के लिहाज़ से मै शांत अवस्था मे जी रहा हूं तनाव आते जाते रहते है लेकिन मै प्रतिक्रिया परिपक्व किस्म की हो गई है। पिछले चार महीने के अपने हर व्यवहार पर मै एक समीक्षक दृष्टि से देख सकता हूं कब मैने बालकीय व्यवहार किया? और कब अतिरिक्त रुप से परिपक्वता का परिचय दिया...आदि-आदि।

अब मेरी लोक अपेक्षा का स्तर बहुत घट गया है जो शायद मेरी पीडा और असहज़ता की एक बडी वजह भी था अब न दूनिया से कोई उम्मीद है न अपने आपसे ही...।

बस इस संतुलित जीवनशैली का नुकसान मेरी रचनाधर्मिता को थोडा सा उठाना पड रहा है अब न पहले से तेज शेर कह पाता न गज़ल... तब बहुत कुछ उम्दा लिखा गया था ऐसा मेरा नही बहुत से मित्रों का मानना हैं।

बहुत ही मुश्किल वक्त था जो मैने काटा है लेकिन अब इस बात का शुक्र है कि कट गया है अच्छा या बुरा जैसा भी था...। कई बार तो मुझे खुद ही विश्वास नही होता था कि मै इस अप्रिय मनस्थिति से उबर भी पाऊंगा या नही लेकिन सभी मित्रों,शुभचिंतको का कोटि-कोटि धन्यवाद कि उन्होनें मुझे इस पीडा की अवस्था मे ऐसा मौका दिया कि मैने अपने आपको और मांझ सकूं और बुरे वक्त को साक्षी भाव से गुजार सकूं..निसंदेह अब मेरी दृष्टि बदल गई है दूनियादारी को देखने की पहले बहुत पीडा होती थी जब कोई दिल दुखाता था अब लगता है कि ये दस्तूर ही है दूनियादारी का...बस एक चीज़ अभी तक नही सीख पाया हूं कि अपने प्रति स्वार्थी कैसे हुआ जाता है बहुत से लोग कहते है कि डाक्टर साहब! अपनी और अपने परिवार की परवाह करना शुरु करो ! काहे बाहर के लोगो मे उलझे पडे हो अब ये उलझन तो घटी है लेकिन अभी भी मै अपनी और अपने परिवार की परवाह कैसे की जाती है ये दूनियादारी का सबक नही सीख पाया हूं...।

एक बात और आपको बताता चलूं कि जब से मैने रुद्राक्ष का कंठा धारण किया था उसी दिन से मेरी सद्बुद्दि की शुरुवात हो गई थी पहले तो मुझे भी यकीन नही हुआ लेकिन इस रुद्राक्ष का प्रभाव चमत्कृत करने वाला है अब मन बहुत संयमित और संतुलित है और अनिन्द्रा का रोग भी दूर हो गया है वरना दो महीने तो मै शामक दवाईयों के सहारे से ही सो पाता था...। इस बारे मे ज्यादा इसलिए नही लिखना चाहता क्योंकि फिर ये टेलीशापिंग का एड लगाना शुरु हो जायेगा लेकिन ये बात तय है कि इससे मुझे निसंदेह लाभ हुआ और वह भी अनापेक्षित रुप से...। अब ईश्वर की कृपा से दवा की जरुरत नही है बस दुआ से ही काम चल जाता है जो हमेशा मेरे साथ रहती ही है...।
आज के लिए इतना ही.... अनकहे किस्से बहुत से है लेकिन अब मै ही नही कहना चाहते उन्हे तो उनका जिक्र करके भी क्या फायदा..।
डा.अजीत

1 comment:

  1. cheliye achha hai lok apeksha ka ster ghet gya...bhei khushi milni chahiye bhele hi iski vejhe chemutkarik Rudraksh ko hi kyo ne semjha jay....subhkamnay
    .....................Rishikesh se KOI SAJJEN

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