Wednesday, November 10, 2010

एक दिन बाद

कल एक दिन की विश्राम और हो गया है नियमित लेखन का प्रयास करता हूं लेकिन सायास कुछ नही करता हूं अगर इनर काल आएं लेखन की तभी कुछ बक-बक कर लेता हूं जिस दिन मन नही होता है उस दिन चाहकर भी लिख नही पाता हूं शायद मेरी मौलिकता इसी में है।

बहरहाल,कल बच्चे वापस हरिद्वार आ गयें है और आज से राहुल ने फिर से स्कूल जाना शुरु कर दिया। मुझे कईं सालों बाद कुछ भयंकर किस्म की खांसी हो गई है,जिससे मै खासा किस्म का परेशान हूं खांसी की बीमारी मुझे बहुत बुरी लगती है रात को सोना भी हराम हो गया है दो बोतल अंग्रेजी सिरफ पी चूका हूं लेकिन कोई लाभ नही हुआ है सो आज आर्युवेद की शरण मे आ गया हूं,अभी-अभी सितापलादि चूर्ण खरीद कर लाया हूं कल से शहद के साथ इसको चाटूंगा शायद कुछ आराम मिल जाए।

आज से विश्वविद्यालय भी खुल गया है लगभग एक सप्ताह के अवकाश के बाद खुला है सो आज छात्रों की उतनी रौनक नही रही बच्चे अभी दीपावली के बाद घर से नही लौटे है। आज दो तीन रुटीन के काम निबटाए बस कुछ खास नही रहा दिन।

चूंकि आज सुबह मै सूक्ष्म जलपान करके गया था सो जब तीन बजे वापस घर लौटा तो बहुत जोर से भुख लगी हुई थी रास्ते से अमूल की नमकीन लस्सी(छाछ) लेता आया क्योंकि मुझे आज पहले से ही यह खबर थी कि घर पर पालक,चने का साग बना हुआ है। भरपेट खाने के बाद कम्बल ओढ कर लेटा रहा शाम तक ऐसे ही बेतरतीब ढंग से बस कुछ पत्नि के बतियाता रहा साथ जोर-जोर से खांसता भी रहा।

शाम को पत्नि ने तुलसी अदरख की गरमा गरम चाय पिलाई जिससे थोडी राहत मिली है...।

अब बस लिखने मे थोडी तकलीफ हो रही है..खांसी की वजह से सो लेता हूं एक विश्राम।

शेष फिर

डा.अजीत

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