Tuesday, November 2, 2010

उदासी

आज की शाम फिर से बडी उदास हो गई मन के अन्दर बैठा अकेलापन बाहर निकल आया और मै अतीत को स्मरण करता हूं अपने आप को बचाने की कोशिस कर रहा हूं। कुछ दिन पहले मेरा छोटा भाई अपनी परीक्षा के सिलसिले मे मेरे पास आया हुआ था लगभग एक सप्ताह साथ मे रहा वो आज गांव चला गया है सो आज की उदासी की एक वजह वह भी है शाम तक तो मै अपने आपको बेवजह व्यस्त करते हुए इस एकाकीपन से बचता रहा लेकिन अब शाम को जब घर लौटा हूं तो मन बडा डूब सा गया है एक अजीब से खिन्नता वाली मनस्थिति है जिसको शब्दों मे ब्यां नही किया जा सकता है।

मैने आज एक नया स्पाईस कंपनी का डबल सिम वाला फोन खरीदा है बहुत दिन से मै इसे खरीदने की सोच रहा था हालांकि बजट इसकी कतई अनुमति नही दे रहा था लेकिन मुझे जिस चीज़ को पाने की ललक लग जाती है उसको मै लेकर ही दम लेता हूं छोडकर दूनियादारी की उपलब्धियों को...।

मेरे विभागीय सहकर्मी मित्र डा.विक्रम सिंह के पास इसी माडल का फोन था वो उसको बेचना भी चाह रहे थे और खरीददार मै था लेकिन वो रोज़ाना टाल देते थे अब मुझ से रहा नही गया और मैने शाम को सोचा काहे का हजार-पांच सौ का लालच करना नया ही खरीद लेता हूं और फिर जैसे तैसे बजट बैठा कर यह फोन खरीद लाया हूं...जिस पर पत्नि ने अपनी मौन नाराज़गी भी जाहिर कर दी लेकिन अब क्या फर्क पडता है कोई कुछ भी सोचे फोन तो ले ही लिया गया है।

यह फोन मै अपनी पत्नि के लिए ही खरीदना चाह रहा था क्योंकि मेरा बेटा राहुल उसके फोन मे जीरो बैलेंस करके रखता है बेहिसाब बटन दबाता रहता है कभी मैसज़ हो जाते है तो कभी काल भी लग जाती है सो मेरा विचार यह था कि एक नया फोन खरीदकर गोपनीय रुप से पत्नि को दे दूं ताकि कभी इमरजेंसी मे वो मुझे काल कर सके लेकिन पत्नि ने यह फोन लेने से साफ मना कर दिया और कहा कि वो अपने उसी फोन के साथ खुश है। मैने भी ज्यादा जोर नही दिया अब यह मेरे ही पास रहेगा हालांकि रहेगा बेकार ही क्योंकि मेरा खुद का फोन खुद सारा दिन खामोश पडा रहता है जेब की निर्जनता में...ये भी उसी का छोटा भाई बना पडा रहेगा।

आज से मेरी अनिन्द्रा की दवाई भी खत्म हो गई है मतलब मैने खुद ही यह महसूस किया कि अब इसका कोर्स आफ इंटरवेंशन पूरा हो गया है अब बिना गोली के सोने का अभ्यास करना है वरना फिर ये संभावना थी शायद मै एडक्टिव हो जाता इन शामक दवाईयों का..जो मै कभी नही होना चाहता हूं।

बस आज का हिसाब-किताब इतना ही

शेष फिर

डा.अजीत

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