Thursday, March 31, 2011

दोस्त,दोस्ती और बुरा वक्त

सबसे पहले एक राहत भरी खबर यह है कि कल यानि 1 अप्रैल को हमारी अस्पताल से छुट्टी हो रही हैं आज डाक्टर साहब ने डिस्चार्ज़ पेपर तैयार कर लिए है अभी थोडी देर पहले बालक का एक अल्ट्रासाउंड करवाया है जिसकी रिपोर्ट शाम को डाक्टर देखेंगे उसके बाद कल सुबह संभावना हैं कि हमको छुट्टी मिल ही जायेगी।

पिछले तकरीबन 10-15 दिनों से मैने अस्पताल का मानसिक थकान से भरा तनावपूर्ण जीवन जीया है जिसकी मैने कभी सपनें में भी कल्पना नही की थी बच्चे की भावी स्वास्थ्य को लेकर दुश्चिंताएं अभी तक मन के एक कोने मे बनी हुई है और वें तब तक बनी रहेगी जब तक बच्चा अपनी रुटीन जिन्दगी के काम यथासमय करना शुरु न कर दें हालांकि पहले अस्वस्थ बच्चे ने बहुत कुछ सिखा दिया है लेकिन फिर भी मन मे शंकाए बनी ही रहती है लेकिन अभी मैने सब कुछ ईश्वर पर छोड दिया है इसके अलावा मेरे पास कोई चारा भी नही है...अब जो भी होगा उसको भी देखा,भोगा जाएगा।

कहते है कि जब आपका जीवन का सबसे बुरा दौर चल रहा हो तब आपको अपने सच्चे मित्र याद आतें हैं ताकि आप उनसे अपनी पीडा बांट कर थोडा हल्का महसुस कर सकें। जिन्दगी में खुशियों मे शामिल करने के लिए अनगिनत नये पुराने चेहरे हो सकते है लेकिन आप अपने दुख मे कुछ चुनिंदा लोगो के साथ ही अपनी मन:स्थिति शेयर कर सकतें है। संवेदना के व्यापक संसार मे दुनिया मे लोग मिलते बिछडते रहते है कुछ का साथ मिलता है तो कुछ की बेरुखी...यही दुनिया का एक दस्तूर भी है। एक वक्त था कि मैं बडे फख्र के साथ सीना चौडा करते हुए यह बात कहा करता था कि मेरे पास दूनिया के सर्वश्रेष्ठ आत्मीय एवं संवेदनशील परिपक्व मित्र है लेकिन वास्तव मे वो सब मेरी अपेक्षाओं के संसार का बुना हुआ भ्रमजाल था जिसमे फंसकर ऐसा प्रतीत होता था।

आज के दौर में परिपक्व होने के जो दो बडे फलसफे है वो यह है कि सम्बन्धों में अपेक्षाएं नही रखनी चाहिए और अतीत का व्यसन एक मानसिक रोग है इसके अतिरिक्त कुछ भी नही सो वर्तमान मे जीओं, दुख की बात बस यही है कि मै आजतक इन दोनो बातों न समझ पाया हूँ और न ही आत्मसात कर पाया हूँ मुझे यह स्वीकार करने मे भी कोई परहेज़ नही है कि हो सकता है कि यह मेरी व्यक्तिगत कमजोरी हों...।

तो जनाब मसला यह है कि जिन लोगो के साथ सपनों का संसार बनाया था तथा जीया था वें धूल के गुबार की तरफ गर्द बन कर कब के उड गयें बाकि रह गये है तो उन कदमों के कुछ निशान जो हमारी मंजिल की तरफ साथ बढे थें।

बुरे वक्त में ऐसे भगौडे मित्र अक्सर याद आतें है और बहुत टूट कर याद आतें है क्योंकि ऐसे दोस्तों का परिचय आप तक ही सीमित नही रहता है आपके परिवार के वजूद और वजह का एक हिस्सा रहें होते है ये जालिम दोस्त और जब कोई घर वाला आपसे पूछता है कि भई अब कहाँ हैं आपके......जी तब कोई भी शब्द उनकी रिक्तता को भर नही सकता है। कहने के लिए सबकी अपनी-अपनी मजबूरियां है लेकिन मेरे ये दुर्भाग्य रहा कि अक्सर मुझे मजबुर दोस्त ही मिलें है...बस इससे ज्यादा मुझे कुछ नही कहना है।

अब जिक्र उन चेहरों को जो मेरी ज़िन्दगी में बेहद आम किस्म परिचित श्रेणी के लोग थें जिनसे कभी कोई मदद की अपेक्षा न रखी और न खुद ही उनके किसी काम आयें लेकिन अब मेरा तज़रबा यह कहता है है बुरे वक्त में ऐसे आम लोग बेहद खास बन जातें है और उनकी आत्मीयता की जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है मेरे पास ऐसे कुछ आम चेहरों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए शब्द नही है..और उनके आत्मीय,संवेदनशील वजूद के सामने मै बहुत बौना हूँ।

शालू: मेरे पहला दोस्त

शालू वो शख्स है जिसका नाम मेरी तुच्छ जिन्दगी के सबसे पहले दोस्त के रुप में शामिल है। ये वो किरदार है जब मै बमुश्किल पांच साल का रहा हूंगा तब इसने दोस्त के रुप मे मेरा हाथ थामा था गांव मे बैठक के चौतरे पर हम दोनो अक्सर साथ साईकिल (ट्राईसाईकिल) साथ चलाया करते थे...फिर कुछ बडे हुए तो साथ मिलकर गांव की एक क्रिकेट टीम बना ली खुब मैच खेले वो हमारे गांव के बेहतरीन बेट्समैन और बोलर के रुप मे उभर गया था और मै विकेट कीपर हुआ करता था।

दूनियादारी में ऐसे उलझे की धीरे-धीरे गांव से वो शहर चला गया और फिर बचपन की यह पहली दोस्ती धीरे-धीरे एक सामान्य परिचय मे तबदील हो गया हालांकि जब भी हम गांव मे मिलते थे तब बडी आत्मीयता से मिलते थें लेकिन उतना आत्मीय अनुराग नही रहा जैसा कभी पहले हुआ करता था।

अब शालू देहरादून मे रहता है पिछले कई सालों से वह यही पर रह कर बिजनेस कर रहा है एकाध बार मिलना भी हुआ था कुछ साल पहले लेकिन उस तरह ही घनिष्ठा नही रही कि पारिवारिक रुप से आना जाना रहा हो। मेरी बेशर्मी और ढीठता का अन्दाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पिछले एक साल में ऐसा कई बार हुआ है कि शालू ने फोन किया और मैने उसको किसी वजह से रिसीव नही किया था फिर से यह जानने की जेहमत भी नही उठाई कि आखिर वो क्यों फोन कर रह था? उसने इस बात कि एकाध बार औपचारिक रुप से शिकायत भी की लेकिन मैने गंभीरता से नही लिया...।

खैर ! अब आप हालात देखिए देहरादून के जिस अस्पताल में हम लोग भर्ती है वह शहर से एकदम बाहर ही है और आसपास शाकाहारी भोजन का कोई विकल्प भी नही था मैने बडा प्रयास किया कि आसपास कोई होटल मिल जाए लेकिन निराशा ही हाथ लगी। मेरे साथ मेरी बडी बहन भी अस्पताल मे पत्नि की देखभाल के लिए रुकी हुई है सो उसके खाने के लिए मै तनाव में था चलो एक बार खुद तो कुछ भी खाकर जीया जा सकता है।

जब यहाँ खाने का कुछ रास्ता न सूझा तो मुझे अपने बचपन को दोस्त शालू याद आया लेकिन अपने पूर्व के व्यवहार से थोडा सा संकोच भी हो रहा था फिर भी पता नही किस अधिकार से शालू को फोन किया और अधिकाबोध के साथ कह दिया कि शालू भाई आपकी मदद की जरुरत है एक टाईम अस्पताल मे खाना भिजवाओं अब शालू का ये बडप्पन ही था कि उसने एक सैकेंड भी नही लगाया और मुझे आश्वस्त किया कि भाई आप बिल्कुल भी खाने की चिंता न करें मै डेली खाना भिजवा दिया करुंगा...। मै निशब्द हो गया था...। शालू का घर मेरे घर के बिल्कुल पास ही है एक तरह से वह मेरा पडौसी भी है उसने दोस्ती और पडौसी दोनो का धर्म इतनी बखुबी से निभाया है कि मै उसके वजूद के समक्ष नतमस्तक हो गया हूँ।

आज लगभग 10 दिन हो गयें है शालू के घर से डेली दोपहर का बेहतरीन किस्म का भोजन आ रहा है जबकि उसका घर यहाँ लगभग 15 किमी.तो होगा ही।खाने को देखने के बाद यही लगता है कि जिसने भी भेजा है बडी आत्मीयता के साथ भेजा है,जबकि शालू बनिया है जिसको हम कंजूस कौम के रुप मे सुनते आयें है। शालू के यहाँ से भोजन दाल,चावल,रोटी,अचार और स्वीट डिश के साथ आता है। मै निशब्द हूँ...अभिभूत हूँ और अपने वजूद के बौनेपन पर ग्लानि से भी भरा हुआ हूँ।

ऐसे बुरे वक्त मे जब मेरे तथाकथित अजीज़ो का कुछ अता पता नही है ऐसे भी शालू जैसा मेरा आम दोस्त बेहद खास हो कर अपनी दोस्ती के फर्ज़ को निभा रहा है उसके इस बडप्पन को मै सलाम करता हूँ....।

अनुरागी जी/सुशील उपाध्याय जी/योगी जी/डा.कृष्ण रोहिल जी

यें चार लोग और है जिन्होनें इस बुरे दौर मे मेरा हौसला अफजाई की है और भले ही उतना प्रत्यक्ष समय न दे पाएं हो लेकिन सूक्ष्म रुप से इनकी हितचिंताएं और शुभकामनाएं मुझे मानसिक बल देती रही इसके लिए मै इनका भी तहे दिल से शुक्र गुज़ार हूँ....।

...बस अब यह मित्र पुराण यही बंद करता हूँ जिसे अक्सर भावनात्मक मुज़रे का तमगा दिया जाता रहा है और भी कुछ नाम है जिन्होनें आम होते हुए भी अपने खास होने का अहसास कराया है मै उनके प्रति भी अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ...।

उन अजीज़ दोस्तों का भी शुक्रिया जिन्होनें मुझे बुरे वक्त में नितांत अकेला छोड दिया तभी मैं उनके व्यामोह से मुक्त होकर अपने आस पास फैले हुई अच्छे इंसानो को दोस्त के रुप में महसुस कर पाया....।

अपने निरापद अपराधों की क्षमा याचना सहित....
डा.अजीत

2 comments:

  1. श्री अजीत जी आपका संस्मरण बहुत संवेदनशील है यहाँ मै एक बात कहना चाहता हूँ दोस्त बहुत मुश्किल से मिलते है |और यह आपका सौभाग्य है कि मित्र आपके साथ है |

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  2. सब शीघ्रातिशीघ्र ठीक हो, कुशल मंगल हो...बच्चे का स्वास्थय पूर्ण ठीक हो..यही दुआ है. अनेक मंगलकामनाएँ.

    मित्रों की पहचान तो कठिन समय में ही होती है.

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