Tuesday, March 29, 2011

हास्पिटल के कुछ पात्र



भले ही मैं यहाँ अपना सबसे बुरा वक्त गुजार रहा हूँ लेकिन फिर भी अस्पताल की भागदौड में जब भी फुरसत में सुस्ताने बैठता हूँ तो अस्पताल के कुछ चेहरे मेरी आखों के सामने बरबस दौड जातें हैं कहते हैं कि दूनिया मे भांति-भांति के लोग रहते है इसी तरह अस्पताल मे भी काम करने वालों कर्मचारियों की भी एक अलग ही वैरायटी है यहाँ मै उनमे से कुछ पात्रों का जिक्र कर रहा हूँ।

सोनाली सिस्टर

सोनाली सिस्टर इस अस्पताल की सबसे अनुभवी नर्स में से एक है जिस दिन हमारा बालक बालक पैदा हुआ यही सिस्टर नाईट ड्यूटी पर थी।जब लेबर पेन शुरु हुआ तब हम लोग बडे घबरायें हुए थें लेकिन सोनाली सिस्टर एकदम कूल थी वैसे तो यें प्रतिदिन इन सब चीज़ो की अभ्यस्त रहती है लेकिन वो आत्मविश्वास से पूर्ण थी उसने डिलिवरी को बडे परिपक्व ढंग से सम्पन्न करवाया दीगर बात यह रही कि जब पत्नि ओ.टी. में थी तब सोनाली सिस्टर नें सब कुछ मैनेज़ किया अस्पताल की गाईनिकोलाजिस्ट तो उस समय ओ.टी. मे पहूंची जब बच्चा पैदा हो चुका था हालांकि उसने अपनी फीस पूरी ली है। सोनाली सिस्टर का प्रोफेशनल पक्ष उज्ज्वल है लेकिन पर्सनल रुप से वह उतनी ही अमानवीय,संवेदनहीन,रुखी और तथाकथित रुप से हार्डकोर प्रेक्टिकल नर्स है। जब तक पत्नि प्राईवेट रुम में प्रसूति के रुप मे भर्ती रही तब तक सोनाली सिस्टर की नजरे इनायत रही वो अपना काम बखुबी करती रही लेकिन जैसे मैने अस्पताल का प्रसव संबन्धी कार्य का भुगतान किया तो अस्पताल ने हमे डिस्चार्ज़ स्लिप थमा दी अब समस्या यह बनी कि चूंकि अभी बच्चा नर्सरी मे रहेगा तो फिर बालक की मम्मी कहाँ रहेगी? मैने अस्पताल के मैनेजर से बात करके जिस प्राईवेट रुम मे हम भर्ती थें उसको ही रुम चार्ज़ पर ही ले लिया। इसके बाद सोनाली सिस्टर का नजरिया ही बदल गया कल तक सेवा की प्रतिमूर्ति और निपुण कर्तव्यनिष्ठ नर्स अब कायदा प्लस कानून बताने वाली कठोर प्रशासक बन गई उसे हमारा इस तरह से अस्पताल मे रुकना नागवार गुज़रा।

वैसे तो सोनाली सिस्टर कुछ कर नही सकती थी लेकिन जो उसके बस में था उसका उसका खुब प्रयोग किया मसलन हम लोग जच्चा के भोजन के लिए दाल/खिचडी अभी तक अस्पताल मे ही पका रहे थे और चाय वगैरह भी अस्पताल के चूल्हे पर ही बना लेते थे,सोनाली सिस्टर नें अपना तुगलकी फरमान जारी कर दिया कि यह गैस अस्पताल के अंदरुनी कामों के लिए है खाने बनानें के लिए नही इसका प्रयोग ओ.टी के उपकरणो को उबालनें के लिए किया जाता है सो आप यहाँ खाना मत बनाया करें। उसके इस ब्यान के बाद हम एकाध दिन सहमें-सहमें से रहें क्योंकि यहाँ देहरादून मे और कोई ऐसा जरिया नही था जहाँ से जच्चा के लिए हल्का भोजन बन कर आ सके।

अगले दिन मैने अस्पताल के मैनेजर से अपनी समस्या का जिक्र किया तो उसने बडी आत्मीयता से कहा कि कौन रोकता है आपको? आप खाना पका सकतें है,चाय बना सकतें है वो भी साधिकार। बस इसके बाद हमने सोनाली सिस्टर को उपेक्षित करते हुए खाना-पकाना जारी कर दिया इस बात से वह और भी चिढ गई और एक दिन फिर हमें टोक दिया बोली आप तो अपने लिए एक छोटे चूल्हे की व्यवस्था करने वाले थें क्या हुआ चूल्हा आया नही क्या? चूंकि मैं इस मसले पर अस्पताल के मैनेजर से विधिवत रुप अनुमति ले ली थी सो अब मैनें सोनाली सिस्टर को थोडा सख्त लहज़े में बता दिया कि हम लोग वैसे ही परेशान है आप और परेशानी खडी करने की कोशिस न करें लेकिन वो ढीठता से अपनी बात अडी रही और विदेश गये अस्पताल के मालिक डाक्टर का हवाला देते हुए कहा कि डाक्टर साहब यहाँ खाने-पकाने की किसी को परमिशन नही देतें है साथ ही उसने ओ.टी.के लिए चूल्हे की उपयोगिता का तर्क भी दिया हमनें उसको पुरी तरह से इगनोर कर दिया। अब सोनाली सिस्टर रोज़ाना नाईट ड्यूटी पर आती हैं और हमारी शक्ल देखकर भुन कर रह जाती है साथ रोज़ाना हमारी यहाँ से जल्दी विदाई की भी दुआ करती है जिसके हमें सख्त जरुरत भी है।

अस्पताल के मैनेजर-नेगी जी

अस्पताल के कर्मचारियों के लिए वें एक कठोर प्रशासक है सुबह आतें ही सभी की क्लास लेतें है। कर्मचारी की गल्ती पर सीधे उसके मुँह पर ही डांट देना उनकी प्रशासनिक कार्यकुशलता का परिचायक है। जब मैने उनसे अपनी वास्तविक समस्या बताई कि इस शहर में मै एकदम अंजान हूँ कुछ मित्रादि हैं भी तो वें यहाँ से भौगोलिक रुप से ज्यादा दूरी पर रहतें है तो उन्होनें ने अस्पताल में वही कमरा हमें दे रुम चार्ज़ पर दे दिया जिसमें हम रुके हुए थें साथ ही गैस पर खाने-पकाने की भी अनुमति दे दी जिससे हमें बडी राहत मिली। सोनाली सिस्टर के रुखे व्यवहार पर जब मैने उनके समक्ष आपत्ति जताई तो उन्होनें व्यक्तिगत रुप से सोनाली सिस्टर को आदेश दिया कि हमें खाना बनाने में चकल्लस न करें हालांकि सोनाली सिस्टर को यह बात भी नागवार ही गुजरी और उसने अस्पताल के आंतरिक अनुशासन का सहारा लेकर डाक्टर साहब का सन्दर्भ दे दिया जिससे यह पता चल सके कि मैनेजर से भी उपर वह डाक्टर साहब के विश्वसनीय लोगों मे से एक हैं। नेगी जी एक खासियत और है वें सुबह आतें ही सभी मरीज़ो के कमरों मे जातें है और सभी कि कुशल-क्षेम पुछतें है यह उनके नित्यक्रम का एक हिस्सा है।

भूषण,रुपाली,शशि सिस्टर और अन्य....

भूषण लगभग बाईस साल का नौजवान है कान में ईयरफोन और जेब मे मोबाईल अक्सर रहता है उसका काम अस्पताल मे भर्ती होनें वालें मरीज़ो का बिलिंग आदि का काम करने का है ड्यूटी के समय वह आक्सीज़न का सिलेंडर भी मेन सप्लाई रुम मे बदलता है। अभी युवा है थोडा मसखरा है साथ ही मुझे लगता है कि प्रेम मे भी पडा हुआ है क्योंकि मै उसको फोन कर अक्सर गुप्त भाषा मे घंटो बाते करता और फुसफुसाता देखता हूँ अस्पताल के कैमिस्ट से भी उसकी अच्छी ट्यूनिंग है शाम को अक्सर उसके केबिन मे का जाकर नीचे ही बैठ जाता है। प्रेम की बात पर मुझे इसलिए भी शक हुआ कि एक दिन मैने उसके कैमिस्ट के केबिन मे अपने फोन से किसी को गाना सुनाते हुए सुन लिया सब उसका मज़ा ले रहे थें और गाना भी कौन सा भींगे होंठ तेरे....प्यासा दिल मेरा...बस फिर इसके बाद मुझे लगा कि भूषण भईया की जरुर किसी से आंखे चार हो रखी हैं।

रुपाली सिस्टर कम रिसेप्शनिस्ट है यह भी युवा है साथ ही काम भी काफी करती है लेडी डाक्टर के मरीजो का हिसाब किताब यह ही रखती है पत्नि की डिस्चार्ज़ स्लिप भी रुपाली नें ही बनायी थी, भूषण के साथ भी इसका सखा भाव ही झलकता है दोनो अक्सर मोबाईल पर फनी रिंगटोनस और गाने सुनते देखे जा सकतें है।

शशि सिस्टर भी अस्पताल की वरिष्ठ नर्स में से एक ही दिन मे ड्यूटी पर रहती है। शशि सिस्टर सौम्य,सभ्य,संवेदनशील और एक ममत्व से पूर्ण एक परिपक्व नर्स है इन्होनें हमारा बडा ख्याल रखा है ऐसे लोगो का सम्मान करने का मन करता है।

एक सिस्टर और है मैं इनका नाम नही जान पाया हूँ अक्सर रिसेप्शन पर बैठा देखता हूँ चूंकि इनकी शक्ल यूपी की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती से काफी मिलती है और देखने में उनकी बडी बहन लगती है सो मैने इनका नाम खुद ही माया सिस्टर रख लिया है। माया सिस्टर भी भद्र,सौम्य और सम्वेदशील महिला है मै उनको हमेशा विन्रम ही देखता हूँ भले ही सामने वाला कितना उत्तेजित अवस्था मे न हो। माया सिस्टर भी लगभग प्रतिदिन ही मुझसे बच्चे की कुशल क्षेम पुछती है साथ ही अधिकार के साथ कहती है कि भईया अब नीलम की तबीयत कैसी है? उनकी इसकी आत्मीयता का बडा प्रशंसक हूँ।

कृष्णा दीदी

अगर इस पोस्ट मे मै कृष्णा दीदी का जिक्र नही करुंगा तो खुद के साथ नाइंसाफी होगी। कृष्णा दीदी अस्पताल में सफाईकर्मीं है लेकिन उनकी कर्तव्यपरायणता काबिल-ए-तारीफ है दिन मे कईं बार हमारे रुम से लेकर अस्पताल के कोने-कोने झाडु-पोंछा लगाती है वह भी निष्ठाभाव के साथ ऐसा नही कि बस खानापूर्ति के लिए यह सब कर रही हो दिन भर मैं कृष्णा दीदी को सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ काम करते देखता हूँ जबकि नाईट ड्यूटी पर जो सफाई करने वाली आती है वो एक नंबर की कामचोर और बातूनी महिला है जिस दिन हमारा बच्चा पैदा हुआ उसी सुबह रुम मे आ गई थी बोली कि हमारा ईनाम लाओं जबकि उसको पता था कि इस बच्चे के साथ प्राब्लम है क्योंकि रात में वो भी ओ.टी. में थी लेकिन बडी बेशर्म महिला है साथ मे फैशनपरस्त भी उम्र पचास के पार की होगी और धुप मे जब निकलती है तो युवा लडकी की तरह छाता लेकर चलती है ताकि झुलस न जाएं।

खैर! कृष्णा दीदी की जितनी तारीफ की जाएं उतनी ही कम हैं ऐसे लोगो के सहारे ही दूनिया में काम चल रहा है जो अपने कर्तव्यों के पक्के हैं। जिस दिन मै यह अस्पताल से जाउंगा मेरा मन है कि उसको जरुर इनाम दे कर जाउंगा बिन मांगा इनाम जोकि मेरी एक कृतज्ञता होगी उनकी कार्यशैली के प्रति....।
अब विराम देता हूँ कुछ जरुरत से ज्यादा ही बडी पोस्ट हो गई है लेकिन इतने सारे पात्रों को समेटना कोई आसान काम नही था ये जब है कि मैने नर्सरी के नर्सिंग स्टाफ का जिक्र भी नही किया है जिनसे मुझे हर तीन घंटे बाद मिलना पडता है उनके भी किस्से अजीब ही हैं....लेकिन फिर कभी।
डा.अजीत

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