Sunday, March 27, 2011

एक इम्तिहान और...

बात लिखने मे अजीब लग रही है लेकिन पिछले एक पखवाडे से मै जिस मन:स्थिति से गुज़र रहा हूँ उसको शब्दों मे ब्याँ कर पाना आसान नही हैं फिर भी आज थोडी सी फुरसत मिली तो अपनी इस डायरी मे यह अनुभव भी दर्ज कर रहा हूँ।

हुआ यूं है कि अगले महीने यानी अप्रैल मे 26 तारीख के आसपास मेरे यहाँ एक नया मेहमान आना संभावित था मसलन पत्नि की डिलिवरी होनी थी।हम लोग उसी के हिसाब से अपने कार्यक्रम तय कर चुके थे कि कहाँ डिलिवरी होगी आदि-आदि।17 मार्च की सुबह जब मै अपने बेटे राहुल का एडमिशन नई क्लास में करवा कर घर लौटा तो पत्नि नें मुझे बताया कि उसे कुछ तकलीफ हो रही है मैने मामले को थोडा हल्के मे लिया और रुटीन की तरह यूनिवर्सिटी चला गया लेकिन थोडी देर बाद पत्नि ने आग्रहपूर्ण ढंग से मुझे फोन किया कि हमें एक बार अपने डाक्टर का परामर्श ले लेना चाहिए। मैं सहमत होकर तुरंत घर लौट आया और पत्नि को लेकर डाक्टर के यहाँ पहूंच गया। लेडी डाक्टर नें जांच के बाद जो बात हमें बताई उसने हमारे पैरो तले की जमीन खिसका दी...। डाक्टर ने बताया कि अपरिहार्य कारणोंवश गर्भस्थ शिशु की आज ही डिलिवरी करानी पडेगी क्योंकि लिक्विड का निकलना जारी हो गया था अभी 26 मार्च को गर्भकाल के आठ माह पूर्ण होनें थे लेकिन ये क्या हुआ कि लगभग सवा महीनें पहले ही यह डिलिवरी होने का दुर्योग बन गया था। हम दोनों गहरी चिंता मे डूब गये थें क्योंकि हमारा पहला बेटा भी माईल्ड सेरेब्रल पाल्सी से पीडित रहा है और ईश्वर ने इस दूसरें बालक के साथ भी कैसा संयोग बना दिया है।

खैर! डाक्टर ने कहा कि आप जल्दी अपना निर्णय बता दीजिए क्योंकि अब इस बच्चे को गर्भ मे ज्यादा समय तक रोक पाना संभव नही होगा, हमारे पास डिलिवरी के अलावा कोई विकल्प नही था सो अब क्या किया जाए इस दुविधा मे पडे हुए हम चिंतामग्न सोचते रहे तभी डाक्टर ने यह भी कहा कि इस समय डिलिवरी के लिए किसी योग्य डाक्टर की इतनी जरुरत नही है जितनी कि एक नवजात शिशुरोग विशेषज्ञ की क्योंकि यह एक प्रीमैच्योर बेबी होगा सो इसकी एक्सक्लूसिव केयर की जरुरत पडेगी जोकि हरिद्वार में उपलब्ध नही है सो एक विकल्प यह भी ठीक रहेगा कि आप यह डिलिवरी देहरादून मे करायें।

इसके बाद हमें भी यही ठीक लगा और आनन फानन मे देहरादून के लिए रवाना हो गयें इस आकस्मिक आपदा मे एक मित्र नें इतना आत्मीय सहयोग प्रदान किया कि मेरे पास उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए भी शब्द नही हैं...बस यही कहूंगा कि ऐसे निस्वार्थ और भलेमानुष लोगो के तपोबल पर ही यह दूनिया कायम है।

देहरादून मे जिस प्राईवेट नर्सिंग होम हमे रेफर किया गया था वहाँ पहूंचने पर पता चला कि उसके स्वामी डाक्टर दम्पत्ति विदेश यात्रा पर है बडी दुविधा की स्थिति थी फिर अपने डाक्टर से मशविरा किया गया तब उन्होनें ने आश्वस्त किया कि उनकी अनुपस्थिति मे जो डाक्टर मरीज़ देख रहें है वे भी उनके परिचय के हैं और काबिल भी है,बस इसके बाद यही भर्ती हो गयें डाक्टर ने जांच के बाद बताया कि कल तक यदि लेबर पेन रुक जाए तो बेहतर रहेगा लेकिन ऐसा हो नही पाया रात को ग्यारह बजे लेबर पेन शुरु हो गया और ठीक 1.10 पर एक बालक(पुत्र) का जन्म हुआ।

वैसे तो नार्मल डिलिवरी हुई थी लेकिन बाल रोग विशेषज्ञ जोकि ओ.टी. में थें और सारे केस पर नज़र बनाए हुए थें क्योंकि मैने उन्हे अपने पहले बालक की क्लीनिकल हिस्ट्री बता दी थी, वो बालक को लेकर बडी हडबडी में एन आई सी यू(नर्सरी) की तरफ रवाना हुए और मुझे भी साथ आने के लिए बोल गये। मैं घबरा गया था लेकिन जैसे तैसे वहाँ पहूंचा तो डाक्टर ने मुझे बताया कि बालक ने जन्म के बाद ठीक ढंग से क्राई नही किया है वह रोया तो जरुर लेकिन क्लीनिकल पाईंट आफ व्यूव से एक्सक्लूसिव रेंज की क्राई नही है सो यह एक चिंताजनक पहलू हो सकता है।

मेरे सामने 6 साल पहले का अतीत घुम गया जब राहुल पैदा हुआ था उसके साथ भी कमोबेश इसी तरह की दिक्कत आई थी लेकिन वो मैच्योर डिलिवरी थी बाकि रोया वह भी काफी देर बाद था जब आक्सीजन लगाई गई थी।

डाक्टर अपने प्रयासों मे तत्परता से लगा हुआ था और मै असहायता के बोध के साथ उसको देख रहा था मैने डाक्टर से आग्रह किया कि वह इस समय जो अपनी बेहतरीन कोशिस कर सकता है वह करें भले ही कितनी ही महंगी दवाईयों का प्रयोग क्यों न करना पडें क्योंकि मैं एक और सीपी चाईल्ड के लिए मानसिक रुप नही तैयार नही था।

थोडी देर बाद मै बाहर आ गया और फिर डाक्टर के आने की प्रतिक्षा करने लगा...थोडी देर बाद डाक्टर साहब भी बाहर आ गयें उन्होनें ने मुझे आश्वासन दिया कि अब बालक बहुत बेहतर स्थिति मे है उन्होने कहा कि क्राईसिस टाईम अब गुज़र गया है जैसे उन्हें पहले लग रहा था कि बच्चे को वेंटीलेटर की जरुरत पडेगी लेकिन बाद मे बच्चा ठीक से सांस लेने लगा था सो उसकी जरुरत नही पडी।

17 मार्च से लेकर अब तक यानि 27 तक मै और पत्नि यही अस्पताल मे बनें हुए है बच्चा अभी नर्सरी मे ही है और धीरे-धीरे रिकवर हो रहा है आज रात को डाक्टर साहब ने उसकी मां को ब्रेस्ट फीडिंग के लिए कहा है इससे पहले उसे फीडिंग ट्यूब से ही मां का दूध दिया जा रहा था।

अस्पताल के थकाऊ माहौल और मानसिक यंत्रणा के इस दौर से मै गुज़र रहा हूँ पता नही कि यह मेरी नियति है या प्रारब्ध कुछ तय नही कर पा रहा हूँ। आज थोडी राहत मिली तो आपसे अपनी मन:स्थिति शेयर कर ली है। डाक्टर का मत है कि बच्चा शत प्रतिशत रिकवर हो जायेगा लेकिन फिर भी मन मे एक डर हमेशा बना रहता है।

आपकी दुआओं का तालिब हूँ....।

इस दस दिन के तज़रबे ने बहुत कुछ सिखाया है कुछ दोस्त याद आयें तो कुछ दुश्मन दोस्त...बहुत सी परिभाषाएं बदली है..अपने-बैगानो का फर्क समझ मे आया है जिनके बारें मे धीरे-धीरे मै खुलकर लिखूंगा। अभी तो अस्पताल का जीवन जी रहा हूँ और शायद यहाँ से 1 अप्रैल तक ही मुक्ति मिलें....।

बच्चे की कहानी चित्रों की जुबानी....


डा.अजीत

3 comments:

  1. CHANGE THE TITLE PLZZZ...MUSEBAT NAI AAYE BHAGVAN KA BHEJA PYARA UPHAR B AAYA HAI....:)

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  2. बन्धु आपके आग्रह पर पोस्ट का शीर्षक बदल दिया गया है। मुझे भी अब यह लगा कि यह मुसीबत नही है बल्कि ज़िन्दगी का एक इम्तिहान है...सो अब एक इम्तिहान और सही!

    आभार
    डा.अजीत

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  3. अजीत भाई मै सहपरिवार यह दुआ करता हूँ कि मिहिर के जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ आयें, आपकी तपस्या है जो आपने अपने ब्लॉग में लिखी है. मेरा यह भी मानना है कि भगवान् ने आपको कष्ट जरुर दिए हैं लेकिन उनकी निवृति भी जल्द ही कर दी है. हर शुभ और महत्वपूर्ण कार्य इतनी आसानी से नहीं होता, कष्टों का आना यह संकेत है कि रात अब ख़त्म होने वाली है और सुबह आने ही वाली है. मुझे लगता है कि आप बहुत धन्य हैं इतने सुंदर प्यारे दो बच्चों के पिता हैं. और आपसे ज्यादा खुश किस्मत ये दोनों शेर हैं जिन्होंने आपके घर में जनम लिया. God bless you & your family..!!

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