Tuesday, March 8, 2011

तनाव प्रबन्धन

जिस विभाग मे मै काम करता हूँ वह विश्वविद्यालय का मनोविज्ञान विभाग है मतलब मानसिक स्वास्थ्य के उन्नयन के लिए अब तक सैकडों शोध प्रबन्ध यहाँ के यशस्वी प्रोफेसर के कुशल निर्देशन मे लिखें जा चुके हैं।साल भर देश भर मे आयोजित होने वाली सेमीनार/कांफ्रेंस मे विभागीय भागीदारी जबरदस्त रहती है। देश मे मनोविज्ञान की विश्वविद्यालय स्तरीय पढाई के आरम्भिक दौर के विभाग के रुप मे यह शुमार रहा हैं,1962 से पीजी स्तर की पढाई हो रही है और यही स्थिति शोध के मामलें मे है।

इस भूमिका के साथ जो बात मै कहना चाह रहा हूँ वह विरोधाभासी किस्म की है मतलब विषय का अध्यापन व्याख्यानों तक सीमित हो जाना तथा आचरण में उसका अनुशीलन कर पाना सारी अकादमिक उपलब्धि को शुन्य कर देती हैं।प्रतीकात्मक रुप से इसलिए सन्दर्भ रख रहा हूँ क्योंकि इससे मेरे कुछ विभागीय लोगो को बदहजमी हो सकती है और वें अपना नज़ला मुझ पर उतार सकतें है क्योंकि मै विभाग की सबसे कमजोर ईकाई हूँ मतलब तदर्थ असि.प्रोफेसर।
मेरे गुरुजी जिनके कुशल निर्देशन में मैने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है उनका व्यवहार अपवाद स्वरुप हैं मै इसलिए नही लिख रहा हूँ कि वें मेरे गुरु रहें है बल्कि सारा विश्वविद्यालय उनकी सहज़ता का साक्षी है। वें अपने स्तर से किसी को ऐसी कभी असुविधा नही होने देतें कि किसी को मानसिक परेशानी हो। विभाग के एक अन्य विद्वान भी हैं वें मनोविज्ञान विषय के जाने माने विद्वान हैं देश भर में अधिकांश सेमीनार आदि में उनका आना जाना लगा रहता है लेकिन पता नही ऐसी क्या बात है कि वें हमेशा इस बात कि फिराक मे रहतें है कि कैसे अमुक व्यक्ति को तनाव दिया जाए। विश्वविद्यालय कर्मीयों का प्रमोशन कैसे होगा इसकी उन्हे जानकारी भले ही न हों लेकिन विश्वविद्यालय में किसका प्रमोशन कैसे रुकना है उसकी जानकारी उन्हे हमेशा रहती है। कागज़ो के पक्कें और लोगो को उनका कैरियार तबाह कर देने की चेतावनी देने की दुर्वासा प्रवृत्ति उनके अन्दर इस कदर हावी है कि वें खुद भी तनाव मे रहतें है और अपने सहकर्मीयों को भी तनाव में रखतें है।

मेरे शक्ल उन्हें विशेष रुप से नापसंद है और हमेशा इस बात की तलाश मे रहतें है कि कैसे मुझे प्रेम-पत्र(अनुशासनात्मक कार्यवाही की चेतावनी का पत्र) थमाया जाएं? मै वैसे तो अपनी तरफ से भरसक प्रयास करता हूँ कि ऐसा कोई अवसर पैदा न होने दूँ लेकिन कमियां निकाल लेने के लिए सायास कुछ भी तर्क विकसित किए जा सकतें है। इस शैक्षणिक सत्र की नियुक्ति के समय उन्होनें ने मुझे हकबात का दावा करने के अपराध मे विश्वविद्यालत प्रशासन के समक्ष कदाचार/अपराधी सिद्द करनें का भरसक प्रयास किया जमकर चिट्ठीबाजी की लेकिन कुछ मेरे शुभचिंतकों की वजह से मुझे नौकरी करने का अवसर मिल ही गया यह बात उनको इस कदर नागवार गुजरी कि विभागीय समय चक्र मे मुझे ऐसे लेक्चर पढाने के लिए दिए गयें जो मैने पहले के सालों में न पढायें हो ताकि मै असुविधा मे रहों लेकिन अपन के लिए मनोविज्ञान विषय मे ऐसी कोई असुविधा विषय के स्तर पर ईश्वर की दया से नही है।
अब कैसे एक मनोविज्ञान का विद्वान दूसरे के लिए मानसिक असुविधा पैदा कर सकता है इसका ऐस उदाहरण यह भी है कि सुबह दस से ग्यारह मेरा पहला लेक्चर दिया गया है इसके बाद दो घंटे का ब्रेक फिर एक बजे से तीन बजे तक लगातार दो लेक्चर ताकि मै लंच के समय भी घर न आ सकूँ। सुबह दस बजे एक बार विभाग मे जाओं फिर तीन बजे ही घर आओं खैर ! मैने इसके साथ भी समायोजन स्थापित कर लिया है लेकिन वें इस बात की फिराक मे रहतें है कि संयोग से यदि मै तीन बजे से थोडा सा पहले विभाग से निकल आया( यदि छात्र न हों तो) बस फिर वें एक चिठ्ठी तैयार करके अगले दिन मुझे थमा देंगे कि आप कक्षा मे नही पायें जाते है आपके विरुद्द अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है।

अब मैं इस दुराग्रही और पूर्वाग्रही प्रवृत्ति से तंग आ गया हूँ क्योंकि मै जिस पृष्टभूमि से ताल्लुक रखता हूँ वहाँ पर सीन ही अलग है और मै नौकरी आत्म सम्मान के लिए कर रहा हूँ जरुरत के लिए नही यह बात उनके संज्ञान में नही है।

आज इतना सब इसलिए लिखा है क्योंकि मुझे आज शाम ही पता चला है कि आज मेरे आने के बाद उन्होनें फिर से एक चिट्ठी तैयार कर ली है जो कल मुझ थमायी जायेगी। मै यह समझ नही पा रहा हूँ कि किस प्रकार से प्रतिक्रिया करुं क्योंकि वें भी मेरे अध्यापक रहें है मै किसी विवाद मे नही पडना चाहता हूँ क्योंकि अभी मार्च-अप्रैल मे जिस पद पर मै काम कर रहा हूँ उस पर स्थाई नियुक्ति के लिए साक्षात्कार होनें वाले है तथा ये श्रीमान मुझे प्रोवोक कर रहें है कि मै कुछ प्रतिक्रिया करुं और ये मुझे साक्षात्कार के लिए अयोग्य घोषित करवा दें।

यह सब वृतांत कहने का मकसद सिर्फ इतना है कि लोगो के मानसिक स्वास्थ्य के लिए व्याख्यान देने और शोध करने प्रबुद्द बुद्दिजीवी लोग भी मानसिक स्तर पर कितने दुराग्रही हो सकतें है जबकि स्ट्रेस मैनेजमेंट पर इनके अतिथि व्याख्यान होतें है,जबकि तस्वीर का दूसरा पहलु बडा ही अजीब किस्म का है।

यह सत्र मेरे लिए एक निर्णायक सत्र की भूमिका मे हैं यदि विभाग मे स्थाईत्व मिल जाए और न भी मिलें दोनो ही दिशा में मै तो परम पिता परमेश्वर से यही प्रार्थना करुंगा कि ऐसे लोगों को सद्बुद्दि प्रदान करें ताकि वें अपनी मानसिक उर्जा का सदुपयोग कर सकें किसी के अहित के लिए नही...।

डा.अजीत

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