Tuesday, September 28, 2010

यार मकन्दां-पार्ट टू

यार मकन्दां के नाम से मै एक पोस्ट पहले भी लिख चूका हूं जिस पर एक भी टिप्पणी रुपी प्रसाद नही मिला शायद लोगो को निजी किस्म की बातें ज्यादा पसंद नही आती मेरे एक मित्र का कहना भी है कि मेरी रचनाओं के साथ साधारणीकरण होना थोडा कठिन काम होता है मै ज्यादा व्यक्तिनिष्ठ हो कर लिखता हूं...खैर ! सबके अपने-अपने मत हैं अब मेरी शैली ही ऐसी है तो मै क्या कर सकता हूं ? और रही बात कमेंट्स की तो उसके लिए मै पहले से ही ज्यादा आशावादी नही हूं क्योंकि मुझे पता है ब्लागजगत मे बिना पारस्परिक स्तुतिगान के कुछ नही मिलता है...न प्रशंसा और न आलोचना।

यार मकन्दां को दोबारा से परिभाषित करने की जरुरत नही है जिन महानुभावों ने मेरी पहली पोस्ट पढी होंगी वे अच्छी तरह से जानते है कि अडी-भीड का यार मकन्दां का क्या अर्थ है यदि आप यह पोस्ट पहली बार पढ रहें है तो कृपया इसका पहला पार्ट जरुर पढ लीजिए आपको पता चल जाएगा कि यार मकन्दां किस बला का नाम हैं।

मैने अपनी उस पोस्ट के अंत मे जिक्र किया था कि यहाँ हरिद्वार मे भी मेरा एक अडी-भीड का यार मकन्दां है आज उनके ही बारें मे लिखने जा रहा हूं। जब तक मै गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय,हरिद्वार मे शोध अध्येता रहा तब तक मै उनको न नाम से जानता था और न ही शक्ल से लेकिन दिसम्बर-2007 मे जैसे ही नौकरी करनी शुरु की तभी से उनसे परिचय हुआ तब भी एक सामान्य सा परिचय जिसमे ढेर सारी औपचारिकता और संकोच भरा हुआ था।

धीरे-धीरे यह परिचय निकटता मे तब्दील होता गया और कैसे हुआ यह मुझे खुद भी नही पता वो शायद देहात की पृष्टभूमि एक वजह हो सकती है या एक आंतरिक परिपक्व संवेदना थी जो हमे करीब ले आयी और आज हम अच्छे परिपक्व मित्र है।

विस्तार से लिखने से पहले इन मित्र का नाम आदि आपको पता दूं जो अब मेरे यार मकन्दां श्रेणी के मित्र है। डा.अनिल कुमार सैनी जी मेरी ही नाम राशि के है और हमारे विश्वविद्यालय मे राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर है मेरी ही तरह तदर्थ बिरादरी से हैं।

अनिल जी अवस्था,अनुभव और परिपक्वता से मुझ से बहुत बडे है लेकिन मानवीय सम्बन्धों की समझ के मामले मे मै उनका कायल हूं इसे आप मेरा अपेक्षाबोध कह सकते है या मानवीय आशा भी आज तक लगभग चार वर्ष हो गयें हमारी मित्रता को लेकिन मैने जब कभी भी उनसे कुछ चाहा चाहे वो मानसिक सम्बल हो या आर्थिक सहयोग उन्होने एक बार भी मुझे नही निराश नही किया है,मेरे सन्दर्भ में जैसे ना कहना उनके शब्दकोश मे ही नही है। जबकि मै उनके आजतक एक भी काम नही आ सका लेकिन फिर भी उन्होनें निस्वार्थ मेरे साथ उन मुश्किल पलों मे खडे होकर न केवल मेरा साथ दिया बल्कि वो हौसला भी जिसके बल पर मै मुश्किल हालात से बाहर निकल पाया।

बहुत ही सम्वेदनशील और परिपक्व बन्दां है,पारस्परिक सम्मान कैसे दिया जाता है ये मैने उनसे सीखा है एक बार नही हजार बार ऐसा हुआ है कि मै संकट मे था जिसमे मेरे आर्थिक संकट भी शामिल है उन्होनें बिना मांगे मदद की मेरी समस्या जैसे उनको सब पता हो कभी कहने की जरुरत ही नही पडी।

मै आज भी वो सुबह याद कर सिहरन से भर उठता हूं जब मेरी दादी जी (जो मेरे जीवन की सबसे बडी प्रेरणा है) को हार्ट अटैक आया था और पिताजी जी का हडबडाहट मे मुझे फोन आया कि जल्दी चले आओं मैने उनको एम्स मे भर्ती करने की व्यवस्था की और चूंकि मै खुद नौकरी कर रहा था इसलिए मेरा नैतिक फर्ज बनता था कि मै भी इस मुश्किल की घडी मे कुछ आंशिक ही सही आर्थिक सहयोग के साथ एम्स जाउं लेकिन आप यकीन नही करेंगे मेरी जेब एकदम खाली थी ऐसे मे मै घबरा भी गया था लेकिन तभी मेरे मन मे अनिल जी से सहयोग मांगने का विचार आया और ये उनका बडप्पन ही था कि मात्र पांच मिनट के नोटिस पर उन्होने जो बन पडा वो मुझे दे दिया और साथ ही ढांडस भी बधाया कि आप फिक्र न करें अगर और पैसो की जरुरत होगी आप फोन कर देना व्यवस्था हो जाएगी। उस घटना के बाद मेरे पास उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए शब्द नही बचे है उन्होनें मेरे सामने ही अपनी मकान मालकिन से किराये की राशि वापस ले ली जो कल ही उन्होंने दी थी और मेरे हाथ मे जितना धन वो उस समय एकत्रित कर सकते थे वो करके दे दिया वो सिर्फ पांच मिनट में।

इसी घटना के साथ एक मित्र और भी जुडे है जिनके प्रति भी आज मेरा कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहता हूं मेरे गुरुभाई डा.ब्रिजेश उपाध्याय जी उनसे मैने उस दिन उनकी कार उधार मांगी सुबह-सुबह नींद मे ही उन्होने एक पल भी नही लगाया और कहा घर आ जाओं और कार ले जाओं।

डा.अनिल सैनी जी अब हरिद्वार मे मेरे वो यार मकन्दें है जिनके बल पर मै यह आश्वस्त रहता हूं कि यदि अचानक कोई संकट आ जाए तो वो मेरे साथ मेरे साथ बिना शर्त और बिना स्वार्थ के खडें रहेंगे। आज तक मैने उनके मुहं से मेरे किसी काम के लिए ना सुनी ही नही चाहे वह अचानक गैस सिलेंडर का खत्म हो जाना हो या और कोई सकंट...।जबकि मै उनके किसी काम का नही हूं और न ही आज तक उन्होनें मुझे कोई काम बताया है विश्वविद्यालय के आंतरिक मामलो मे मै अक्सर उनकी सलाह लेता हूं...।

अब वो स्थाई नौकरी के लिए प्रयासरत है और बाहर अन्य महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों मे प्रयास कर रहें है अपने विषय मे तो उनकी गज़ब की पकड है ही साथ अपने विषय के एक्सपर्ट के साथ भी उनकी मिलनसारिता के कारण निजी किस्म सम्बन्ध है...ईश्वर ने चाहा तो वें शीघ्र ही स्थाई रुप से नौकरी मे आ जाएंगे।

उनके हरिद्वार छोडने की कल्पना करके मेरा मन बैठ सा जाता है क्योंकि वैसे तो यहाँ पर परिचय की एक लम्बी कडी मौजूद है लेकिन डा.अनिल सैनी जी का विकल्प एक भी नही है इस शहर मे वें ही मेरे यार मकन्दें है।

ईश्वर उनको शीघ्र सफलता देते मेरी तो यही मनोकामना है लेकिन ऐसे बन्दे से बिछडने की कल्पना केवल मुझे चिंतित कर देती है बल्कि मेरे मित्रों के मामलों मे प्राय: तटस्थ और उदासीन रहने वाली मेरी पत्नि भी अक्सर यह सोच कर चिंतित हो जाती है ठीक मेरी तरह...

डा.अजीत

2 comments:

  1. आपकी लेखन शैली अच्छी है, मगर आप अपने मित्रों की सलाह का ध्यान रखें और रचना लम्बी न हो तो ब्ब्बेह्तर नतीजा मिलने की संभावना है ! उम्मीद है अगले बार आपकी पोस्ट पर प्रतिक्रियाएं अवश्य मिलेंगी !
    शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  2. Dost ek saahil hai tufaano ke liye,
    Dost ek aaina hai armaano ke liye,
    Dost ek mehfil hai anjaano ke liye,
    Dosti ek khawaahish hai aap jaise dost ko paane ke liye !!

    jaisa ki bhai satish ji ne likha hai ki apki lekhan shaily achhi hai.
    or main bhi inki baat ka purntayya samarthan karta hu, wakai mein apki kalam shabdon ko achchhe se piroti hai. rahi baat pratikriya ki toh kehna chahunga ki jaise jaise kafila badhta jayega, pratikriyaon ki ginti bhi badhti jaygi.

    ReplyDelete