Wednesday, September 5, 2012

वक्त की मांग



वक्त बेरहम होता है,वक्त बडा संगदिल होता है ऐसे जुमले अभी तक फिल्में में खुब सुने थे लेकिन आजकल इसका भुक्तभोगी भी हो गया हूँ। हर वक्त शिकायत करते रहना किसी समस्या का कोई समाधान भी नही इसलिए आज ज्यादा विधवा विलाप नही करुंगा, पिछले एक पखवाडे से गुरुकुल की नौकरी छूट जाने के बाद मेरे मित्र,शुभचिंतको ने भरसक प्रयास करें कि मेरी ससम्मान वापसी हो जाए लेकिन कई बारे चीज़े अपने हाथ मे भी नही होती है कुछ लोग चाहकर भी आपका भला नही कर पाता है ऐसे मे इसे वक्त की दुहाई देकर आगे बढने के अलावा कोई विकल्प शेष नही बचता है।
सो आज एक पखवाडे के तनाव,सम्भावनाओं,अपेक्षाओं,सम्बन्धो के खुरदरेपन की रवायत के बीच यही लिखना पड रहा है कि कल से यानि 6 सितम्बर से मै फिर से गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय ज्वाईन करने जा रहा हूँ लेकिन बतौर एडहॉक असि.प्रोफेसर नही बल्कि अतिथि व्याख्याता के रुप में जिसको प्रति व्यख्यान के हिसाब से भुगतान किया जायेगा, दीगर बात यह है कि तकरीबन दस दिन पहले तक मै सार्वजनिक रुप से यहाँ तक अपने विभागाध्यक्ष साहब को भी यही दहाड कर कह रहा था कि मुझे गेस्ट फैकल्टी के रुप मे नही पढाना है लेकिन वक्त और हालात की मार ने मुझे फिर उसी जगह पर लाकर खडा कर दिया है जहाँ से ये सब बातें शुरु हुई थी तमाम भगीरथ प्रयासों के बावजूद भी जब कोई चारा न चला तो अंत: मैने यही फैसला किया है अब जैसा भी है वैसी ही सही यह जॉब करनी ही है।
गेस्ट फैकल्टी के रुप मे पढाने की कई तकनीकि दिक्कतें है लेकिन जब आपके पास कोई अन्य विकल्प न हो तो फिर दिक्कतों को स्वीकार कर आगे बढने के अलावा कोई चारा भी नही बचता है। गैस्ट फैकल्टी को 3 महीन के लिए परमिशन मिलती है जिसमे प्रति लेक्चर के हिसाब से पैसो का भुगतान किया जाता है विश्वविद्यालय प्रशासन की यह शर्त रहती है कि किसी भी सूरत में यह राशि 22000/- से ज्यादा नही होनी चाहिए यदि महीने मे कम दिन यूनिवर्सिटी खुलती है पैसों मे कटौती की जाती है कोई छूटी आदि का लाभ नही मिल पाता है आदि-आदि। ये भी एक अजीब विद्रुप बात है जिस विभाग मे मैने पिछले पांच सालों से पढाया है और जहाँ मेरे जूनियर टीचर 41000/- प्रति माह का फिक्स वेतन पा रहे है वहाँ मै अधिकतम 22000/- रुपये की प्राप्त कर सकूंगा वह भी तब यदि विभागाध्यक्ष साहब की नजरे इनायत रही तो...।
जब वक्त के फिकरे कस जाते है लोगो की निगाहे बदल जाती है कुकरमुत्ते की भांति सलाह देने वाले शुभचिंतक उग आते है कुछ करीबी दोस्त जरुरत से ज्यादा समझदार हो जाते  है और कुछ दोस्त दोस्ती के सम्पादन की कला का रिफ्रेशर कोर्स चलाने मे माहिर हो जाते है मै लम्बे समय से ये सब संत्रास भोग रहा हूँ इसलिए कोई नही पीडा नही है  और न ही मै दोषारोपण करके अपनी काहिली को कम करने या महान बनने जैसी कोई कोशिस कर रहा हूँ लेकिन एक बात जरुर दिल में आती है बार-बार कि आखिर ऐसी क्या चीज़ होती है जो आदमी को बदलने की जिद पर उतर आती है। खुद की नजरों मे गिरना और फिर खुद को सम्भाल कर लडखडाते हुए चलना बहुत मुश्किल काम है मैने यह महसूस किया है कि जब एक बार आपके समीकरण बिगड जाते है तब मित्रों की सामान्य सलाह भी व्यंग्य लगने लगती है और दुश्मनों की बातों पर प्यार आने लगता है।
वक्त,सलाह,दोस्ती,घर,परिवार,बच्चे,पत्नि और सम्बंधो का हरा-भरा संसार आपसे सतत श्रम साध्य सफलता की मांग रखता है यदि आप एक बार चूक गये तो फिर आजीवन आप स्पष्टीकरण देते रहिए कोई राहत नही मिलने वाली है।
मेरे एक पूर्व मित्र कहा करते थे कि यह चौकने का दौर है आपको कोई भी कभी भी चौका सकता है आज मुझे उनकी बातों की सच्चाई और गहराई पता चली है सच मे आजकल चौकने का दौर है मै अक्सर दूनियादारी के तमाशों से हाल-बेहाल परेशान होकर चौकता रहता हूँ लेकिन अब धीरे-धीरे आदत हो रही है। राम की मरजी राम ही जाने कह गये भईया लोग सयाने....!
एक मौजूँ शे’र अर्ज किया है..
कभी यूँ भी हुआ है हँसते-हँसते तोड दी हमने
हमें मालूम था जुडती नहीं टूटी हुई चीज़ें

जमाने के लिए जो है बडी नायाब और महँगी
हमारे दिल से सब की सब हैं वो उतरी हुई चीजें

दिखाती हैं हमें मजबूरियाँ ऐसे भी दिन अक्सर
उठानी पडती हैं फिर से हमें फेंकी हुई चीज़े....(हस्तीमल हस्ती)

शेष फिर
डॉ.अजीत

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