Saturday, September 8, 2012

तीस बरस गज़ल के रास्ते से.....


खुमारी चढ के उतर गयी
जिन्दगी यूँ ही गुजर गयी

कभी सोते-सोते कभी जागते
ख्वाबों के पीछे यूँ ही भागते

अपनी तो सारी उम्र गयी
खुमारी चढ के उतर गयी

रंगीन बहारो की ख्वाहिश रही
हाथ मगर कुछ आया नही

कहने को अपने थे साथी कई
साथ किसी ने निभाया नही

कोई भी हमसफर नही
खो गई हर डगर कही

लोगो को अक्सर देखा है
घर के लिए रोते हुए

हम तो मगर बेघर ही रहे
घरवालों के होते हुए

आया अपना नज़र नही
अपनी जहाँ तक नज़र गई

पहले तो हम सुन लेते थे
शोर मे भी शहनाईयाँ

अब तो हमको लगती है
भीड मे भी तन्हाईयाँ

जीने की हसरत किधर गई
दिल की कली बिखर गई

(फिल्म-उम्र की एक गज़ल जगजीत सिंह को याद करते हुए)


2 comments:

  1. very good I wish Ihad written those lines.

    Thanks for sharing.

    Jitendra kumar Canada

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  2. very good I wish Ihad written those lines.

    Thanks for sharing.

    Jitendra kumar Canada

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