Saturday, September 8, 2012

तीस बरस



कल तीस बरस का हो जाउंगा। हर साल 9 सितम्बर को मेरा जन्मदिन आता है वैसे तो मैने अपना जन्मदिन कभी मनाया नही है लेकिन इस बार हरिद्वार मे मुझे एक रहते हुए मुझे एक दशक पूरा हो गया है साथ ही मै 30 साल का भी हो गया हूँ इसलिए थोडा सा मन मे मानसिक कौतुहल अवश्य है। कल अपने एक मित्र सुशील उपाध्याय जी के साथ से मिलने का कार्यक्रम है देखते है कैसे मिलकर गम गलत किया जाता है।
सिंहावलोकन करने जैसा कुछ जीवन है नही बस कभी मै अपने हिसाब से जीता रहा और कभी जिन्दगी अपने हिसाब से मुझे जीने के लिए बाध्य करती रही बस इस ज्वार भाटे मे वक्त निकल गया...। क्या खोया-क्या पाया टाईप का विश्लेषण करने बैठूंगा तो काफी जख्म हरे हो जायेंगे जो खासकर दोस्ती के नाम पर मैने खाये है बस इतना कहूंगा कि न मुहब्बत न दोस्ती के लिए वक्त रुकता नही किसी के लिए...।
कल और परसो (बीते हुए) दो अप्रत्याशित घटनाएं हुई अप्रत्याशित इसलिए जिसकी मुझे आदत नही है अमूमन दैत्याकार शरीर (6 फीट 2 इंच) का होने की वजह से कभी कोई ऐसे ही फालतू ही उलझने की जुर्रत नही करता है हालांकि मै स्वभाव से लडाका किस्म का नही हूँ लेकिन ये प्रीवाईलेज़ मिलता रहा है तो मै लेता रहा हूँ।
पहली घटना यह हुई कि मै परसो बडे बेटे की स्कूल फीस जमा करवाने उसको स्कूल गया था जिस तरफ पार्किंग थी वहाँ काफी भीड भी थी और धूप भी हो रही थी सो मैने सोचा कि स्कूल के मेन गेट के पास ही एक पेड है उसकी छाया मे बाईक पार्क कर दूँ  सो मै जैसे ही बाईक पार्क करने लगा गेट पर बैठे गार्ड ने प्रतिरोध जताया मैने उसको समझाया कि बस 5 मिनट का काम है मुझे केवल फीस जमा करवानी है जल्दी ही वापिस आ जाउंगा लेकिन वो बडबडाता रहा जब मैने थोडा देहाती अन्दाज़ मे कहा कि भाई क्या आफत आ जायेगी तो वो बिगड गया और तू तडाक पर आ गया एक बार मुझे गुस्सा आया लेकिन फिर भी मै बात टाल गया लेकिन वो बडबडाता रहा जब अन्दर एंट्री करते समय मैने उससे उसका नाम पूछा जोकि उसकी वर्दी पर नही लिखा था तो उसे लगा कि शायद मै उसकी शिकायत करुंगा जो मै करता ही...वो बोला अरे...नाम मे क्या रखा क्या करेगा नाम पूछ कर....! उसने मेरे साथ अभद्रता की लेकिन फिर भी मै क्षमाशील भाव से फीस जमा करवाने चला गया वापिसी मे मेरा मन भी हुआ कि स्कूल के मैनेजर ( जो मेरे अच्छे परिचित है) से उसकी शिकायत कर दूँ बल्कि उसको वही बुला कर जलील करुँ लेकिन फिर पता नही क्या सोच कर कान दबा कर चला आया सोचा कि अभी वक्त सही नही चल रहा है इसलिए अपमान सहन कर लिया।
अब दूसरा किस्सा सुनिए अगले दिन मुझे बैंक से ड्राफ्ट बनवाना था सो मै निकट की एसबीआई की ब्रांच मे गया वहाँ पता चला कि इस शाखा का प्रिंटर खराब है इसलिए मैन ब्रांच जाना पडेगा  फिर गर्मी मे वहाँ से बाईक पर सवार हो कर मेन ब्रांच पहूंचा साहब...वहाँ कैश काउंटर पर काफी लम्बी लाईन थी लगभग 1 घटें मे मेरा नम्बर आया हालांकि जो एकाउन्टेंट रुपये जमा कर रहा था उसका व्यवहार बेहद पेशवर था इसलिए थकान मिट गई उसने आत्मीयता से मेरे दोनो ड्राफ्ट फार्म स्वीकार किए और जल्दी ही मुझे ड्राफ्ट छापने के लिए दो फार्म दे दिये और बोला वहाँ लास्ट मे जो मैडम बैठी उससे ड्राफ्ट छपवा लो....अब सीन यहाँ से बिगडता है मैने मैडम को फार्म दिए और अनुरोध किया कि इनके ड्राफ्ट छाप दें उसने अनमने मन से मुझसे फार्म लिए, मुझे याद है वह एक पतली सी विवाहित स्त्री थी शक्ल से लग रहा था कि उसका मूड खराब है फिर बोली आप बैठ जाओ जब जरुरत होगी वह बुला लेगी लेकिन मै काउंटर के पास ही खडा रहा क्योंकि उसके पास मेरे अलावा कोई काम नही था और उसके काउंटर पर और कोई कस्टमर था भी नही बस एक वजह यह हो सकती है कि उसे मेरी शक्ल पसन्द न आयी हो और वो मुझे सामने न देखना चाह रही हो..। एक बार फिर से उसने वही कहा कि आप बैठ जाओ...मैने कहा कि नही मै ठीक हूँ आप कर लीजिए अपना काम जल्दी करने के लिए हालांकि  उस पर कोई दवाब नही बनाया लेकिन इतने मे वो मोहतरमा अपना आपा खो बैठी...बोली... “कहीं भी खडे रहो बेवकूफ आदमी मुझे क्या फर्क पडता है” मैने उसका तंज सुना और सुनकर बडी तेजी से गुस्सा भी आया लेकिन फिर भी गुस्सा पी भी गया मैने सोचा इसको क्या बताउँ ये आदमी बेवकूफ तो है लेकिन तुझ बीए पास एसएससी/पीओ क्लीअर बैंक क्लर्क से कम ही बेवकूफ है तेरे सामने जो इंसान खडा है वो हर साल तेरे जैसे बैंक क्लर्क दर्जनो की संख्या में पैदा करके बाज़ार मे उतार देता है और खुद भी 3 विषयों मे पीजी, पीएचडी है...। बाद मे मैने उसको भी इग्नोर कर दिया हालांकि जब मै ब्रांच मैनेजर के पास ड्राफ्ट साईन करवाने गया तब उसने  पूछा कि आप क्या करते है और जब उसको मैने यह बताया कि मै विश्वविद्यालय मे टीचर हूँ तो उसने काफी सम्मान दिया और पानी भी पिलवाया एक बार दिल मे आ रही थी कि उस मोहतरमा को यही बुलवा कर पूछा जाए कि मै किस ऐंगल से बेवकूफ इंसान हूँ....लेकिन यहाँ भी वक्त ही दुहाई देकर खुद को समेट लिया और चल दिया वहाँ से....।
स्कूल का गार्ड हो या बैंक की क्लर्क दोनो में मुझे कोई खास फर्क नजर नही आया इसलिए मैने अपने अपने अपमान को नियति और प्रारब्ध मानते हुए मन में क्लेश लिए वहाँ सीधा अपने घर आना ही उचित समझा घर आकर यह किस्सा पत्नि को सुनाया तो बोली कि जब वक्त बुरा चलता तो ऐसे ही हानि-लाभ,यश-अपयश के दौर भी चलते है इनसे गुजरजाना ही एक मात्र समाधान है।
इन दोनो घटनाओं ने मेरे उस आत्मविश्वास को कम किया है जिसके बल पर मै साधिकार कई भी घुस जाया करता था अब आईना दिखा दिया दो बुद्धिजीवी लोगो ने....आगे से सावधानी रखनी पडेगी...।
कल मेरा फोन फ्लाईट मोड पर रहेगा क्योंकि सुबह सुबह जन्मदिन के एसएमएस का हमला हो जाता है और मै किसी का न तो फोन उठाता हूँ और न ही एसएमएस का जवाब देता हूँ इसलिए बस मुझे दिल से दुआ दो जिसमे असर भी हो....इन बेअसर खत’ओ’खतूत  से कुछ मसला हल नही होता है। आपकी मुबारकबाद  और जज्बाती पैगाम इस करमठोक के लिए बेशकीमति है...आमीन।
(आज के लिए इतना ही काफी है बाकि ‘तीस बरस’ के नाम से एक किताब अलग से लिखी जाने की योजना है....उसमे होगा मेरा सम्पूर्ण विवरण एक दोगले इंसान की सच्ची कहानी)
शेष फिर
डॉ.अजीत 

2 comments:

  1. what to say.. after reading you ..feel very near to you .
    HAPPY BIRTHDAY..

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  2. tremendous writing very honest and straight forward
    thinking jitendra canada

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