Wednesday, February 20, 2013

चुनौतियाँ



बचपन से लेकर आजतक चुनौतियाँ वैसे तो कभी कम न थी  लेकिन इन दिनों फिर से एक बडा सवाल खडा हुआ है कि आखिर 31 मार्च के बाद क्या किया जाएँ? क्योंकि इस तिथि के बाद इस अकादमिक सत्र के अतिथि अध्यापन सें सेवानिवृत्ति मिलने जा रही है।

फिलवक्त की कुछ बडी चुनौतियाँ:

 बडा बेटा राहुल एक सेरेब्रल पाल्सी से पीडित बच्चा है जिसको पुनर्वास विशेषज्ञ के हिसाब से डिस्लेक्सिया भी हो सकता है उसको एक स्पेशल एजुकेशन के टय़ूटर की जरुरत है जो उसको रेमेडियल कोचिंग दे सके कायदे से तो उसको एक ऐसा स्कूल चाहिए जहाँ स्लो लर्नर और डिस्लेक्सिया के बच्चों के शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था हो, हरिद्वार में ऐसी कोई व्यवस्था नही है जैसे तैसे उसका यह अकादमिक सत्र तो पूरा हो गया है लेकिन अगले सत्र के लिए मेरे पास कोई व्यवस्था नही बन पायी है सो फिर से उसको उसी स्कूल में रखना होगा।मेरी काहिली का यह भी सबसे बडा उदाहरण है।  
घर से मेरे सम्बंध लम्बे समय से असहज़ चल रहे है पिताजी से बोलचाल तक बंद है लेकिन इतने सब से भी राहत थोडे ही मिलती है वहाँ से यदा-कदा भावनात्मक समस्याएं आयतित होती रहती है। गांव में हमारी माताजी (दादी) है जो मेरे जीवन के एक सबसे बडी और जीवंत प्ररेणा है उनसे मिलना भी नही हो पाता है वो अपने जीवन के लगभग अंतिम चरण में है लेकिन अभी मेरे अस्थाई जीवन को लेकर चिंतित रहती है और उनके स्वास्थ्य को लेकर मेरी चिंताएँ है। कुल मिलाकर बेहद तनाव बना रहता है न घर से पूर्णत: मुक्त ही हो पा रहा हूँ और न कुछ घर के लिए कर ही पा रहा हूँ।
सबसे बडी चुनौति खुद के जीवन से जुडी हुई है 3 सबजेक्ट में पीजी,1 में पीएचडी,2 में यूजीसी-नेट पास होने के बावजूद भी मै पिछले छ साल से विश्वविद्यालय में नितांत ही अस्थाई/तदर्थ/अतिथि व्याख्याता किस्म की नौकरी कर रहा हूँ। समय के लिहाज से मुझे एक तुरंत स्थाई नौकरी की जरुरत है लेकिन फिलवक्त उसकी गुंजाईश कम ही नजर रही है। जहाँ मै पिछले 5 साल से तदर्थ पढा रहा था वहाँ तो इस बार खेल बिगड गया सब और मै तदर्थ से खिसककर अतिथि श्रेणी के अध्यापन मे आ गया हूँ जिसमे मुझे आगामी 31 मार्च को अकादमिक शिक्षण की सेवाओं से मुक्त कर दिया जायेगा उसके बाद अगले अकादमिक सत्र में नियुक्ति मिलने की सम्भावना है जो अगस्त से पहले सम्भव नही होगी ऐसे में मुझे अप्रैल-अगस्त लगभग 4 महीने अवैतनिक जीवन जीना होगा जो किसी त्रासदी से कम नही है पिछले वित्तीय वर्ष से ही उधार की अर्थव्यवस्था नें मेरे बजट को काफी ओवरड्राफ्ट कर दिया है। एकाध मित्रों से मदद मिलने का भरोसा है उसी के आत्मविश्वास पर जीवन चल रहा है।
सच तो यह है कि मै अब इस तदर्थ जीवन से थक गया हूँ अब मुझे एक स्थाई समाधान चाहिए चाहे वह किसी भी दिशा का क्यों न हो...। मनोविज्ञान विषय के अध्यापन के लिए मै अब खुद को अप्रासंगिक और अनुपयुक्त महसूस कर रहा हूँ अब यह भी लगने लगा है है अध्यापन के पेशे के चयन के सन्दर्भ में मैने इस विषय का चयन करके गलती की है क्योंकि मेरी समझ इस विषय में थोडी दूसरे किस्म की रही है लेकिन संयोग,परिस्थितिवश अब इस विषय में रुकना मजबूरी बन गया है हालांकि मै इसके अलावा पत्रकारिता एवं हिन्दी में नेट पास हूँ तथा उनमे भी उच्च शिक्षा मे अध्यापन की पात्रता रखता हूँ लेकिन वेतानादि,अवसर के लिहाज़ से फिलहाल उनमें भी कोई सम्भावना नजर नही आ रही है जो विषय अभिरुचि के करीब है उनमे मै फ्रेशर हूँ और जिसमे 6 साल का अनुभव है उससे जी उकताता जा रहा है अब इसे विडम्बना या एक नये परिवर्तन की आहट समझा जायें यह तय नही हो पा रहा है।  
अभी तो इन तात्कालिक चुनौतियों से ही दो चार हो रहा हूँ इन सबके बीच में मानवीय सबन्धों के भावनात्मक संघर्ष भी है जिनमे मै रोज जीता/मरता/खफता यहाँ तक आ गया हूँ...उफ्फ ! बडी बैचेनी है!
ईश्वर मेरी मदद करें  
शेष फिर..
डॉ.अजीत 

3 comments:

  1. Bhai sahab, pareekshaayen veeron ki hi hoti hain..

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  2. डॉ। अजित जी सर्वप्रथम तो मेरी इश्वर से यही कामना है कि आपके मन में उठी तनाव की सुनामी थमे और आपको जीवन में मनवांछित मार्ग मिले ताकि आप अपने अमुल्य जीवन को सही दिशा दे सकें ..मित्र चुनौतियाँ जीवन का दूसरा नाम हैं एक बात हमें हमेशा ध्यान रखनी होगी कि हम वो नस्लें हैं जो किशोरावस्था में अपने पंख पाकर अपनी परवाज़ के हमराही बनना चाहते हैं लिहाज़ा ये चुनौतियां हमारी अपनी हैं और हमें ही कोई रास्ता भी निकलना होगा अपने लिए अपने आप

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  3. भाईसाहब, राज जी ने बिलकुल सही कहा है ऊपर..

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