Wednesday, February 20, 2013

ब्रेक के बाद



लगभग डेढ महीने के अवैतनिक ब्रेक के बाद 3 जनवरी से लेकर 31 मार्च तक फिर से नौकरी करने का आधिकारिक आदेश मिला है संभवत: इस अकादमिक सत्र की यह मेरी आखिरी सेवा होगी इसके बाद मुझे फिर से मुक्त कर दिया जायेगा। जुलाई से आरम्भ होने वाले नए अकादमिक सत्र में आंतरिक व्यवस्था के हिसाब से नया निज़ाम आ जायेगा एक तो हमारे विभागाध्यक्ष भी मेरे गुरु जी (पीएचडी गाईड) बन जायेंगे साथ ही विश्वविद्यालय मे नये कुलपति का आना भी लगभग तय है इस हिसाब से नये निज़ाम के साथ नया सत्र आरम्भ होगा। पिछले पांच सालों से मै 15 मई तक अध्यापन किया करता था क्योंकि हमारी संविदा तभी तक हुआ करती थी इस बार डेढ महीने पहले ही सेवानिवृत्ति हो जायेगी। गत वर्ष जुलाई में साक्षात्कार के समय जो खेल बिगडा उससे पूरे साल की त्रासदी अपने नाम हो गई पूरे अकादमिक सत्र मे लगभग छ महीने की किस्तों में मास्टरी का अवसर मिला वह भी 22000 प्रतिमाह के हिसाब से अब इसके लिए किसी को दोष भी नही दिया जा सकता है अपने ही नसीब में यह सब लिखा था सिवाय इस दिलासा के कुछ भी कहना सूझ नही रहा है।
अभी मार्च तक स्थाई नियुक्ति के लिए साक्षात्कार भी सम्भावित है सो उसके समीकरणों के अपने कयास चल रहे है हर कोई चाहता है कि उसी को यह स्थाई नौकरी मिल जाये हम फिलहाल 3 लोग तो 1 पद के लिए सीधे प्रतिस्पर्धा में है बाकि कितने छूपे रुस्तम और पैराशूट टाईप के लोग कतार में होंगे इसके बारे मे कुछ कहा नही जा सकता है।
पिछले पांच सालों के अध्यापन और इस साल के इस अतिथि टाईप के अध्यापन के अनुभव के बाद भी मुझे अपने लिए कम ही अनुकूलताएं नजर आ रही है कुछ भी कहा नही जा सकता है कि क्या होगा मुझे नही लगता है कि मेरे पक्ष मे हालात है लेकिन फिर भी मै अपने पूरे मनोबल से आर-पार की यह लडाई लडने के मूड मे हूँ क्योंकि अवसर के लिहाज़ से मनोविज्ञान में यह मेरे लिए अंतिम अवसर होगा इसके बाद मै कहीं और असि.प्रोफेसरी के लिए प्रयास नही करुंगा यदि यहाँ स्थाई नियुक्ति हो जाये तो बेहतर अन्यथा फिर मनोविज्ञान के इस चोले को यही उतार दिया जायेगा हमेशा के लिए।
बैक अप के लिहाज़ से अभी मेरे पास कोई भी योजना नही है बेहद नाजुक दौर है यदि असफलता मिली तो फिर सब कुछ शून्य से आरम्भ करना होगा एक नये विषय या नये क्षेत्र के साथ एक नई शुरुवात करनी होगी लेकिन फिलवक्त मै किसी भी प्रकार का नियोजन नही कर रहा हूँ कुछ साथी मित्र कई बार पूछते भी है कि यदि विश्वविद्यालय में सेलेक्सन नही हुआ तो...? मै कुछ जवाब नही देता हूँ और सच तो यह है कि मेरे पास कोई जवाब है भी नही कि फिर इसके बाद मै क्या करुंगा।
कभी कभी ऐसा भी लगता है कि पत्रकारिता की जा सकती है लेकिन वहाँ पर भी अवसर के लिहाज़ से कई बडी चुनौतियाँ है एक तो मै फ्रेशर हूंगा सो वेतन नही मानदेय टाईप का ही कुछ मिलेगा जबकि पिछले साल मै 39000 प्रतिमाह का वेतनभोगी और इस बार भी कम से कम 22000 प्रतिमाह का वेतनभोगी रहा हूँ ऐसे में इससे कम धनराशि पर काम करना मेरे लिए असम्भव ही होगा और परिवार की बुनियादी मासिक जरुरतें भी कम से कम 25000 तो है ही....ऐसे भी एक प्रशिक्षु पत्रकार के रुप में काम करना तो कोई विकल्प ही नही है इसके अलावा चूंकि मॉस कॉम मे भी नेट हूँ तो पत्रकारिता की मास्टरी का एक विकल्प बचता है उस पर शायद विचार किया जाये....।
खैर! अभी मै भी कयासों के ही दौर मे हूँ और काफी हद तक कंफ्यूज्ड भी हूँ ऐसे में किसी एक योजना को तय कर पाना मेरे लिए भी मुश्किल काम होगा सो तुलसी बाबा की शरण में हूँ होए सोई जो रामरचि राखा,को करि तर्क बढावे साखा... ।
निजि सम्बंधो के लिहाज़ से भी काफी नाजुक दौर है अब किसी से मेल मिलाप का मन भी नही होता है एक तरह से यथास्थितिवादी मनस्थिति मे जीते-जीते ऐसा लगता है कि अब बदलाव होना चाहिए अब मै खुद एक लम्बी यात्रा पर निकलना चाहता हूँ जहाँ एकांत हो,अज्ञातवास हो,मेरा कडवा अतीत न हो,मुझे दोस्तों से शिकायत न हो... इसी दिशा में चाहता हूँ कि कुछ व्यवस्था हो जाये बस...।
देखतें है कि कब वक्त करवट लेता है और मै अपने ढब से जी सकने की एक कवायद शुरु कर सकूँ।
अभी के लिए इतना ही....शेष फिर
डॉ.अजीत  
(एक पुरानी पोस्ट)

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