Friday, April 22, 2011

वृत्त परिक्रमा

धीरे-धीरे एक साल बीत गया है। पिछले साल इन दिनों की बात है जब मैं बहुत सी बडी-बडी बातें कर रहा था एक निर्णायक निर्णय लेने के जोश मे आंतरिक बंधन के तोडने का दर्शन भी बघार रहा था। यात्रा,फक्कडी करने के लिए जोश-जोश में एक ब्लॉग खानाबदोश भी बना दिया था जिस पर लगभग तीन महीनें तक नियमित लेखन भी किया लेकिन जैसे ही यात्रा से दूनियादारी मे लौट आया तब से ही उस ब्लॉग पर सन्नाटा पसरा हुआ हैं।

मैने यात्रा इस उद्देश्य से शुरु की थी कि कुछ आत्मिक ऊर्जा का संचार होगा मन के बंधन टूटेंगे तथा मैं अपनी यथास्थितिवादी मन:स्थिति को तोडकर कुछ सार्थक और अभिनय निर्णय ले सकूंगा जिससे जीवन की दिशा एवं दशा बदलेगी। इस यात्रा के शुरुवाती तज़रबे बडे ही कडवे किस्म के रहें थे जिनकी कडवाहट अभी तक जेहन मे बसी हुई है कुछ आत्मिक,सम्वेदनशील और लाईफटाईम किस्म के दोस्तों का साथ छूट गया अब मै उनको भी कुछ दोष नही देना चाहता हूँ शायद उनकी मानसिक चेतना और परिपक्वता के मै ही काबिल नही था फिर विरोधाभाषों का समूह कब तक एक साथ रह सकता था। पहले कुछ दिनों तक इस दोस्ती के त्रिकोण के बिखरने को लेकर मै भयंकर किस्म के मानसिक तनाव मे रहा था लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ अपनी गति से स्थापित हो गया वक्त बदला मिजाज़ बदला और रिश्तों की परिभाषा बदल गई अब केवल मन मे एक हल्की सी टीस बची है जिसके रफा-दफा होने मे अभी थोडा सा वक्त और लगेगा।

पिछले साल इन दिनों मै जिस मन:स्थिति से गुज़र रहा था अब फिर से वही दौर शुरु हो गया है बदलाव,जीवन,दिशा,दशा और भी बहुत से भारी भरकम शब्दों मे मन उलझा रहता है। आज मेरे एक विद्यार्थी ने सवाल पूछा कि सर,लाईन कब चेंज़ कर रहे हो? मेरा जवाब उसके लिए निराशाजनक था लेकिन उसने कहा कि आपकी बार व्यवहारिक है। मैने उसको बताया कि ज़िन्दगी एक ऐसे मुकाम पर है जहाँ पर अब मैं अपनी व्यक्तिगत अभिरुचि और प्रयोगधर्मिता के चक्कर मे अपने परिवार का भविष्य और अस्तित्व दांव पर नही लगा सकता हूँ मेरे पीछे एक आशा के साथ अब तीन-तीन जिन्दगीयां सांसे ले रही है। जिन्दगी जोखिम लेने और खुद से खेलने का एक मौका सभी को देती है मुझे भी दिया था लेकिन अफसोस! कि मैने वो वक्त दोस्त,दोस्ती और विश्वास के भरोसे काट दिया है अब मेरे पास सिमटने और फैलाव के बडे ही सीमित विकल्प बचे है सो मै अब उसी दायरें मे रह कर खुद को बचाने की जद्दोजहद मे लगा हुआ हूँ।

यात्रा इस बार भी करने का मन है लेकिन कहाँ,कब,कैसे और किसके साथ होगी इसका अभी कुछ पता नही है। 15 मई को विश्वविद्यालय की तदर्थ सेवा से मुक्त हो जाउंगा इसके बाद मुझे तीन प्रमुख जगह व्यक्तिगत काम के लिए जाना है ये स्थान हैं देवरिया,गोरखपुर और जालंधर। देवरिया अकेले ही जाउंगा तथा गोरखपुर और जालन्धर अपने मित्र डॉ.अनिल सैनी जी के साथ जाने का कार्यक्रम हैं जिसके लिए तिथि अभी निर्धारित नही हुई है।

इसके बाद अपनी पिछली यात्रा के साथी डॉ.सुशील उपाध्याय जी का मानस टटोला जाएगा यदि पिछले साल की भांति वे इस बार भी जाने के लिए तत्पर रहेंगे तो फिर उनका साथ थाम कर मै भी निकल पडूंगा किसी अनजानी से ठौर के लिए....उपाध्याय जी के साथ यात्रा जीवंत एवं प्रेरक किस्म की रहती है वें बन्दे को बोर नही होने देते है उनकी किस्सागोई का मै कायल हूँ साथ उनके राजकाज़ के सम्बन्धों का लाभ यात्रा मे बराबर मिलता रहता है जिससे एक वीआईपी होने का अहसास भी यात्रा में रस भर देता हैं।

जैसा भी कार्यक्रम होगा उसकी चर्चा यहाँ पर समय रहतें हुए की जाएगी। एक नई खबर यह भी है मैने पिछली 12 अप्रैल को अपने पान मसाला खाने के लगभग डेढ दशक पुराने व्यसन को त्याग दिया है और इसके त्यागने के साथ ही मैने अपने दांतो की स्कैलिंग भी करायी है अब मेरे दांत एक दम साफ स्वच्छ है तथा मोती जैसे दमक भी रहें है वैसे यदि इस व्यसन के समय के बारें मे सोचे तो थोडा सा मुश्किल लग रहा था लेकिन मुझे जरा सी भी तकलीफ नही हुई है बस एक कठोर विल पॉवर आपके अन्दर होनी चाहिए फिर कुछ भी छोडना कुछ मुश्किल काम नही हैं। मैने इस बदलाव को अपने यहाँ पैदा हुए नये बेटे के जन्म के साथ जोडकर देखना शुरु किया जिससे मुझे आंतरिक प्ररेणा भी मिली और एक मानसिक संबल भी...।

बस आज के लिए इतना ही पहले ही बहुत विस्तार हो गया है...।

शेष फिर

डॉ.अजीत

3 comments:

  1. अजीत जी अपने स्वास्थ का ध्यान रखिये और अपना आत्मविश्वास बनाये रखें बस इतना ही कहूँगा " वह सुबह कभी तो आएगी........

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  2. स्वास्थ का ध्यान रखिये

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  3. कठोर बिल पॉवर के लिए बधाई .सही मायने में आप पिता बने है...बेटे को धन्यवाद ..व ..शुभकामना

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