Friday, April 8, 2011

अंतिम दौर

विश्वविद्यालय के इस शैक्षणिक सत्र में यह अंतिम समय चल रहा है और साथ में अपनी तदर्थ सेवाओं का भी ये अंतिम चरण है आगामी 15 मई को मेरे जैसे 126 तदर्थ असि.प्रोफेसर विश्वविद्यालय की शैक्षणिक सेवाओं से विमुक्त हो जायेंगे फिर अगले सत्र मे तकरीबन 15 अगस्त के आसपास फिर से हमें तमाम उत्कर्ष-अपकर्ष के उपरांत दया के आधार पर फिर से विश्वविद्यालय की मुख्य धारा मे शामिल किया जायेगा इस तरह का जीवन मै पिछले चार साल से जी रहा हूँ और मेरे बहुत से बन्धु 8-10 साल से भी तदर्थ रुप से गुरुकुल की सेवा कर रहे हैं।

आजकल विश्वविद्यालय में वार्षिक परीक्षाएं चल रही है और मै इस बार परीक्षा ड्यूटी नही कर रहा हूँ सो दिन मे लगभग एक बजे के आसपास मै विश्वविद्यालय से फ्री हो जाता हूँ फिर इसके बाद सीधा घर आता हूँ क्योंकि नवजात शिशु के साथ थोडी बहुत व्यस्तताएं बनी ही रहती हैं इसी वजह से मैने परीक्षा मे ड्य़ूटी करने से भी मना कर दिया है वरना पिछले चार सालो से सबसे अधिक परीक्षा डयूटी करने का रिकार्ड मेरे ही नाम था जिससे बहुत से लोगो को जलन होती थी लेकिन इस बार मैने खुद ही सबका कलेज़ा ठंडा कर दिया है।

आज विश्वविद्यालय के एकमात्र सजातीय प्रोफेसर जो आजकल डीन भी हैं के गांव में एक कार्यक्रम मे शिरकत करने गया था अवसर था उनके गृह प्रवेश का उनकी हार्दिक ख्वाहिश है कि वें रिटायरमेंट के बाद अपने गांव में ही रहे और जैसाकि आज उन्होनें बताया कि वें गांव मे बच्चों के निशुल्क कोचिंग शुरु करेंगे। यह जानकर बहुत अच्छा लगा पता नही जो लोग अपने जडों के प्रति प्रतिबद्द दिखतें है उनका खुद बखुद सम्मान करने का मन होता है। इसकी एक वजह यह भी है कि मुझे भी अंत मे अपने गांव ही लौटना है वही जाकर कुछ सार्थक करने की अभिलाषा है। अभी तो दूनियादारी के चक्कर में उलझा हुआ हूँ लेकिन जैसे ही ज़िन्दगी से फुरसत मिली और हालातों ने मुझे इजाज़त दी मै अपने गांव भाग जाउंगा क्योंकि शहर की जीवनशैली में मुझे कभी ग्लैमर नज़र नही आया और मेरी क्षणिक भी शहर मे बसने की इच्छा नही हैं बाकि आने वाला वक्त ही बतायेगा कि क्या,कब और कैसे होना है।

कल अपने बुरे वक्त के अच्छे साथी डा.सुशील उपाध्याय जी से वार्ता हुई थी अब मेरे सिमटते दायरे में उपाध्याय जी एकमात्र ऐसा किरदार बचे हुए है जिनसे मै चेतना,सम्वेदना और अनुभूति के स्तर पर जैसा महसुस करता हूँ शेयर कर सकता हूँ इसके लिए उनका आभारी हूँ वैसे उपाध्याय जी की सबसे बडी खासियत यही है कि वें प्राय: संतुलित रहते है और बिना शर्त का धनात्मक सम्मान देते हैं।विश्वविद्यालय में मेरे स्थाई होने की प्रक्रिया को लेकर वें लगभग मेरे समान ही चिंतित दिखाई पडतें है और आत्मीय सम्बंधो मे भी प्राय: सिफारिश से गुरेज़ करने वाले उपाध्याय जी मेरे लिए अपनी सीमाओं का भी अतिक्रमण करने के लिए तत्पर दिखाई देते हैं उनकी इस आत्मीयता के प्रति मैं अपनी कृतज्ञता ही ज्ञापित कर सकता हूँ। यदि विश्वविद्यालय मे मेरा स्थाई रुप मे चयन होता है तो इसके लिए प्रेरणा के रुप मे उपाध्याय जी और योगेश योगी दो नाम ऐसे होंगे जिनको मील का पत्थर कहा जा सकता है।

बाकि इन दिनों कुछ ऐसा कुछ खास नही घट रहा है जिसका विशेष रुप से उल्लेख किया जाए जैसा ही कुछ सार्थक/निरर्थक होता है मै यहाँ चर्चा करुंगा।
एक विराम और...
डा.अजीत

No comments:

Post a Comment