Saturday, August 18, 2012

एक था.....


एक था अजीत...
जो अक्सर फेसबुक से चिपका पाया जाता था।
जो अक्सर उधार के शे’रो से वाहवाह लूटने का आदी था।
जो जल्दी ही अपना धैर्य खो देता था।
जो लोगो से जल्दी जुड जाता था और फिर जल्दी ही उनसे ही बोर हो जाता था।
जो लोगो से मिलने से कतराता था।
जो अपने मित्रो के फोन नही उठाता था।
जो दोगली जिन्दगी जीता था मतलब जो है वो नही दिखता और जो दिखना चाहता है वो है नही।
जो बेहूदा बातें करता रहता और जिसकी बातों से बोरडम फैला रहता था।
जो अपनेपन से डरता था जिसे दिल तोडने की आदत थी।
जो खुद को महान घोषित करने के जाने क्या –क्या प्रपंच नही करता था।
जो पहले सिद्धांत बनाता था और खुद ही सबसे पहले उन्हे तोडता था।
जो एक बेबात नाराज़ और उदास रहने वाला इंसान था।
जो शिखर पर पहूंच कर उसको छोड देने और शून्य से जीवन शुरु करने का आदी था।

एक यह अजीत है...
जिसने फेसबुक छोडने के बाद अपनी अध्येतावृत्ति को बढाने का दावा किया था लेकिन अभी तक एक भी किताब नही पढ पाया है।
जिसने अपने दोनो ब्लॉग को नियमित करने का दावा किया था लेकिन अभी तक एक भी पोस्ट नही लिख पाया है।
जो अपने बढते वजन को लेकर चिंतित है और कुछ ठोस कदम उठाना चाह रहा था लेकिन ज्यादा कुछ नही कर पाया है।
जिसको आज भी रात मे देर सोना और दिन मे खोना और बेबस होना अच्छा लगता है।
जो आज भी अक्सर अपना फोन बंद रखता है और कुछ दोस्तों के फोन नही उठाता है।
जो आज भी अज्ञातवास जीने का आदी है।
जो अपने परिचितों से को यह नही समझा पाता है कि उसके जीवन मे अब कोई मित्र के लिए स्पेस नही बचा है।
जो लोगो को खुश रखना नही सीख पाया है।
एक कोशिस...
जैसा हूँ वैसा ही रहने की।
बिना शर्त के सम्बंधो को जीने की।
किसी को कोई जवाब न देने की।
कुछ खोने पाने की जद्दोजहद जारी रखने की।
अपना वजूद सिद्ध करने तक हौसला बनायें रखने की...।
कुछ लिखने-पढने की।  

बस यही है अपना खेल तमाशा...जिसे आप हाथ की सफाई और नज़रबन्दी समझ सकते है।

शेष फिर....
डॉ.अजीत

2 comments:

  1. अच्छा लगा आवारा को घर लौटता देख कर ,आप जैसे को जैसा कहने की जिद पर अड़े है और हम आपको अपना कहने की पर .आपके बढते वज़न को लेकर मै भी थोडा चिंतित था मगर आपकी सलाह न लेने की अदा पर मर मिटा था इस लिए कह नहीं सका .

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  2. Aapka lekhan kamal ka hai, maine isse phle koi blog nhi pdha haan bachpan se hi premchand ki kahaniya, hindi novels aadi pdhne ka chaska tha, fir internet pr aate hi kahaniyo aur novels se naata toot gaya. Lekin aawara ki dairi pdhkar wakayi me maza aaya, kuch ansh to m 2 baar pdh chuka hun.mujhe to lagta h jisne bhi ye blog pdha wo aatmiya roop se aapse jud gaya hoga... Mujhe jo bat pasand aayi wo ye ki aapke is blog me har ek cheej apne charam par hai... Chaahe haasya ho ya bhav vibhor kar dene wale devendra jaise yar makanda k kisse.. Ya fir aapka had darje ka imaandar hokar likhna. Lekin pichle kuch samay se aap shayad blog pr likhna hi bhul gaye hain.

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