Saturday, August 4, 2012

आमद


आवारी की डायरी बहुत दिनो से बंद पडी है अब बार बार फेसबुक को भी दोषी नही ठहराया जा सकता है कुछ मेरी ही कमअक्ली है कि नियमित लिखना नही हो पा रहा है इन दिनों फिर से एक अजीब किस्म का ठहराव आया हुआ है न नियोजन का मन होता है और न ही प्रयोजन का कुछ साथी लोग ऐसे बदले हुए व्यवहार से खफा है लेकिन अब किसी की कोई खास फिक्र नही होती है ऐसा लगता है जो लोग साथ के लिए है वो ऐसे ही छूट जायेंगे और जो साथी है उन्हे मेरे ऐसे होने से कोई फर्क नही पडेगा।
सच्चाई के साथ जीना कई बार बेहद खतरनाक हो जाता है चूंकि मै मनोविज्ञान से ताल्लुक रखता हूँ तो ऐसे मे हर किसी की अपेक्षा यही रहती है कि मै हमेशा अति आत्मविश्वास से लबरेज रहूँ,हमेशा बी पॉजिटिव और मोटिवेशन का लेक्चर पेलता रहूँ जो मुझसे नही होता है। मैने इस विषय को अपने सुख के लिए पढा और मेरे जीवन मे इसकी जितनी उपयोगिता है वह भी मुझे पता है लेकिन किसी को दिखाने के लिए मै अपने मूल स्वरुप को बदलना जरुरी नही समझता हूँ।
आने वाली 9 सितम्बर को तीस का हो जाउंगा एक तरह से कमोबेश आधी जिन्दगी जी ली है मैने जिन्दगी अपने फ्लेवर के हिसाब से जीने का सबक सिखाती रहती है लेकिन मै आज तक कुछ नही सीख पाया बस ऐसे ही पता नही किस झोंक मे जिए जा रहा हूँ कुछ विद्वान दोस्तो का कहना है कि मेरे जीवन मे लक्ष्य का अभाव है जबकि ऐसा नही है मेरे पास जो लक्ष्य है उसे सुनकर कोई मेरे मानसिक पागलपन पर हंस सकता है अपना आपा खो सकता है लेकिन यह जरुर है खालिस लक्ष्य होने से कुछ नही हो जाता है फिर कभी कभी सोचता हूँ कि ऐसा भी नही है मैने अपने स्तर से कोई प्रयास न किए हो लेकिन अब फिर से अपने को समेट कर जुट जाना थोडा मुश्किल काम है लेकिन इसके अलावा कोई विकल्प भी नही है।
कुछ दोस्त कहते है कि मेरे पास खुश होने/रहने की बहुत सी पुख्ता वजह है लेकिन मुझे अहसास-ए-कमतरी इतना ज्यादा है कि मै कभी अपनी छोटी-छोटी उपलब्धियों को भी सेलीब्रेट नही कर पाता हूँ दो विषयों ने यूजीसी नेट,25 साल की उम्र मे पीएचडी की उपाधि,निर्बाध नौकरी (एडहॉक ही सही) आदि-आदि कुछ चीजे जिन पर खुश होना चाहिए लेकिन सच यह है कि मुझे इनसे कोई खुशी नही मिलती है बस एक साक्षी भाव बन गया है जैसे भी चीजो से गुजर जाना है।
आधी जिन्दगी जीने के बाद अब यह सोचता हूँ कि ये जिन्दगी की पतवार मुझे किस दिशा मे लिए जा रही है मै हूँ क्या ? और बनना क्या चाहता हूँ...। इन दिनो एक खास किस्म की आदत और अपने निकट के लोगो मे देख रहा हूँ कि यदि जैसे ही किसी को आपने अपने मन की बात ईमानदारी से शेअर कर दी बस फिर लोग आपके सम्पादन मे लग जाते है सलाहो, नसीहतों का कारोबार शुरु हो जाता है वो आपको खारिज़ करते हुए आपको बदलने की जिद पर आ जाते है।
ऐसे लोगो के साथ मुझे बहुत मुश्किल होती है पहले करीब आना और फिक्र-ए-यार के हिजाब में अपनी पसन्द-नापसन्द थोपना आज के दौर के इंसान की खुबी है मुझे आग्रही लोग लम्बे समय तक बांधे नही रख पाते है एक समय के बाद एक खास किस्म की चिढ सी हो जाती है और फिर अपने स्पेस के थोडा कडवा बोलना पडता है जो मुझे भी अच्छा नही लगता है लेकिन क्या करुँ इसके अलावा कोई रास्ता ही नही बचता है..।
मसले तो बहुत से है लिखने बताने के लिए लेकिन अब बस इतना ही.....शेष फिर
डॉ.अजीत 

1 comment:

  1. srimaan aap sochenge ki ek aur aa gaya salaah dene ke liye...

    lekin mujhe lagta hai ki aapko kuch din ke liye kahin ghum ke aana chahiye....

    kuch din ke liye apna sahar chod dijiye aur goa jaise teerth par ghumm kar aayiye...


    dhanywaad

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