Friday, January 28, 2011

ज़िन्दगी:अजीब पहेली

जिन्दगी इम्तिहान लेती है ये गाना मैने खुब सुना है और अक्सर सुनता भी रहता हूँ लेकिन ये इम्तिहान जानलेवा भी हो सकता है ऐसा अन्दाज़ा नही था। वैसे तो मेरा मन नियतिवादी नही रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों के अनुभव ये सोचने और मानने के लिए मजबूर कर रहे है कि सब कुछ पहले से ही तय होता है रंगमंच की तरह हम तो केवल अपने पात्र का अभिनय करते रहतें हैं।

कहने के लिए एक समझदार पत्नि,बच्चा और पैतृक पृष्टभूमि के नाम पर एक जमीदार का नाम और खेती के लिए लगभग 100 बीघा जमीन का मालिक हूँ इसके अलावा अपने विश्वविद्यालय का सबसे कम उम्र का पी.एच.डी.उपाधिधारक रहा हूँ जब से पी.एच.डी. की डिग्री अवार्ड हुई तब से लगातार विश्वविद्यालय मे अध्यापन का कार्य कर रहा हूँ मसलन एक दिन भी बेकारी और बेज़ारी का शिकार नही हुआ हूँ। अपने छात्रों मे लोकप्रिय हूँ और सहकर्मीयों मे सम्मानीय.........लेकिन इन सब भौतिक उपलब्धियों के बावजूद भी बडा बेचैन हूँ....अधूरा हूँ..उदास और बेहद आवारा भी।

मित्रों के नाम पर गिने चुने नाम ज़िन्दगी मे शामिल किए थे वैसे परिचितों की एक बडी भीड है लेकिन शायद वक्त की मार ने मेरे अज़ीज दोस्तों को मुझ से इतना दूर कर दिया है कि कभी कभी मुझे लगने लगता है कि रिश्तें बस एक छलावा भर होतें है वरना दूनिया की सबसे बडी सच्चाई यही है कि आदमी नितांत ही अकेला है।

अतीत मे जीने का चस्का अभी तक नही छूटा है अब तो यह एक लत की तरह से ज़िन्दगी मे शामिल है,कुछ समझदार लोग अक्सर मुझे यह सलाह देते रहतें है कि मुझे वर्तमान मे जीना चाहिए और भविष्य का नियोजन करना चाहिए खासकर अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए लेकिन मै अभी तक इस दूनियादारी के सबक पर अमल नही कर पाया हूँ पता नही क्यों...।

अभी पिछली पोस्ट मे मैने अपने वीतरागी जीवन मे प्रवेश करने की सूचना दी थी...कुछ अर्थों मे यह एक युक्तियुक्त पलायन जैसा था जिसे निर्वासन जैसा समझा जा सकता है।

लेकिन नियति पता नही मुझसे क्या चाहती है जैसे ही मैने यह सोचा भर न कि कोई फैसला लिया था तभी से इस मार्ग मे बाधा आने लगी है जहाँ मैने अपना डेरा जमाने की योजना बनाई थी वहाँ पर तो मेरे जाने से पहले ही कुछ मेरे अपने लोगो के अहम नाग के फने की तरह से फुनफुना के खडे हो गये है और उनकी असुरक्षा मुझे किसी भी रुप मे बर्दाश्त करने की स्थिति मे नही है।

सो अभी मैने वहाँ जाने का विचार त्याग दिया है क्योंकि मै अपनी शांति के लिए किसी और के जीवन मे अशांति,असुरक्षा आदि-आदि नही फैलाना चाहता हूँ। इस पूरी घटना से बस यही सबक मिला है कि भईया! आप जो चाहते है उसे भूल जाओं आपके लिए किसी ने पहले से ही बहुत कुछ सोचा हुआ है आपको तो बस उसके हिसाब से चलना है जिसे आप अपना निर्णय कहते है वो तो किसी और की चाल का एक हिस्सा होता है वो कौन है? ईश्वर,प्रारब्ध या नियति ये मै नही जानता हूँ लेकिन है बडा ही चालाक।

बहरहाल,अभी न किसी संकल्प पर विचार किया जा रहा है और न ही किसी विकल्प पर बस यथास्थिति मे जीते हुई कुछ बीच का रास्ता निकल जाए यही प्रार्थना कर रहा हूँ। वैसे मेरी दुआएं कम ही कबूल होती है इस बार क्या होगा पता नही!!!

॥आमीन॥

डा.अजीत

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