Wednesday, December 24, 2014

ख़्वाब

कुछ ख़्वाब केवल
आँखें देखती है
उन्हें देखने की इजाज़त
दिल और दिमाग नही देते
ऐसी बाग़ी आँखों से
नींद विरोध में विदा हो जाती है
ऐसे ख़्वाब बहुत जल्द
नींद की जरूरत से बाहर निकल आते है
वो हमारी चेतना का हिस्सा बन
खुली आँखों हमें दिखते है
दिल अपनी कमजोरी दिखाता नही
दिमाग को जताता है अक्सर
और दिमाग की होती है एक ही जिद
वो देखना चाहता हमें हर हालत में
विजयी और सफल
दिल धड़कनों की आवाज़ सुनता है
सुनकर डरता है
वो भांप लेता है
मन के राग के आलाप
जो बज रहे होते है
बिना लय सुर ताल के
इन ख़्वाबों को देखते हुए
न रूह थकती है और न आँख
दोनों ही करती है इन्तजार
एक ऐसे ख़्वाब के सच होने का
यही इन्तजार बनता है जीने की वजह
मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने में ऐसे ख़्वाब
ईश्वर के नियोजित षडयन्त्र का हिस्सा होते है
क्योंकि
ऐसे ख़्वाब कभी पूरे नही होते
बस उनका अधूरापन
उन्हें न कभी बूढ़ा नही होने देता
और न मरने देता है।

© डॉ. अजीत

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