रेडियो:
एक सच्ची सखी
...........
यह
कोई कोरी लिजलिजी भावुकता नही है और न ही यह देहात बनाम शहरी का कोई संसाधनमूलक विमर्श
की भूमिका है.यह रेडियो की यारी से जुडी
एक याद है जो अब लगभग अपने भूलने के कगार पर है मगर मैं अपनी कुछ हसीं यादों का
दस्तावेजीकरण करना चाहता हूँ. क्यों करना चाहता हूँ इसका भी मेरे पास कोई पुख्ता जवाब नही है मगर मुझे रेडियो से
प्यार रहा है यही कारण है कि मुझे रेडियो की बातें करना उतना ही सुकून देता
है जितना मैं अपने स्कूल के किसी मास्टर
जी का जिक्र करता हूँ और उनकी शिक्षाओं को गल्प समझने की अपनी नादानी पर
मुस्कुराता हूँ.
रेडियो
के साथ एक भरोसे का रिश्ता था और ये सूचना और मनोरंजन की सबसे किफायती सखी थी
किफायती और सखी शब्द दोनों एक साथ प्रयोग करना एक किस्म की ज्यादती है मगर फिर मैं
दोनों को एक साथ इसलिए याद कर रहा हूँ
रेडियो साथ भी देती थी और इसकी आवाज़ सुनने के लिए मुझे मेरी जेब पर कभी
अधिक जोर भी नही पड़ा एक बार उसके सेल ( बेट्री) डलवाओ और फिर तीन महीने के लिए भूल
जाओ. उन दिनों जेब खर्च जैसा कुछ कांसेप्ट गाँव में नही हुआ करता था इसलिए बुआ
मामा के दिए पांच दस रुपये को जोड़कर मैं रेडियो की बेट्री का बंदोबस्त किया करता
था.
आल
इंडिया रेडियो से समाचार सुनता था रोज़ सुबह कलियर नाग,विमलेन्दु पांडे की आवाज़ से
हम देश दुनिया में की खबरों से रूबरू होते थे आज भी उस आवाज़ की खनक मेरे कानों में
बसी हुई है. रेडियो के साथ अच्छी बात यह थी कि ये आपका हाथ पकड़कर बैठाने की जिद
नही करती थी ये हवा में घुल कर आपके साथ साथ फिरने की कुव्वत रखती थी. इसलिए
रेडियो सुनते समय पशुओं को चारा डाला जा सकता था उन्हें नहलाया जा सकता था यहाँ तक
गणित के सवाल भी हल किये जा सकते है मानो रेडियो खुद में इतनी बेफिक्र और मुस्तैद
थी कि उसे और किसी से कोई सौतिया डाह नही था, वो किसी काम में व्यवधान नही बल्कि
उस काम को और दिल से करने की प्रेरणा देती थी.
छुट्टी
के दिनों में मैं सुबह से रेडियो बजा देता था उन दिनों मुझे सुबह साढ़े नौ बजे विविध
भारती पर आने वाले प्रायोजित कार्यक्रम का इन्तजार रहता था फ़िल्मी गानों से अपडेट
रहने का एक वही जरिया था. गर्मी की दोपहर में घर का एक अन्धेरा कमरा और रेडियो दोनों मिलकर क्या गजब की सोफी रचती थी
उस मदहोशपन को शब्दों से ब्यान नही किया जा सकता है. रेडियो तब मेरी छाती पर सवार
रहती और मैं तब ट्यून करता था कि विविध भारती उस पर नई नई रिलीज़ हुई फिल्मों पर आधारित
प्रायोजित कार्यक्रम आया करते थे. मुझे आज भी याद आता है कि कैसे उस प्रोग्राम में
एक डायलोग आता था ‘दक्षिण से आया है ममूती’ ममूती दक्षिण के अभिनेता थे और
उन्होंने किसी हिंदी फिल्म से डेब्यू किया था.
इसके
अलावा क्षेत्रीय रेडियो केन्द्रों से ‘सैनिको के लिए’ और सदाबहार नगमे आते थे उन्हें सुनते हुए मैं नींद
के आगोश में चला जाता था. मैं दावे के साथ कह सकता हूँ रेडियो जिस तरह से लोरी के
जैसा काम करती है ऐसा और कोई ऑडियो का मीडियम नही कर सकता है. रेडियो तब हमारी माँ
की भूमिका में आ जाती थी और रेडियो सुनते-सुनते क्या गहरी नींद आती थी मानो गहरे
तनाव के समय एक स्लीपिंग पिल ले ली लो, वैसी नींद अब नही आती है. फिर ढाई बजे मेरी
आँख अंग्रेजी समाचार बुलेटिन से पहले बजने वाली बीप-बीप की आवाज़ से खुलती थी.
हमारे लिए तब यही अलार्म था.
ऐसा
कई बार हुआ अतिशय गर्मी में हमने चारपाई नीम के पेड़ के नीचे डाल ली और रेडियो
सुनते-सुनते सो गये और उसके बाद धूप और इस
बीप की आवाज़ की सांझी नींद से हमें जगाया.
अपना
विविध भारती कनेक्शन
तीसरे
पहर मेरी ड्यूटी प्राय: पशुओं को पानी पिलाने की होती थी तब मैं रेडियो नल के पास
के पेड़ पर टांग देता था और एक तरफ गाने बजते रहते और दूसरी तरफ मैं नल चलाकर पानी
भरता जाता. 4 बजे आने वाला हेल्लो फरमाइश मेरा प्रिय प्रोग्राम रहा है और हेल्लो
फरमाइश में भी मंगलवार को जब विविध भारती के उद्घोषक कमल शर्मा जी की खनक आवाज़ और
उनके हंसी सुनता तो मेरा दिल बाग़-बाग़ हो जाता था. मैंने बहुत बार गाँव के लैंडलाइन
फोन से मुम्बई स्टूडियो में काल लगाने की कोशिश की मगर कभी सफल न हो पाया.
कमल
शर्मा जी से मेरी बात करने की बड़ी तमन्ना थी जो आज भी बाकी है वो कमाल के एनाउंसर
है आवाज़ से ही लगता है कि वो कितने भद्र और सहृदय होंगे.
इसके
अलावा यूनूस खान को युवाओं पर केन्द्रित कार्यक्रम भी नियमित सुनता था और ममता
सिंह , निम्मी मिश्रा को रेडियो सखी के जरिए सुनना ठीक वैसा अनुभव था जैसे अपनी गली मुहल्ले में बैठकर बैठकी की जा रही
हो.
आज
यूनूस जी और ममता जी फेसबुक पर मित्र है तब के रेडियो के दिनों को याद करते हुए यह
एकदम अविश्ववसनीय सी ही बात लगती है.
रात
में छाया गीत, हवा महल सुनना एक स्प्रिचुअल प्लीजर जैसा अनुभव था.
एफ
एम का आना और रेडियो का बदलना
हालांकि
गाँव में एफ एम को सुनना आसान काम न था मगर ये रेडियो की दुनिया में एक बड़ा बदलाव
था इसने विविध भारती के श्रोता सबसे पहले अपने कब्जे में लिए मगर फिर भी विविध
भारती से प्यार में कोई खास कमी नही आई. आज तो प्राइवेट एफ एम की बाढ़ आई हुई है
एकाध आर जे को छोड़ दे बाकी को सुनने में कोई ख़ास मजा नही आता है निजी कंपनियों के एफएम
पर बाजार के अपने दबाव है मगर शुरुवाती दौर में आल इंडिया रेडियो का एफएम ने गाँव
देहात में जरुर तेजी से लोकप्रियता हासिल की. कुछ ख़ास ब्रांड के रेडियो सेट गाँव
में लोग खरीदते थे क्योंकि वो दिल्ली का एफएम बढ़िया पकड़ते थे. एफएम में मुझे ओपी
राठौड की आवाज़ बेहद पसंद थी बाद में वो टीवी पर भी आए मगर टीवी पर वो करिश्मा नही
कर सके.
रेडियो
को लेकर मेरे पास इतने किस्से है कि लेख बहुत बड़ा हो जाएगा रेडियो मेरे दिल की सच्ची
साथी रही है अब जब स्मार्ट फोन की दुनिया ने सबको बेहद नजदीक बैठा दिया तब भी मुझे
रेडियो की वो दूरी वाली दुनिया शिद्दत से याद आती है और मुझे जब भी मौक़ा मिलता है
मैं रेडियो जरुर सुनता हूँ.
रेडियो मेरे जीवन में फ्रेंड, फिलासफर और गाइड की
भूमिका में रही है समसामयिक मुद्दों को जानने और समझने के लिए शोर्ट वेव्ज पर
बीबीसी को सुनना आज भी शिद्दत से याद आता है यदि बीबीसी न होती तो मैं तटस्थता से
सोचने की कला न सीख पाता.
...और
अंत में इस लेख को लिखने के लिए मुझे मोटिवेट करने के लिए विविध भारती की मेधावी
उद्घोषिका नेहा शर्मा को जरुर धन्यवाद कहूंगा नेहा के कारण ही मैं इन भूली बिसरी
यादों का दस्तावेजीकरण कर पाया. नेहा अब नई पीढ़ी की उम्मीद है.
मैं
दुआ करूंगा कि जीवन की आपाधापी में रेडियो का सुकून और रेडियो की दीवानगी दोनों
बरकरार रहें साथ ही वो खूबसूरत आवाजें भी सलामत रहें जिन्हें हमे खुद से ईमानदारी
से बातचीत करने का सलीका और शऊर सिखाया.
©
डॉ. अजित
वाह. एक सांस में पूरा पढ़ गया. सेम फीलिंग्स इधर भी है.
ReplyDeleteआपका लेख बहुत अच्छा है, इसे इस भयानक ब्लॉग पर साझा करने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteइतनी बड़ी जानकारी देने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteशानदार वेबसाइट। ढेर सारी उपयोगी जानकारी यहां है
ReplyDeleteआपकी जानकारी के लिए धन्यवाद। मैं और अधिक चाहता हूँ।
ReplyDeleteGet Latest Updates on Employment News and free jobs alert.
ReplyDelete