किसानों की
व्यथा-कथा इस देश में नई कतई नही है भिन्न-भिन्न प्रांतो के किसान अलग-अलग रुप से
प्रताडित और शोषित है विदर्भ का किसान आत्महत्या कर रहा है तो यूपी का किसान अपनी
बहन-बेटी की शादी और रोजमर्रा के खर्चो के लिए सरकार का मूँह ताक रहा है कि वह
चीनी मिल मालिकों के साथ सख्ती से पेश आए और उसके बकाया का भुगतान कराये लेकिन
हालत जस की तस बनी हुई है।
दोआब क्षेत्र
के जिस गांव से मेरा ताल्लुक है वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ‘शुगर बाऊल’ के रुप मे
जाना जाता है। मेरे पिताजी भले ही गांव के बडे काश्तकार है लेकिन गन्ना किसान होने
की वजह से वो भी उतने ही प्रताडित और शोषित है जितना कोई एक आम किसान होता है।
पिछले कई सालों से हम गांव के बडे गन्ना उत्पादक रहे है लेकिन अब यह बेहद घाटे का
सौदा लगने लगा है। गन्ना किसान की जिन्दगी बद से बदतर होती जा रही है एक समय था जब
गन्ना पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सबसे बडी कैश क्राप समझी जाती थी और इसी वजह से
गन्ना उत्पादन की तरफ बेहताशा लोगो का रुझान भी बढा था लेकिन सरकार की चीनी मिल
मालिकों से मिलीभगत होने की वजह अब गन्ना उत्पादन करना बेहद घाटे का सौदा बन कर रह
गया है।
किसानों की
दारुण कथा देखिए वह अपने बलबूते पर गन्ना उगाता है और उसको कटवा कर/छिलवा कर मिल
के गेट तक अपने खर्चे पर पहूंचा कर आता है मिल प्रबंधन के लिए कोई टेंशन नही होती
है उसे रॉ मैटेरियल अपने गेट तक फ्री मे मिल रहा है और गन्ने से चीनी के अलावा
शीरा.खोई,ऐथनॉल का भी उत्पादन करता है लेकिन चीनी मिल मालिकों को चीनी की कीमतों
का झूठा रोना रोने की ऐसी आदत पड गई है जिसके आधार पर वो जमकर कारपोर्टिया स्टाईल
में ब्लैकमेलिंग करने में लग जाती है। सरकार के लिए किसान केवल मूर्ख किस्म का वोट
बैंक है जो किसान होने से पहले अलग अलग जातियों में भी बटें हुए है इसलिए उनका
उपयोग करना या उनको बहलाना सरकार के तुलनात्मक रुप से आसान काम है इसलिए उनकी
तरजीह का हमेशा केन्द्र चीनी मिल मालिक ही रहते है।
सिस्टम की
मार देखिए किसानों को कहने के लिए तो आसान ब्याज़ दर पर क्रेडिट कार्ड/क्राप लोन
दिया जाता है लेकिन ये लोन लेना भी कम घाटे का सौदा नही है क्योंकि बैंक के लिए
किसान बेहद घृणास्पद और मजबूर किस्म का ग्राहक है वह उसके जमीन की डीड के बदले
बेहद कम राशि का लोन की मंजूर करते है और यह लोन लेने का भी कोई सीधा तंत्र नही है
बीच मे दलालों की दूनिया है जिसके बिना आप लोन ले ही नही पाएंगे कुछ समय तक सरकारी
बैकों के मैनेजर की केवल बेरुखी और बदतमीजी ही किसानों को बर्दाश्त करनी पडती थी
अब हालत यह है कि बिना दलाल की मध्यस्ता के लोन ही नही मिल पायेगा और लोन के लिए
उनके मौटे कमीशन भी तय है। यूपी मे सहकारी क्षेत्र का एक बैंक है भूमि विकास बैंक
जिसके चैयरमेन मुलायम सिंह के भाई शिवपाल यादव है किसाने के दर्द के लिहाज़ यह भूमि
हडप बैंक है यहाँ कमीशनखोर दलालों की 30 परशेंट का खुला रेट है मतलब यदि आपको 1
लाख का लोन चाहिए तो आपके हाथ इन कैश केवल 70 हजार ही लगेंगे बाकि के 30 हजार बैंक
कर्मियों और दलालों में बतौर रिश्वत वितरित होंगे यह खुली व्यवस्था इसमे कोई भी
लुका-छिपी का खेल नही है जहाँ जहाँ भूमि विकास बैंक है वहाँ वहाँ आपको ऐसे दलाल
(जिन्हे डीलर कहा जाता है) के दफ्तर खुले मिलेंगे मेरी निजि पडताल यह भी पता चला
कि यह एक सुनियोजित तंत्र है जिसमे पैसा जनपद और कस्बों से निकलकर राजधानी तक
पहूंचता है।
किसानों की
खून पसीने की कमाई का पैसा भले ही चीनी मिल मालिकों की तिजोरियों मे फंसा रहे उसकी
कोई सुनवाई नही है अपने गन्ने के भुगतान का ब्याज़ की छोडिए मूलधन भी समय पर नही
मिल पाता है लेकिन जैसे ही इन बैंको की किस्त
देने मे किसान असमर्थ होता है बैंको के द्वारा उसका मानसिक उत्पीडन शुरु हो जाता
है दीगर बात यह भी है कोई भी किसान चालाकी से बैंक का लोन चुकाने से नही बचना
चाहता है उसके लिए तो यह लोन नाक का भी सवाल होता है जिसके चलते वह अपने सामाजिक
परिवेश से लेकर रिश्तेदारियों तक मे जिल्लत झेलता है लेकिन उसकी दिन ब दिन बिगडती
आर्थिकी उसको मजबूर कर देती है और ऐसे मे बैंक मैनेजर दल बल सहित उस पर बैंक का
पैसा जमा करने का तकादा करता है कई बार आर.सी काटने की धमकी के नाम पर भी छोटी
छोटी राशि वसूलता है और जो लोन उसने इस करप्ट सिस्टम के चलते हासिल किया होता है
जिसका एक एक हिस्सा भ्रष्ट अधिकारियों से लेकर दलालों तक ने चट किया होता है उसके
देनदार के रुप में उसके गले में जिल्लत का ऐसा फंदा फंस जाता है कि वह उससे निकल
ही नही पाता है। एक सीमा के बाद लोन की उगाही के लिए आर सी काट देता है फिर तहसील
का राजस्व विभाग किसान की जान लेने पर उतारु हो जाता है संग्रह अमीन उसका किस हद
तक मानसिक शोषण करता है आप अन्दाज़ा भी नही लगा सकते है और बहुत बार तहसीलदार उसको
पुलिसिया बल के साथ उठाकर तहसील में कारागार में बंद भी करवा देता है। अभी हाल ही
मै रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के विभिन्न बैंको का लगभग 14000 करोड
रुपया उद्योगपति लोन के रुप मे दबाए बैठे है और बैंको ने इस बडी राशि की उगाही मे
असमर्थता जाहिर कर दी है लेकिन इन कारपोरेटस को पकडने की कोई भी कार्यवाही बैंको
के द्वारा नही की गई और उनकी कुल परिसम्पत्तियों से कई गुना राशि का लोन उन्हे
दिया गया है इनमे से अधिकांश लोग विदेश मे
शिफ्ट हो गए है अब तंत्र देखिए एक तरफ एक मजबूर किसान है जो चालाक नही है और मंशा
से भी लोन देना चाहता है और दूसरी तरफ
चालाक कारपोरेट्स है जिनके हिसाब से नीतियां तय होती है और जो देश का धन भी हडपे
बैठे है।
इन सब जिल्लतों
को झेलने के बाद भी भारत का किसान बेहद आशावादी जीव है वह धैर्य नही खोता है वह हर
साल इस उम्मीद पर फसल उगाता है कि इस बार उसके साथ छल नही होगा कभी प्रकृति की मार
तो कभी सरकार की मार झेलता भारतीय किसान उत्पीडन और शोषण का केन्द्र बन कर रह गया
है। किसानों की फिख्र न सत्ता पक्ष को है न ही विपक्ष को ही है दोनो के एजेंडे मे
किसान नही दिखता है हाँ दिखता है तो केवल वोट जो लेना सभी पार्टियों को आता ही है।
किसान असंगठित है सवर्ण और पिछडे के धडों मे भी बंटा हुआ है और शायद इसलिए सबसे
अधिक शोषित भी है।
sir ji kisano ke liye kuch ho sakta hai kya ?
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