आज मुझे अपनी एक पुरानी किताब हाथ लग गई जो मैने एम.ए. मे खरीदी थी और शायरी की मेरी यह पहली किताब थी इसके बाद ही मुझे चस्का लगा शायरी पढने की और लिखने का भी...आज वही किताब फिर से मेरे सामने आ गई तो मेरे जेहन मे पुरानी यादें फिर से ताज़ा हो गई और मै फिर से एकबारगी से पुरी किताब पढ गया है शे’र तो वही पुराने थे लेकिन इस बार तारीख बदल गई है सो पढ कर दिल को बहुत सुकून भी मिला...उसी किताब से कुछ शे’र जो मुझे पंसद आये आपके साथ सांझा कर रहा हूं हो सकता है कि आपको भी ख्याल पसंद आये...।
जो कीडे रेंगते रहते हैं नालियों के करीब
वो मर भी जाएँ रेशम बना नही सकते...।(तश्ना आलमी)
हर एक बच्चा अदब करने लगा है
बुढापा मुझ पै शायद आ गया है....।(सय्यद सईद अख्तर)
अँगडाई भी वो लेने पाये उठा के हाथ
देखा तो मुझे छोड दिया मुस्करा के हाथ...।(निज़ाम रामपुरी)
हर एक आदमी उडता हुआ बगूला था
तुम्हारे शहर मे हम किससे गुफ्तगू करते...।(बाकी सिद्दीकी)
मेरी शोहरत का इश्तहार अभी
उसकी दीवार तक नही पहुंचा...।(अनवर हुसैन अनवर)
दुख मेरा देखो कि अपने साथियों जैसा नही
मैं बहादुर हूँ मगर हारे हुए लश्कर मे हूं....(रियाज़ मजीद)
हो चुकी जब खत्म अपनी ज़िन्दगी की दास्ताँ
उनकी फरमाइश हुए इसको दोबार कहें...।(शमशेर बहादुर सिंह)
नही आती जो याद उनकी महीनों तक नही आती
मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं....(हसरत मोहानी)
शेष फिर...
डा.अजीत
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