Saturday, October 9, 2010

थकान

आज मै बेहद थका हुआ और निढाल महसूस कर रहा हूं अभी-अभी पहले पत्नि से मसाज़र से मसाज़ करवाया और फिर खुद वाईब्रेशन मोड का मीठा-मीठा दर्द मिटने का मज़ा लिया। अभी अचानक लगा कि लेपटाप खोल ही लूं अन्यथा आज का आम दिन खास न होने की सज़ा पाएगा और मै अपने इस अहसास को आपके साथ नही बांट पाउंगा।

दिन की शुरुवात पहले की तरह से हुई है रोज़ाना रात को यह सोच कर और पक्का इरादा करके सोता हूं कि सुबह बिना नाश्ता किए बिना एक बार अपने कोलेस्ट्राल लेवल को चैक कराने के लिए ब्लड का लिपिड प्रोफाईल टेस्ट करवाना है लेकिन पता नही क्यों रोजाना भरपेट नाश्ता करने के बाद ही यह याद आता है कि आज ये टेस्ट करवाना था अर्द्दचेतन में इसकी एक वजह टेस्ट की फीस 300 रुपये होना भी है क्योंकि आजकल अपना हाथ थोडा टाईट चल रहा है जैसाकि मैने पहले भी लिखा है कि मैने इस सत्र मे पूरी बेशर्मी की हद तक अपने घरवालों (पिताजी) से आर्थिक मदद ले चूका हूँ सो अब मै थोडा सा मितव्ययी होना चाहता हूं ताकि महीने के अंत मे मै अपने आपको लाचार और बेबस न महसूस कर सकूं।

आज ही मैने नीलम रत्न भी धारण किया है मेरे हाथ टाईट होने मे इस रत्न की भी एक छोटी सी भूमिका है लगभग 16500 के करीब पडा यह मुझे वो अपने मित्र डा.अनिल सैनी के माध्यम से ईएमआई की सुविधा मिल गई वो भी बिना ब्याज के सो मै यह दुस्साहसिक कदम उठा सका। आपको यहाँ मै बताता चलूं कि लगभग मैने दो साल भी नीलम रत्न धारण किया था बहुत दिनों तक धारण किए रहा फिर पता नही क्या सूझा मैने अपने सारे रत्न(पन्ना,गोमेद और जरकन आदि) त्याग दिए और लगा कि इनसे जीवन मे न कोई सकारात्मक बदलाव आ रहा था और न कुछ नकारात्मक ही हुआ सब कुछ यथास्थिति मे चला सो इनके धारण करने का क्या लाभ अपनी दोनों अंगुठीयां छोटे भाई को दे दी...उसके जीवन मे जरुर सकारात्मक बदलाव आया हैं।

थोडा बहुत ज्योतिष मे छात्र स्तर का जो ज्ञान है उसी से प्रेरणा पा कर मैने फिर से कुछ रत्न धारण करने का मन बनाया और मन क्या बनाया एक आंतरिक आवाज़ आ रही थी बार बार सो मैने सोचा अपने दिमाग की नही दिल की बात मानूं अब देखते है कि क्या होता नवरात्र मे फिर से मै अपने रत्नादि के हथियारों से लैस होकर जीवन युद्द में उतर रहा हूं जिसमे मेरे द्वारा संकलित एक उपरत्नों का लाकिट भी है।

अब देखने वाली बात यह होगी कि आने वाला कल कैसा रहेगा? आप भी सोच रहें कि मै एक मनोविज्ञान का आदमी होता हुआ भी कहाँ से रत्नों के चक्कर मे पड गया इसके जवाब मे मै बस यही कहूंगा कि यह व्यक्तिगत जिज्ञासा और आस्था का प्रश्न है और विज्ञान की भाषा मे कहूं तो कास्मोलाजी है बस अपनी ऊर्जा को अपने सकारात्मक उर्जा से जोडने का एक प्रयास है। मैने अपने ज्योतिष ज्ञान और जिज्ञासा का आधार विज्ञान सम्मत ही चुना है और अभी तक सारे प्रयोग भी खुद पर ही किए हैं ताकि नफा-नुकसान अपना ही हो अपनी प्रयोगधर्मिता के चक्कर के किसी और का बुरा नही होना चाहिए।

आज के दिन का दूसरा नग्न पहलू यह रहा कि मैने अपने बजट को संतुलित रखने के लिए सबसे पहले अपने अविवाहित छोटे भाई के पास 2500 की आर्थिक मदद का एसएमएस दागा(जबसे वह नौकरी कर रहा है तब से लेकर आजतक मै उससे लगभग 10,000 रुपयों की मदद ले चूका हूं) मेरी इतनी बेशर्मी पर पत्नि अक्सर खफा रहती है उसका मानना है कि मै अपने छोटे भाई से पहले से पैसा कमा रहा हूं और उसकी मदद के बदले कभी भी एक फूटीं कौडी उसको नही दे सका बल्कि जब कभी वह आनलाईन रेलवे का टिकिट मेरे माध्यम से बनवाता है तब उसको टिकिट मेल करने के बाद उसकी राशि भी बडी बेशर्मी से उसको बता देता हूं एसएमएस से और वो बेचारा तुरंत ही मेरे बैंक खाते मे फंड ट्रांसफर्र कर भी देता है।

मेरी तरह से आजकल उसका भी हाथ तंग चल रहा है लेकिन फिर उसने मुझे आश्वस्त किया कि उसके वेतन के आते ही वह मुझे पैसे दे देगा। इसके अलावा मैने अपने दो बौद्दिक मित्रों के पास भी वही एसएमएस फारवर्ड किया लेकिन दोनो ने ही हर बार की तरह से मुझे निराश ही किया निराश इस बात से नही कि वें मेरी मदद नही कर सकते बस मुझे निराशा इस बात से हुई कि उन्होनें मेरे एसएमएस का कोई जवाब ही नही दिया न सकारात्मक और न ही नकारात्मक।मुझे जहाँ से यह मदद मिली वहाँ से मै कभी उम्मीद नही कर सकता था बस यही ज़िन्दगी की रहस्यात्मकता है और मेरे एक अजिज़ दोस्त के मुताबिक कि आजकल चौकनें का दौर हैं...।

यहाँ मैने अपने दिल को यह शेर सुना करा कर तसल्ली दी....

सवाल करके मै खुद पशैमां हूं

जवाब दे कर मुझे और शर्मसार न कर...(अज्ञात)

आज के लिए बस इतना ही...शेष फिर..

डा.अजीत

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