ज्योतिष मे विश्वास करने वाले मित्रगण इस बात पर यकीन कर सकते है जो मै लिखने जा रहा हूं बाकि का पता नही क्या सोचेंगे।मेरी जन्मकुंडली जोकि कन्या लग्न की है बारहवें घर मे भगवान सूर्यदेव दैत्यगुरु शुक्राचार्य के साथ विराज़मान है। सूर्य-शुक्र की यह युति धनाढय बनाती ऐसा दावा ज्योतिषी करते है। अपने अल्प ज्योतिष के ज्ञान के आधार मै इस युति के सन्दर्भ मे इस निष्कर्ष पर पहूंचा हूं कि चूंकि कुंडली का बारहवा घर खर्चे का है सो सूर्य देवता के दिन यानि रविवार के दिन मै अपने अन्दर एक खास तरह की खर्च करने की बैचेनी महसूस करता हूं यदि मै इसको सायास इसको नज़रअन्दाज़ भी करना चाहूं तो कुछ ऐसे संयोग स्वत: बन जाते है कि इस दिन मै अपनी जेब जरुर ढीली करता हूं चाहकर भी खुद को रोक नही पाता हूं। यह बात मै पिछले एक साल से नोटिस कर रहा हूं जिससे मेरी ज्योतिष पर श्रद्दा और भी बढती ही जा रही है, बात केवल सूर्य देव के खर्चे करवाने तक ही सीमित नही है मै प्रतिदिन ग्रहों की अपनी कुंडली मे स्थिति को लेकर वैसा ही फल भी प्राप्त और तदनुसार अपना व्यावहार महसूस करता हूं।
आज मै सुबह दस बजे घर से निकल गया था बालके के लिए ड्रेस लानी थी और आपको यकीन नही आएगा मै ठीक दस बजने से पहले दुकान पर पहूंच गया और उसके लिए दो पेंट और जूते खरीद कर लौटा सर्दीयां आ रही है और अभी वो नेकर मे ही स्कूल मे जा रहा था सो मैने उसके लिए पेंट खरीदने का फैसला किया।
इसके बाद थोडी देर घर पर बैठने के बाद मेरे दिमाग मे फिर से खर्चे का कीडा काटने लगा मैने सोचा क्यों न एक फिरोज़ा रत्न की अंगुठी बनवा ली जाए मैने अपने रत्न वाले भईया को फोन किया और उसने कहा डाक्टर साहब! तुरंत आ जाओ अभी बन जाएगी फिर इसके बाद मै अपनी बाईक पर सवार पर हो कर हर की पैडी स्थित उसकी दुकान पर जाने के लिए निकला लेकिन आधे रास्ते मे बाईक ने चलने से मना कर दिया अजीब सा नखरा कर रही थी मतलब चलती-चलती रुक जाती थी और वो भी आधे रास्ते पर जहाँ दूर-दूर तक कोई मैकनिक भी नही है मै हैरान और परेशान बाईक को जैसे तैसे धकेलता हुआ चला जा रहा था तभी पीछे से देवदूत की भांति मेरे मित्र योगेश योगी,योगेन्द्र जी और डा.सुशील उपाध्याय जी अपने स्कूटर से आ गये उन्हे देखकर मुझे राहत भी मिली और शर्म भी लगी मैने बताया कि संभवत: बाईक का प्लग शार्ट हो गया है जिस पर उन्होने एक बार बाईक का प्लग चैक किया लेकिन कुछ हल नही निकला।
सुशील जी ने तो यहाँ तक कह दिया कि डाक्टर साहब यह बाईक आपकी काया के समक्ष कुतिया की माफिक लग रही है मै बस मन मसोस कर ही रह गया है वैसे 2011 मे मेरी बुलट लेने का मन है तब ही काया के अनुरुप वाहन जचेंगा।
खैर! धीरे-धीरे योगी जी ने मेरी बाईक को अपनी स्कूटर से जोडा और जैसे तैसे हम हाई वे से शहर मे दाखिल हो गये मैने अंतिम रुप से सडक पार करने के लिए एक बार फिर से बाईक स्ट्रार्ट की और वो बेशरम स्ट्रार्ट हो गई हो क्या गई फिर तो ऐसी दौडी कि रुकी ही नही मैने एक बार पीछे मुडकर देखा तो कही पर भी अपने साथी योगी जी नही दिखाई दिए एक बार मैने सोचा पीछे उनको देखकर आउं फिर लगा कि अब यह चालू हालत मे है सो पहले अपना काम निबटा लूं बाद मे योगी जी ने फोन भी किया मुझे लेकिन सच मे मुझे सुनाई नही दिया जब मै देखकर उनको काल बैक किया तो उन्होने शिकायती लहजे मे कहा कि वें मेरा मैकनिक की दुकान पर इंतजार कर रहे थे फिर मैने उनको अपनी मजबूरी बताई जिसे उन्होने मान लिया।मैने रत्न की दुकान पर बैठ कर एक फिरोज़ा उपरत्न की अंगुठी तैयार करवाई तथा वही धारण भी कर ली हालांकि विधि विधान से शुक्रवार को धारण करुंगा। इसके बाद घर आया खाना खाया और सो गया अभी अभी सो कर उठा हूं चाय पी और आपके साथ आज अपने अनुभव सांझे किए बस यही है आज का रोजनामचा जो ज्योतिष से शुरु होकर शाम की चाय पर खत्म हुआ...। डा.अजीत
आजकल मौसम धीरे धीरे बदल रहा है ठंडक बढ रही सुबह शाम की सो मैने अपने कुछ गर्म कपडे आज निकलवाए है एकाध दिन धूप लगने के बाद पहनने के काबिल हो जाएंगे। आज विश्वविद्यालय मे अपने हास्टल के दिनों के पुराने साथी माहेश्वरी जी से मिलना हुआ। गुरुकुल मे आप यूं समझ लीजिए कि हम दो ही भीष्म पितामह रह गये है अपने ग्रुप के बाकि सबके सब अपनी दूनियादारी मे मशगूल हो गये हैं...कुछ परिपक्व और व्यावहारिक हो गये और कुछ दूनियादारी मे मशरुफ लेकिन यहाँ अपने साथ के लोगो मे से जब माहेश्वरी को देखता हूं तो लगता कि उनको अभी जमाने की हवा नही लगी है वें अभी तक वैसे ही है जैसे कभी मुझे हास्टल के कमरा नम्बर 14 मे मिलें थे। वही बेतरतीब जिन्दगी जीने की आदत अभी तक उनके वजूद का बडा हिस्सा है जो मुझे पसंद भी है। वैसे तो बिरादरी से बनिए है लेकिन आदत से बहुत बेतरतीब और लापरवाह साथ ही अतिसंवेदनशील भी और हिसाब-किताब मे बिल्कुल कच्चे मेरी तरह से।
आजकल वो भी गहरी पीडा से गुज़र रहे है अपने वजूद को लेकर परेशान रहते है और बार बार यह सवाल खुद से करते है कि आखिर मै कर क्या रहा हूं? वैसे आपको बता दूं कि लौकिक रुप से वें माईक्रोबायोलाजी से पी.एच.डी. कर रहे है अपने जमाने मे बडे पढाकु किस्म छात्र रहें है लेकिन दूनियादारी की परीक्षा मे उलझ कर रह गये है भले ही वे लगातार विश्वविद्यालय के टापर रहें है।
हम दोनो ने अपनी अपनी पीडा आज सांझी की वें मुझे कुछ ज्यादा ही सम्मान देते है जिसका मै कतई काबिल नही हूं लेकिन वे मेरी कविताओं के मुक्त कंठ के प्रशंसक है। साहित्य,सम्वेदना और कविता से उनका गहरा जुडाव है भले ही वे विज्ञान विषय के छात्र है। आज फिर मैने घर से आर्थिक मदद ली है बजट बहुत दिनों से बस मे नही आ रहा है सोचता हर बार हूं कि इस बार किसी से मांगना न पडे लेकिन ऐसा नही होता है अंतत: मुझे घर वालो के सामने हाथ फैलाने पडते है वहाँ से पैसा तो मिल ही जाता है लेकिन उसका मेरे पिताजी अहसास खुब कराते है ये उनकी आदत मे शुमार है ताकि भविष्य मे मै घर पर हो रही किसी विषय पर हो रही लोकतांत्रिक बहस में साधिकार हिस्सा न ले सकूं बस अपने पिताजी की स्वेच्छारिता के प्रति अपनी मौन समर्थन देता रहूं। इसमे उनको मानसिक सुख मिलता है अपने फर्ज को वोट मे बदलने की पुरी कोशिस करती है लेकिन मै इतना बेशर्म किस्म का इंसान हूं कि मै पैसा भी ले लेता हूं और गीता पर हाथ रखे बिना किसी भी विषय पर अपनी सच और बेबाक राय रखने से बाज नही आता हूं तभी तो मेरे पिताजी मुझे सियासती कहते है। मै पता नही किस किस्म का सियासती हूं ये मुझे भी नही पता है बस सच बोलने का आदी हूं इसलिए फसादी हूं....।
मैने दिल से कहा ढूंड लाना खुशी....नासमझ गम लाया तो गम ही सही.. नीलेश मिश्र का लिखा यह गीत अभी सुन रहा था फिल्म है रोग। गज़ब का गीत है संवेदना के मामले मे मनुष्य की अपेक्षाओं का भावपूर्ण चित्रण किया गया है,यह गीत मै अक्सर सुनता हूं कभी कभी तो यह लोरी की तरह से मेरे लेपटाप पर बजता रहता मै इसको सुनते सुनते सो जाता हूं।
मन और तन दोनो थके-थके से है आज पत्नि और उसकी बहन टी.वी.मे सास बहू के शोषण और षडयंत्रों मे अपनी इमेज़ देखकर सुखद-दुखद महसूस कर रही है। आजकल घर पर छोटा भाई भी आया हुआ है उसकी एक परीक्षा होनी है आगामी 31 अक्टूबर को जिसके लिए वो तैयारी कर रहा है।
आज मुझे थोडी जुकाम की भी शिकायत है गला दर्द कर रहा है बस थूक नही निगला जाता है बडा दर्द होता है मै कोई ज्यादा हेवी दवाई लेना नही चाहता हूं सो घर पर ही एक कोल्ड टैबलेट पडी हुई थी वही ली है अभी शाम को शायद सुबह तक कुछ आराम मिले।
रिश्ते सुधारने के चक्कर मे मै खुद इतना बडा खलनायक बन चूका कि अब मुझे अपने आपसे ही एक घिन्न सी होने लगी है मै महान बनने के चक्कर मे ध्वजवाहक बन कर चला था अपने कुल की प्राण प्रतिष्ठा को वापस स्थापित करने के लिए लेकिन यहाँ तो तमाशा ही दूसरा खडा हो गया है पूरा सीन ही बदल गया है। पिता के लिए सियासती,भाईयों के लिए तटस्थ और पत्नि के लिए युक्तियुक्त झूठ बोलने मे माहिर शेखचिल्ली टाईप का इंसान बन गया हूं। मित्र पहले से ही बालकीय और सनकी होने का विशेषण दे चूके है जिन्हे मेरी हर सामान्य सी बात तंज लगती है तो कुल मिलाकर आजकल मै नितांत ही अकेला इस जीवन युद्द मे खडा हूं और मज़े की बात है कि इस औपचारिकता पंसद दूनिया मे मै खुद को आउटडेटड महसूस करता हूं।
जब मै कक्षा नौ मे पढता था तब मैने अपने घर की जिम्मेदारियों को ओढ लिया था इस ज़िद के साथ कि अपने परिवार की पुनश्च: प्राण प्रतिष्ठा करनी है और इसी चक्कर मे मैने अपने सीमाओं से परे जाकर परिवार के बहुत कुछ किया भी है लेकिन दुर्भाग्य से उसका कोई लेखा-जोखा मेरे किसी परिजन के पास नही है सबने अपनी अपनी परिभाषाएं गढ ली है और अपने जीने का एक तरीका भी तय कर लिया है लेकिन न जाने क्यों मै वही पर अटका हुआ हूं।
आज भी जब अपने गांव जाता हूं तो वही आग अपने अन्दर आज भी जिन्दा पाता हूं जो आज से दस साल पहले थी लेकिन अब हौसला जवाब देने लगा है सच्चाई तो यह है कि कभी सामूहिकता के चक्कर मे मै अपने सपने अपने कुछ अज़ीजो के यहाँ गिरवी रख आया था ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आ सके लेकिन हुआ इसका एक उल्टा है सपनें अब एक ऐसी कडवी याद बनकर रह गये है जिसके जायका हमेशा मेरे जेहन मे कडवा ही रहेगा।
आप कभी भी सभी को खुश नही रख सकते हैं चाहे लाख कोशिस कर ले अपनी जान लडा दें लेकिन शिकवे-शिकायत बनी ही रहती है सो मै भी इसी का एक हिस्सा हूं। महान बनने की जो लत है वो एक दिन आपके ऐसे मुहाने पे लाकर खडा कर देती है जहाँ कदमों मे लडखडाहट और जबान मे हकलाहट के सिवाय कुछ नही बचता है।
समान सम्वेदना की समझ रखने वाले लोग बहुत कम इस दूनिया मे सबके अपने अपने तर्क और कोण है अपने जीवन प्रमेय को जीने के...।
एक खीझ,एक गुस्सा और एक जुगुप्सा के भाव के साथ मै जी रहा हूं आजकल यही आज की सबसे बडी सच्चाई है। मनोविज्ञान मेरा विषय है और मेरे मुख से ऐसी निराशावादी प्रतीत होने वाली बात शोभा नही देती है लेकिन मैने पहले भी लिखा था कि इस ब्लाग पर मै बौद्दिक रुप से नग्न हो कर अपनी बात कहूंगा और वो भी ईमानदारी के साथ विषय बाद की बात है पहले मेरा अपना अस्तित्व है और फिर मेरा व्यक्तिगत रुप से शिव खेडा टाईप के मोटिवेशन मे श्रद्दा भी नही है जो आपके अन्दर एक क्षणिक़ उत्तेजना भर देती हो बस...।
स्थाई मोटिवेशन कहाँ से मिलेगा उसी की तलाश और जुगत मे हूं अगर मिल गया तो आपके साथ जरुर शेयर करुंगा अभी तो खुद को सुलझाने मे लगा हुआ हूं...। डा.अजीत
आजकल का वक्त बडा ही अजीब किस्म का चल रहा है एक अजीब का अहसास है मानसिक ऊर्जा के मामले मे इतनी बडी हलचल से मै शायद ही कभी गुजरा हूं जितना आजकल महसूस कर रहा हूं। जीवन अपना मायने तलाशने के लिए रोज नए बहाने गढ लेता है लेकिन एक इनर काल कई दिन से आ रही है कि कही तो कुछ गलत चल रहा है अपने साथ। सामूहिकता के चक्कर मे अपने मौलिक हथियार इतने जंग खा जाएंगे ये मैने कभी सपने मे भी नही सोचा था। वैसे तो मै मनोविज्ञान पढाता हूं और कई नैदानिक रुप से मनोरोगियों को परामर्शन देता हूं लेकिन खुद की दवा नही कर पा रहा हूं। मनोव्याधि की भाषा के अगर कहूं तो मेरे व्यवहार के जो लक्षण है वे क्रोनिक डिप्रेशन और एनजाईटी न्यूरोसिस के है पत्नि बार-बार कह भी रह है कि सेल्फ मेडीकेशन के बजाए किसी योग्य साईकेट्रिट को दिखा लूं...। मुझे लगता है कि मर्ज़ मन का है सो क्या किसी डाक्टर के पास जाना जितना मै जानता हूं उसी के हिसाब से दवा ले लेता हूं चूंकि मानसिक व्याधियों की दवा शामक किस्म की होती है इसलिए सारे दिन नींद सी आई रहती है विश्वविद्यालय से घर आता हूं खाना खाता हूं और सो जाता हूं अभी शाम को सो कर उठा हूं रात को फिर एक डोज़ मुझे नींद के आगोश मे ले जाएगी। सेल्फ मेडीकेशन का मुझे भी कोई शौक नही है और न ही मुझे दवा से नींद आना प्रिय है।
लेकिन पिछले दो महीनो से मष्तिक की क्रियाशीलता इतनी बढी हुई है कि अगर रात को बिना दवा के सोना भी चाहूं तो एक के बाद एक इतनी तीव्र गति विचार आने लगते है कि बैचेनी बढ जाती और नींद का कोसो पता नही रहता है। जब मै गांव मे गया था तब मैने मेडिशन का ब्रेक दिया था क्योंकि मै एडिक्शन नही चाहता हूं वहाँ कमोबेश ठीक ठाक ही नींद आई न ज्यादा गहरी न ज्यादा सतही।
हरिद्वार आते ही मेरे कडवा अतीत और नीरस वर्तमान खडा हो जाता है जिससे मेरा भविष्य प्रभावित हो रहा है। एक अजीब से अहसास से भरी ज़िन्दगी जी रहा हूं कभी लगता है अभी बहुत कुछ करना बाकि है तो कभी लगता है कि मै अपने सर्वश्रेष्ट प्रयास करके देख चूका हूं अब वक्त अनुकूल नही है कोई भी प्रयास सार्थक नही होगा ये सब मेरे पिछले दो महीने के भगीरथ प्रयासों की निष्फलता की उपज है,सो अपने आपको वक्त हवाले कर देना चाहिए अब साक्षी भाव से ही जीना बुद्दिमानी है वक्त अपने रास्ते खुद तय कर लेगा।
दरअसल,मै उकता गया हूं कही बहुत दूर जाना चाहता हूं और साथ ही अपने अतीत को भुलाना चाहता हूं जहाँ मैने संवेदनशीलता के चक्कर मे अपनी एक बालकीय छवि बनाई है जिसको सभी अपनी सलाह दे कर बचाना चाहते है।
अब देखते है कि कल क्या होगा? आज का दिन तो यूं ही कट गया बेवजह...।
आज करवा चौथ है जब तक मेरा विवाह भी नही हुआ था तभी से मुझे पता नही इस व्रत से एक खास किस्म की चिढ सी है। इसमे मेरी कोई पुरुषवादी अहम की कोई भूमिका नही है बस पता नही क्यों मुझे आजके दिन अच्छा नही लगता है। चूंकि मै देहात की पृष्टभूमि का रहने वाला हूं इसलिए एक वजह यह भी है कि मैने कभी अपनी माताजी को यह व्रत करते नही देखा हमारे घर मे यह परम्परा हमारी पीढी की बहूओं ने शुरु की है मेरी दादी जी का तो अब तक यह मानना रहा है कि यह ब्राह्मण और बनियों त्योंहार है। क्षत्रिय कुल के महिलाएं अपने पति को राजतिलक लगा कर युद्द मे लडने और विजयी होने के लिए के भेजती थी जबकि आज कल उल्टा ही हो रहा है करवा चौथ के व्रत के नाम पर मेरी पत्नि मेरे प्राणों की रक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करेंगी और अपनी स्वास्थ्य सम्बंधी दिक्कतों को नज़र अन्दाज करके सारा दिन मेरे लिए भुखी भी रहेगी यहाँ तक कि जल भी ग्रहण नही करेगी। ये सब बातें मुझे तकलीफ देती है मै उसके प्रेम एवं भावनाओं का सम्मान करता हूं इसलिए साक्षी भाव से इस दिन चुप ही रहता हूं वरना उसको बुरा लगेगा। सच कहूं तो मेरे प्राणों के लिए उसका ईश्वर के सामने गिडगिडाना मुझे ठीक नही लगता। आज के इस भौतिकवादी और प्रतिस्पर्धा के युग में दूनिया के रंगमंच से अपने अभिनय जितना नियत है उसको अदा कर चलते बनना ही बुद्दिमानी है सो ऐसे मे हमारे प्राणों और आयू की वृद्दि की प्रार्थना करके परोक्ष रुप से हमारी परेशानी बढा ही रही है अब ये बात कोई भारतीय पत्नि समझने से रही मै एकाध बार बहस भी की इस बात पर लेकिन हर बार मै असमर्थ रहा अपनी पत्नि को यह तर्क समझाने मे कि आयू बढाने की कामना करना आज के युग मे कोई अच्छी बात नही है बल्कि कष्टों को बढावा देना है।
मुझे नही पता कि कोई करवा भगवान है भी या नही लेकिन अपनी पत्नि की श्रद्दा देखकर मै चुप ही हूं क्यों किसी का दिल दुखाया जाए उस पर तुर्रा यह भी तो है कि ये व्रत भी तो मेरे लिए ही रखा जा रहा है सो नैतिक दबाव अलग से महसूस होता है।
अभी-अभी विश्वविद्यालय से लौटा हूं पत्नि ने नये कपडे पहन रखे है हालांकि सूट मुझे नही भाया और मैने उसको कह भी दिया जिस पर उसका उत्तर था कि आपको तो कोई चीज़ अच्छी लगती कब है खासकर मेरी...!
मैने कुछ नही कहा बस यह करवा चौथ पर अपनी पुराण कहने बैठ गया हूं अभी दिन सामान्य ही बीता है रात का पता नही कि कुछ खास हो जाए जिन्दगी अपने ढंग से रास्ते तलाश रही लेकिन पहले ये धुन्ध छंटनी भी जरुरी है जो मेरे चारो तरफ फैल गई है जिसे रायता फैलना भी कहा जा सकता है...।डा.अजीत
जब वक्त अनुकूल नही होता है तब ऐसे ही हालात बनते चले जाते है कि सकारात्मक प्रयास और उनकी ऊर्जा भी निरर्थक होती चली जाती है। उन दिनों मै गांव मे था जब मेरे मित्र डा.ब्रिजेश उपाध्याय का फोन मेरे पास आया कि उनकी जालन्धर के किसी ऐसे बन्दे से बात हुई है जो कनाडा जाने के वीज़ा दिलवाने का काम करता है, हम दोनो ही कनाडा का पी.आर.वीज़ा मतलब स्थाई निवास का वीज़ा लेने का प्रयास कर रहे है अब अपने देश और अपने लोगो से खासकर मेरा इतना मन भर गया है कि मै भाग जाना चाहता यहाँ से बहुत दूर....इतनी दूर जहाँ पर मै बेताल्लुक जी सकूं।
हम दोनो बडे उत्साह के साथ जालन्धर उस एजेंट से मिलने पहूंचे सारी रात का रेल का सफर काट कर वह हमे स्टेशन पर ही लेने आ गया था उसके लिए हम दो मूर्गे थे जिसका कीमा वो बनाना चाह रहा था। उसके तथाकथित घर पर ही हमारी मुलाकात हुई वैसे तो उसने दावा किया कि वह यूरोप से लेकर कनाडा यूएसए और देश भर मे घुम चूका है लेकिन बातचीत से ज्यादा पढा लिखा नही लग रहा था कभी-कभी अपने अंग्रेजी बोलने के ज्ञान का इनपुट दे देता था।
उसने हमारी शैक्षणिक योग्यता के बारे मे पूछा संभवत: उसको पहली बार हमारे जैसे पी.एच.डी.होल्डर क्लाईंट मिले थे हम अपने शोध पत्रों से लेकर विभिन्न अकादमिक उपलब्धियों का ब्खान किया लेकिन उसकी उसमे कोई खास दिलचस्पी नही थी बस वो डाक्यूमेंट देखता रहा हमने अपने सी.वी.सहित अपने सारे डाक्यूमेंट की एक-एक छायाप्रति उसको दे दी उसने बताया कि एक एक कापी नोटरी से सत्यापित करवा भेजनी पडेगी।
अब बात फीस की हुई तो उसने बडी सफाई से कहा एक बन्दे के एक लाख लगेंगे जिसमे उसका काम केवल एम्बेसी की वीज़ा हेतु कागजो की खानापूर्ति करेगा उसने साफ-साफ कह दिया कि कनाडा के हाई कमीशन मे मेडिकल और साक्षात्कार का पूर्णत: जिम्मेदारी हमारी खुद की होगी अगर उसमे फेल हुए तो फिर वो कुछ नही करा सकता है। हमने चाय पीते-पीते उसको यह बता दिया कि हम पी.आर. से ज्यादा पहले वहाँ नौकरी पाने के इच्छुक है जिस पर उसने अपनी असमर्थता जाहिर की और कहा कि मै वायदा नही करता लेकिन जो हेल्प हो सकती है वो करेगा।
कुल मिलाकर उसके काम के हिसाब से उसकी फीस बहुत ज्यादा थी सो हमने मन ही मन ये फैसला कर लिया था कि हम गलत बन्दे के पास आ गयें है वो दरअसल पंजाब के बेरोजगार युवाओं को कनाडा भेजने मे माहिर था खासकर लेबर स्किल्ड के लोगो को इतनी बडी डिग्री वाले लोगो की डील की उसको कोई जानकारी नही थी।
सारी बातचीत का सार यह रहा है हमने उसको अपने शेष कागजात भेजने का झुठा वायदा किया और उसके पंराठे का नाश्तें के औपचारिक आग्रह को विनम्रतापूर्वक मना कर दिया फिर उसने अपनी गाडी से हमे उस जगह पर छोड दिया जहाँ से हमे होशियारपुर की बस मिलनी थी।
होशियारपुर
मै पिछले साल से होशियारपुर आने का कार्यक्रम बना रहा था एक बार तो टिकिट भी बनवा लिए थे मैने और मेरे मित्र डा.अनिल सैनी जी ने लेकिन ऐन वक्त पर कुछ ऐसा घटित हो गया था कि हम लोग नही जा सकें थे। मैने सोचा जब जालन्धर तक आ ही गये है तो ये तमन्ना भी पूरी कर ली जाए यहाँ से मात्र 38 कि.मी.के आस पास है। होशियारपूर मै भृगु संहिता के सिलसिले मे आना चाहता था मुझे पता चला था कि फलित ज्योतिष के बडे प्रमाणिक ग्रंथ भृगु संहिता की मूल पांडूलिपियां यहा कुछ लोगो के पास संरक्षित है सो मै उनसे मिलना चाहता था।
बस मे खडे होकर लगभग 45 मिनट यात्रा की और होशियारपुर पहूंच गये। जिस भृगु शास्त्री के बारे मे मुझे पता था उनका नाम था श्री श्याम चरण त्रिवेदी। लगभग पचास रुपये रिक्शेवाले को देने के बाद उनके घर जाना हुआ,घर मे दो तीन भक्त लोग पहले से ही विराज़मान थे हमने अपना आने का मंतव्य बताया उस पर उन्होने कहा हमे पहले अपाईंटमेंट लेकर आना चाहिए था वैसे भी आजकल भगवान भृगु और विष्णु शयन मुद्रा मे है सो वें किसी भी प्रकार से उस ग्रंथ को पढकर कोई फलादेश नही बता सकते यहा जानकर मन खिन्न हुआ उन्ही के एक सेवक बार-बार आग्रह करने के बाद भृगु दरबार मे माथा टेका और फिर श्री श्याम चरण जी से संक्षिप्त वार्तालाप हुई।
मैने बताया कि मै परामनोविज्ञान पर अनुसंधान कार्य भी कर रहा हूं जिसे वें मेरी पी.एच.डी.की उपाधि के हेतु समझ बैठे और अपने समय का महत्व बताने लगे जिस पर मैने स्पष्ट किया कि आचार्य जी पी.एच.डी.तो मै चार साल पहले कर चूका हूं ये तो मेरी इस ग्रंथ और ज्योतिष की जिज्ञासा थी जो आपके यहाँ तक खींच लाई।
इसके बाद उन्होने बताया कि चार लोग और है होशियारपुर मे जिनके पास भृगु संहिता की पांडुलिपियां है उन्होने हमे सुझाव दिया कि हम एक बार सबके पास अपने जन्म कुंडली छोड दे जिसके भी ग्रंथ से वह मिल जायेगी वही फलादेश बताने मे सक्षम होगा।
मैने अपनी कुंडली,लग्न,राशि,लग्न और दशा आदि जो मुझे कंठस्थ था उनके नोट पैड पर लिख दिया जिस पर उन्होने आश्वासन दिया कि अगर उनकी पांडुलिपियों मे मेरी कुंडली मिली तो वें मुझे फोन से सूचित कर देंगे जिसका मुझे यकीन कम ही है। ब्रिजेश जी ने भी अपने जन्मादि की जानकारी लिख दी और फिर हमने वहाँ चाय पी कर विदा ली...।
यहाँ से भी निराशा ही हाथ लगी तभी मैने शुरु मे बुरे वक्त होने का जिक्र किया है फिर हमने होशियारपुर रेलवे स्टेशन पर लगभग आधे घंटे तक लोकल ट्रेन का इंतजार किया और ब्रेड पकोडे खाए उस समय भुख बडी तेज लगी हुई थी मैने साथ मे कोल्ड ड्रिंक भी पी..।
रात मे हमारी ट्रेन थी वह भी डेढ घंटा देरी से आई बस जैसे तैसे गिर पड कर आज हरिद्वार पहूंच गया हूं जिन्दगी फिर से पुराने ढर्रे पर चल पडी है। इस यात्रा के किस्से और भी है उनको लिखने बैठूंगा तो पोस्ट बहुत बडी हो जाएगी वैसी अब भी काफी विस्तार हो गया है।
इसे हद दर्जे की बेशर्मी कही जा सकती है कि जिस आत्मीय मित्र से अपने एकांतवास के चक्कर संवादहीनता की स्थिति पैदा कर ली थी कल जैसे ही मुझे उनसे कुछ काम पडा मै अधिकारपूर्वक उन्हें फोन किया और ये उनकी सदाश्यता ही है कि उनसे जो भी बन पडा उन्होने किया बिना किसी संकोच और देरी किए हुए। मसला यह है कि मुझे आज यानि शनिवार की रात को जालन्धर जाना है अपने एक मित्र के साथ और मैने जैसे ही टिकिट बुक कराना चाहा तो पता चला कि लम्बी वेटिंग चल रही है जैसे तैसे मैने अपना टिकिट बुक करवा लिया इस उम्मीद पर कि मेरे एक मित्र जो प्रदेश के काबीना मंत्री के जनसम्पर्क अधिकारी अपनी शासकीय शक्तियों का प्रयोगकरके इस टिकिट को कंफर्म करा देंगे उनका जो अलग से कोटा होता है उसी से मै उम्मीद लगाए बैठा हूं उन्होने मंत्री जी एक चिट्टी भी मेरे पास भेज दी है इसी आरक्षण कोटे के सन्दर्भ मे इनमे एक टिकिट मेरे छोटे भाई का भी है जिसे 31 को दिल्ली जाना है उसका भी वही वेटिंग का पंगा है लेकिन मै अपने मित्र मनोज अनुरागी का आभारी हूं कि मेरी बदतमीजियों के बाद भी उन्होने अपने स्तर से यथासंभव प्रयास किए उम्मीद करता हूं कि दोनो टिकिट कंफर्म हो जाएंगे और हम राजकीय अतिथि बनकर यात्रा करेंगे।
अपने छोटे भाई से पैसे उधार लेने का सिलसिला बदस्तूर जारी है अधिकारपूर्वक अब देखता हूं कि कब उस बेचारे का सब्र टूटता है और वो साफ मना करके मुझे अपने बडे होने का अहसास कराएगा।
आज का जाने कार्यक्रम अभी तक तो तय है मेरे गुरु भाई डा.ब्रिजेश उपाध्याय जी के साथ मुझे जालन्धर जाना है कुछ कनाडा जाने के सिलसिले मे बातचीत करनी है।
अब देखते है कि किस्मत विदेश यात्रा का योग बनाती है या नही...।
आजकल अपने विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के तत्वाधान मे एक पर्यावरण विषयक अंतरराष्ट्रीय सेमीनार चल रही है सारा कैम्पस अकादमिक बारातियों से अटा पडा है कुछ चतुर और चटोरे किस्म के बालक इन तीन दिनों तक अंग्रेजी विभाग के ही मेहमान रहेंगे मतलब खासकर आश्रम मे रहने वाले विद्यार्थी इन तीन दिनों मे खुब माल-पूडी चाटे वो भी पूरी बेशर्मी के साथ अपने प्राध्यापकगणों से नजर चुराते हुए खाने के सभी आईटमस का स्वाद चखेंगे...बस यही एक उम्र है जिसमे लाज़ है कि आती नही बल्कि कल के किस्सों मे वे बडे गर्व के साथ अपनी इस फ्री भोजन की कलाकारी का बखान भी करेंगे कि कैसे वें साधिकार सेमीनारो के भोज्य अतिथि हुआ करते थें।
कुछ विदेशी प्रतिनिधि भी आए हुए है सभी हमारे ऐतिहासिक विश्वविद्यालय की खातिरदारी से अभिभूत है लेकिन कमबख्त बिसलेरी की बोतल है कि उनका साथ नही छोडती। भारत का पानी हज़म करने के लिए बडा खास किस्म का जिगरा चाहिए होता जो केवल भारतीय ही आसानी से कर पाते है कई बार तो उनके भी मरोडे उठने लग जाते है।
आज मैने कुछ अपने काम निबटाए मसलन छोटे भाई का ई टिकिट बनवाया और एक टिकिट खुद अपने सिस्टम से बुक करके देखा और वो हो भी गया कमाल की चीज़ है ये इंटरनेट भी घर बैठे सब काम तमाम हो जाते है यह टिकिट बुक करके मैने अपने अन्दर एक अतिरिक्त आत्मविश्वास महसूस किया वरना अपने ट्रेवल एजेंट पर आश्रित रहना पडता था उसका कमीशन अलग से देना पडता था। कुल मिला कर मामला निबट गया अच्छी तरह से और मैने एक नई चीज़ सीख भी ली है अब अपने लेपटाप से ये क्रिया कर्म किया जाएगा।
अभी एक मित्र के साथ शनिवार को जालन्धर जाने का विचार है हम दोनो कनाडा जाने की तैयारी कर रहें है उसी सिलसिले मे एक मध्यस्थ व्यक्ति से मिलना है।अब इसके बाद देखा जायेगा कि क्या समीकरण बनतें बिगडते है।
अक्सर मेरे साथ ऐसा होता है कि जाने से पहले कोई न कोई भौतिक बाधा आ ही जाती है लेकिन इस बार मन पक्का है कोई बडी बाधा न हुई तो जाना पक्का है। आज के लिए इतना ही कल की बातें कल...
13 अक्टूबर को विश्वविद्यालय मे अवकाश के बारें मैने अपनी पहली पोस्ट मे जिक्र किया था। पहले तो मेरा मन गांव जाने का नही था लेकिन 14 तारीख की दोपहर मे मैने फैसला कर लिया कि यहाँ की तन्हाई मे खटने के बजाए अपने गांव के सुकून मे ही वक्त गुजारुंगा और जैसे ही मैने अपने इस फैसले से पत्नि को अवगत कराया पहले तो मना कर रही थी लेकिन फिर उसने भी मेरे साथ गांव जाने का फैसला किया। हम तीनो अपनी खटारा बाईक लेकर 120 कि.मी. के अपने गांव के सफर पर निकल पडें।
दशहरा अपने गांव मे बिता कर कल ही मै लौटा हूं...बहुत सी बातें है और बहुत से किस्से। अपने बडे भाई और उनके बेटे पार्थ से मिलना एक सुखद अहसास रहा पारिवारिक मामलों मे एकाध बातों को छोडकर मै तटस्थ ही रहा बहुत लम्बरदार(नम्बरदार) बन कर देख लिया हासिल कुछ नही होता एक तमगा और मिल गया सियासती होने का...।
संचार सूचना की दूनिया से कट कर एकांत मे जीएं ये चार दिन घर मे माहौल तो उत्सव सा का था क्योंकि हम साल मे पहली बार तीनों भाई और एक बहन एक साथ एकत्रित हुए थें।
बडे भैय्या की प्राथमिकता अब पार्थ बन गया है और येन-केन-प्रकारण वें उसी के साथ अपना ज्यादा वक्त गुजारते है भाई-बन्धु के लिए अब थोडा ही वक्त बचा है। इन दिनों मै अपनी विदेश यात्रा को लेकर गंभीरतापूर्वक सोच रहा हूं मेरे एक मित्र और है मेरी तरह से जिम्मेदारियों से उकता कर विदेश का जहाज़ पकडना चाहते हैं सो अपने दुख जब एक है तो मार्ग़ भी एक सा बन गया है आज उनसे इस बारें मे संक्षिप्त चर्चा हुई हम दोनो कनाडा मे स्थापित होने का प्रयास कर रहें है।
मै भी अब सब कुछ झमेले छोड कर भाग जाना चाहता हूं बहुत दूर...शायद अपने आपसे तो कभी न भाग सकूं लेकिन ये देश मुझे अब बार बार मेरा कडवा अतीत याद दिलाता है जिससे वर्तमान नीरसता मे गुजर रहा है।
अब देखते है क्या होगा? कल फिर मेरी उनसे भेंट होंगी फिर आगे की चर्चा होगी। गांव मे ऐसा कुछ विशेष नही घटा जिसकी चर्चा आपसे कर सकूं बस अवधूतपन मे वक्त गुजर गया अब गांव भी बदल रहा है...मेरे मिज़ाज के हिसाब से...।
आवारा की डायरी पर गैरहाजिरी के लिए माफी इस बार मै गांव बिना लेपटाप के गया था सो न कुछ लिखा न कुछ पढा...।अब रोज होंगी आपसे गुफ्तगु...ये वादा रहा।
हमारे देश के किसी अन्य विश्वविद्यालय में इतने अवकाश शायद ही रहतें हो जितने मेरे विश्वविद्यालय मे रहतें है...आज यह आदेश आया कि विजयदशमी के अवकाश मे दो विशेष अवकाश और जोड दिए गये हैं मतलब कल से 19 अक्टूबर तक विश्वविद्यालय बंद रहेगा सात दिन की छुट्टी हो गई है यह खबर सुनकर एकबारगी तो सच कहूं मुझे बडी खुशी हुई लेकिन जब इस सूचना के साथ घर पहूंचा तो सारी खुशी फुर्र हो गई अब यह छूट्टी सात दिन की सज़ा बामुशक्कत लगने लगी है रोजाना एक बहाना तो मिलता है घर से जाने का...। पहले अकेले ही अपने गांव जाने का मन था क्योंकि पत्नि ने स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कतों के चलते पहले ही साफ मना कर दिया था कि वह यात्रा करने की स्थिति मे नही है लेकिन मै जिस सुनसान कालोनी मे रहता हूं वहाँ हमारे पडोस मे एक भी घर नही है एकदम शून्य और सन्नाटा रहता है अब ऐसी दुविधा बनी मन मे कि पत्नि और बालक यहाँ रात कैसे काटेंगे वैसे भी मेरा एक दिन का ही कार्यक्रम था वो भी इस वजह से कि मेरे बडे भाई-भाभी घर पर आ रहें है लगभग एक साल बाद उनसे मुलाकात हो जाती लेकिन अभी अभी मैने फैसला किया है कि मै नही जाऊंगा मन मे अजीब से उच्चाटन हो गया है अब ऐसे ही अवधूत और औघड बडा रहूंगा सात दिन तक। अब अपने परायें का भेद खत्म होता जा रहा है बेताल्लुक जीने का मन है बस एकांत मे...।
कौन अपना और कौन पराया सब मिथ्या है दूनिया के रंगमंच पर अपना अपना अभिनय करना है और फिर बस अपनी गाडी पकड कर निकलना है कोई अच्छा अभिनेता बन जाता है कोई मेरे जैसा खलनायक या कायर पलायनवादी इंसान। मेरे एक करीबी दोस्त अक्सर कहा करते थे कि पराजित की बजाए कायर का सम्बोधन अधिक उचित है क्या तो युद्द मे डर के मारे उतरो मत और अगर उतर गये हो तो फिर पराजित किसी भी कीमत पर नही होना चाहिए। बात लाख टके है अब समझ मे आ रहीं है सब धीरे-धीरे। अपने वजूद की बालकीय संज्ञा कभी मेरे लिए रंज का विषय थी अब अस्तित्व का एक हिस्सा ऐसा ही नज़र आता है दूनियादारी के लिहाज़ से भले ही मै काम का आदमी न रहा हूं लेकिन अपने संचित कर्मो को भोग कर इतना ज्ञान तो होने लगा है आचार्य शंकर से सही कहा था कि ‘जगत मिथ्या ब्रह्म सत्य’। मन अभी तक इसी अद्वैत मे फंसा पडा कि किसे अपने वजूद का एक हिस्सा मानूं किससे किनारा करुं सब दूनियादारी के ढपोरशंखी किस्म के ढकोसलें है जिनका मै भी एक हिस्सा हूं।
सब अपने अपने हिस्सें की जिन्दगी जीते-जीते हुए आगे निकल जाते है और मेरे जैसा व्यक्ति लकीर का फकीर बना वही पर अटका रहता हूं, जब मै अभी दूध लेकर बाईक से वापस घर लौट रहा था तभी मेरे मन मे ये ख्याल आया कि मै अपने गांव क्या सच मे अपने बडे भाई से मिलने जाना चाहता हूं या सिर्फ एक औपचारिकता का निर्वहन करने के लिए जा रहा हूं अंदर से आवाज़ आती है जिस बडे ने आज तक अपने बडे होने का अहसास नही कराया बल्कि उनके हिस्से का बडप्पन भी मैने ओढ लिया था जिसका मुझे यह पुरस्कार मिला है आज मै सबसे बुरा हूं अपने घर वालो की नज़र मे एक कूटनीतिज्ञ हूं तथा मेरे पिताजी ने तो मुझे कई बार सार्वजनिक तौर पर सियासती कहा है और मै आजतक नही समझ पाया कि मैने कौन सी सियासत खेलकर क्या हासिल कर लिया है।
दरअसल सच्चाई ये है कि मै अपने आपसे सियासत कर रहा हूं और मेरी जो ये खीज़ है वह उसी सियासत का एक हिस्सा है क्योंकि इस सियासत के चक्कर मे मेरी अभिनय कला प्रभावित हो रही है दूनियादारी के रंगमंच पर...।
अपने बडे भाई को बडे होने का अहसास न होने की पीडा इतनी बडी नही है जितनी खुद के बडे होने पर भी शून्य की रहने की मेरा भी एक छोटा भाई है मै कभी उसके लिए बडप्पन नही दिखा सका एक अदना सा ई-टिकिट बनवाने की क्षमता मुझमे नही रही कभी और यह मै सार्वजनिक रुप से स्वीकार कर चूका हूं कि बडे भाई होने का फर्ज तो मै क्या निभाता मैने खुद उसको भावनात्मक एसएमएस करके अपनी अव्यवस्थाओं को व्यवस्थित करने के लिए लूटा है कई बार और इस बार भी वह मेरे निशाने पर कुछ न कुछ हासिल करके ही दम लूंगा यह मेरा बडप्पन है।
अब ये हमारे कुल की परम्परा बन गई है अपने से छोटे से ढेर सारी उम्मीदों के पुल बांध लो भले ही उस बेचारे के कन्धे लचक जाए या कदम लडखडा जाएं इन उम्मीदों को पूरा करने मे कुछ साल पहले तक यह मै कर रहा था अपने बडे भाई के लिए आज मेरा छोटा भाई कर रहा है मेरे लिए...।
टेलीफोन पर औपचारिक बातें या दूनियादारी मे मशरुफ अपनो के लिए अब मेरा वक्त नही बचा है और सच कहूं तो वह इच्छा शक्ति नही बची जिसके बलबूते पर मुस्कान सध जाती है अपने आप और दूनिया जिसे कहती है शिष्टाचार...।
आज का दिन कोई खास नही रहा बस यूं ही कट गया दिन मे विश्वविद्यालय मे रहा आज बहुत दिनों बाद दोपहर समय लंच करने के लिए घर आया था वरना सुबह दस बजे जाकर तीन बजे वापसी होती है,आज भी मुझे एक आवश्यक मेल करनी थी दोपहर को घर आ गया लेपटाप विश्वविद्यालय लेकर नही जाता हूं वरना कुछ फालतू किस्म के काम करने पड जायेंगे।
अपने सहकर्मी डा.विक्रम सिंह को एक बाईक खरीदनी है लेकिन वें इस दुविधा मे हैं कि नई बाईक ले या थोडी पुरानी मिल जाए मैने उनको नई बाईक खरीदने की सलाह दी और उनको अपनी बाईक पर बैठा कर हीरो होंडा के शो रुम पर लेकर गया ढेर सारी बाईक देखने के बाद उनका मन इस बात पर सहमत हुआ कि नई बाईक लेना ज्यादा ठीक रहेगा...अब देखने वाली बात होगी कि वे कौन सा विकल्प चुनते नई या पुरानी।
घर पर लौटा तो देखा बालक टी.वी. पर पोगो देख रहा है और पत्नि विश्राम मुद्रा मे लेटी हुई है आज खाना नही खाना था सो मेरे आने पर उसकी ऊर्जा मे कोई खास अंतर नही आया वो यथावत लेटी रही।
मेरे बडे भाई जोकि एक सर्ज़न है और अजमेर रहते हैं आज दिन मे उनका फोन आया था कि वें इस बार दीपावली पर घर नही आ पाएंगे सो वे विजयदशमी पर ही गांव आ रहें है उन्होनें मुझ से मेरा कार्यक्रम पूछा मै अभी तक असमंजस मे हूं कि क्या करुं? एक मन हो रहा है कि चला जाउं और एक मन यह है कि दीपावली पर तो जाना है अभी ना जाया जाए लेकिन बडे भाई,भाभी और उनके एक साल के छोटे बालक से मिलने का लोभ भी मन मे रहा है और फिर गांव से आए हुए भी बहुत दिन हो गयें। इस बारें मे जब पत्नि की सलाह ली तो उसने साफ मना कर दिया कि वह नही जाएगी उसको आजकल यात्रा में उल्टी की शिकायत है फिर उसकी सेहत भी आजकल कुछ ठीक भी नही है शरीर से थकी-थकी सी और मन से बोझिल सी रहती है।
फिर मै थोडी देर के लिए सो गया उठने पर पत्नि ने छत पर चलने का प्रस्ताव रखा मैने कहा मैने किसी कार्य के लिए बाहर जाना है उसने तपाक से पूछा कहाँ? इस बार मुझे बहुत खीज़ हुई और सख्त लहजे मे कह दिया कि किसी से कहाँ पूछना ठीक नही है। बस इसके बाद मैने मुहँ धोया और अपनी बाईक पर सवार हो कर निकल गया उसके बाद अभी-अभी लौटा हूं जिस काम से गया था वह भी नही हुआ सो अजीब से मनस्थिति है अभी हाँ एक काम मैने जरुर किया विशाल मेगा मार्ट के पास की चाट की ठेली पर गोल-गप्पे,चाट और टिक्की जमकर खाई और फिर लौट आया इसे आप मेरा चटोरपना भी समझ सकतें है या फिर टाईम पास का एक स्वादयुक्त साधन...। आज का किस्सा बस यही खत्म...।
डा.अजीत
वैसे तो उसने वास्तुकला की कोई औपचारिक शिक्षा नही ली है और न ही वह पेशेवर है लेकिन उसके इस हुनर का मुझे तब पता चला जब मै अपने घर के भूखंड का (गांव वाले) नक्शा बनाने की निष्फल कोशिस कर रहा था तब मेरे पत्नि ने इस तकनीकि कला मे अपना निष्णात होने का परिचय दिया और उसने बेटे के ज्योमिट्री बाक्स की मदद से हमारे घर के भूखंड एक त्रुटिरहित नक्शा तैयार करके मेरे हाथ मे थमा दिया वह भी हरिद्वार मे रहते हुए मात्र अपनी स्मृति के आधार पर...। मै हैरान था उसकी इस कला यदि सही समय पर उसको इस दिशा मे प्रोहत्सहान मिल गया होता तो वो एक बेहतरीन आर्किटेक्ट बन सकती थी अब बेचारी मेरी पत्नि है जिसके होने का अपना कोई सामाजिक गौरव नही हैं।
दरअसल मुझे यह नक्शा अपने एक वास्तुविद मित्र को भेजना है हमारे पैत्रक मकान मे कुछ गंभीर किस्म का वास्तुदोष है गांव मे जब-जब जाना होता है बडी नकारात्मक ऊर्जा महसूस होती है जिसके निवारण के हेतु मुझे उनका परामर्शन चाहिए था अब नक्शा बन गया सो कल उनको इसे स्कैन करा कर मेल कर दूंगा।
आज का दिन कुछ खास नही रहा चूंकि हमारे हेड साहब आजतक की छुट्टी पर थे सो मै जल्दी ही घर भाग आया विश्वविद्यालय मे बडी मायूसी और उदासी सी पसरी हुई थी क्योंकि अधिकांश छात्र दशहरे के लिए अपने-अपने घर चल गये है सो छात्रों के टोटे मे मेरे जैसे तदर्थ प्राध्यापक को नींद ही आएगी और सच बताउं आ भी रही थी इसलिए मै जल्दी घर आ गया और आदतन भरपेट खाना खाने के बाद निन्द्रा के आगोश मे खो गया शाम को ही आंखे खुली...फिर से एक बार अपने अस्तित्व को जोडता-तोडता हुआ मै खडा हो गया और बच्चों के लिए दूध,जूस आदि लेकर लौटा।
आजकल नवरात्र चल रहे है सो इन दिनों मेरे जैसे नास्तिक चटोरेजनो को एक बढिया अवसर मिल जाता है कुछ हटकर खाने का इसी परम्परा मे मैने दुकान से आधा किलो कुट्टू का आटा ले आया यह सोच कर कि आज शाम का भोजन इस व्रत वाले खाने से होगा हालांकि पत्नि ने पहले साफ मना कर दिया था कि यह सब कल बनेगा मै भी मान सा ही गया था लेकिन जब उसमे फ्रिज़ मे मेरे द्वारा लाई अमूल की दही का बडा पैक देखा तो शायद उसको मेरे उस खाने की वास्तविक जिज्ञासा का बोध हुआ और फिर उसने अभी-अभी मैने कुट्टू के आटे के परांठे दही और आलू की बिना हल्दी वाली सब्जी के साथ खाने के लिए परोसे...। सच बडा आनन्द आ गया और यह भी पता चला कि लोग कैसे इस कुट्टू के बल पर व्रत रख लेते हैं। बिना व्रत के व्रत के भोग का आज आनंद लिया गया है।
बस आज की यें ही दो बडी घटनाएं थी जिनका मैने उपर जिक्र किया है...दोनो अपना एक महत्व भी है और अर्थ भी अगर आप तक पहूंच पाएं तो एक सन्देश भी है...।
अभी-अभी छत से टहल कर लौटा हूं शाम की जागिंग तो छूट ही गई अभी थोडी देर बाद थोडे से राज़मा चावल खाने के बाद उसके आग्रह पर छट टहलने चला गया था। वो घर के सामने खाली पडे प्लाट से थोडी सी मिट्टी लाने के लिए मुझ पर कल से दवाब बना रही है कह रही कि एक तसले मे धनिया बोना है जिससे वो ताजे हरे धनिए का प्रयोग रोज़ाना दाल-सब्जी मे कर सकें और मै उसको नैतिकता का पाठ पढा कर अपना पिंड छूटाना चाह रहा था हालांकि वह समझ गई कि यह मेरे मिट्टी न लाने का बहाना है कि पिछले जन्म के संचित कर्मो का फल इस जन्म मे भोग रहा हूं और अगर इस जन्म मे मैने मिट्टी की चोरी की तो फिर अगले जन्म मे क्या भोगना पडे? और भी बहुत सी बातें की हमने जैसाकि मैने भविष्य मे पक्षाघात या नर्वस ब्रेक डाउन की भविष्यवाणी की जिस पर मेरी पत्नि मेरे ज्योतिष ज्ञान पर बिफर पडी और अपनी नाराज़गी जाहिर की मैने उसको मात्र अपने भविष्य का ज्योतिषीय दृष्टिकोण से एक फलादेश सुना दिया जो उसको बिल्कुल अच्छा नही लगा बस फिर एक छोटी से बहस के बाद यह विषय समाप्त हो गया,पत्नि का मानना है कि मै अपने स्वास्थ्य को लेकर सजग नही हूं बल्कि अपने चटोरेपन के कारण अगडम-बगडम चीजे खाता रहता हूं...मैने जैसे ही अपने पक्षाघात के स्वरुप की बात करतें हुए उसका अभिनय किया तो पत्नि को बहुत बुरा लगा यह उसकी मेरी स्वास्थ्य को हितचिंता है और अपने भविष्य की सुरक्षा तलाशनें की एक वजह भी है।
ये तो अक्सर होता ही रहता है हमारे बीच मे लेकिन जो मैने भविष्यवाणी वह दरअसल एक दस्तावेज़ है आने वाले कल एक संभावना का जिसका साक्षी मैने आज अपनी पत्नि और आपको इस ब्लाग के माध्यम से बनाया है। कल को देखना मुझे नही आता लेकिन एक ऐसा पूर्वाभास जरुर हो जाता है जब अपने साथ कुछ गलत होने का अंदेशा हो...हो सकता कि मै पूर्णत: गलत हूं।
आज बच्चे के लिए एक अंग्रेजो के जमाने का सिक्का लाया हूं एक ज्योतिषी की सलाह को उसको रविवार मे पहनाना है ताकि सूर्यदेव उस पर कृपा बनाएं रखें यह सिक्का मुझे तीस रुपये मे मिला है सिक्के बेचने वाले नी पचास रुपये मांगे मैने कहा भईया पहली बात तो यह है कि मै हरिद्वार का ही रहने वाला हूं कोई यात्री नही हूं सो सही पैसे बता और दूसरी बात यह कि आज के दिन तो पचास रुपये से भी कम मे एक डालर मिल जाएगा ये तो आउटडेटड सिक्का है वो बोला मुझे नही पता डालर क्या होता है...खैर वो मेरी आवाज़ की टोन से समझ गया था कि मै यहीं का बन्दा हूं फिर सौदा तीस रुपये मे पट गया हालांकि बाजार के जानकारों ने मुझे बताया कि उसकी वास्तविक कीमत साढे सात रुपये है जो मौल-भाव के बाद पन्द्रह रुपये तक मे मिल जाता है, मतलब यहाँ भी मै ठगा ही गया है दूनियादारी की तरह फिर ज्यादा मौल-भाव करने का कौशल मुझ मे है भी नही। अपने लिए एक पन्ने की अंगुठी लाया हूं जो पहले से ही आर्डर दिया हुआ था वो आज मिल गई आने वाले बुधवार मे धारण करुंगा। अब तो नवग्रह आदि से जिसमे शनिदेव,शुक्र और मेरे लग्न के स्वामी बुध ग्रह से यहाँ करबद्द हो कर प्रार्थना है कि मुझ पर अपनी कृपा बनाएं रखें...वैसे ही आजकल वक्त बुरा चल रहा है।
बस भईया अब थक गया हूं कल की बातें कल देखी जाएंगी....।
आज मै बेहद थका हुआ और निढाल महसूस कर रहा हूं अभी-अभी पहले पत्नि से मसाज़र से मसाज़ करवाया और फिर खुद वाईब्रेशन मोड का मीठा-मीठा दर्द मिटने का मज़ा लिया। अभी अचानक लगा कि लेपटाप खोल ही लूं अन्यथा आज का आम दिन खास न होने की सज़ा पाएगा और मै अपने इस अहसास को आपके साथ नही बांट पाउंगा।
दिन की शुरुवात पहले की तरह से हुई है रोज़ाना रात को यह सोच कर और पक्का इरादा करके सोता हूं कि सुबह बिना नाश्ता किए बिना एक बार अपने कोलेस्ट्राल लेवल को चैक कराने के लिए ब्लड का लिपिड प्रोफाईल टेस्ट करवाना है लेकिन पता नही क्यों रोजाना भरपेट नाश्ता करने के बाद ही यह याद आता है कि आज ये टेस्ट करवाना था अर्द्दचेतन में इसकी एक वजह टेस्ट की फीस 300 रुपये होना भी है क्योंकि आजकल अपना हाथ थोडा टाईट चल रहा है जैसाकि मैने पहले भी लिखा है कि मैने इस सत्र मे पूरी बेशर्मी की हद तक अपने घरवालों (पिताजी) से आर्थिक मदद ले चूका हूँ सो अब मै थोडा सा मितव्ययी होना चाहता हूं ताकि महीने के अंत मे मै अपने आपको लाचार और बेबस न महसूस कर सकूं।
आज ही मैने नीलम रत्न भी धारण किया है मेरे हाथ टाईट होने मे इस रत्न की भी एक छोटी सी भूमिका है लगभग 16500 के करीब पडा यह मुझे वो अपने मित्र डा.अनिल सैनी के माध्यम से ईएमआई की सुविधा मिल गई वो भी बिना ब्याज के सो मै यह दुस्साहसिक कदम उठा सका। आपको यहाँ मै बताता चलूं कि लगभग मैने दो साल भी नीलम रत्न धारण किया था बहुत दिनों तक धारण किए रहा फिर पता नही क्या सूझा मैने अपने सारे रत्न(पन्ना,गोमेद और जरकन आदि) त्याग दिए और लगा कि इनसे जीवन मे न कोई सकारात्मक बदलाव आ रहा था और न कुछ नकारात्मक ही हुआ सब कुछ यथास्थिति मे चला सो इनके धारण करने का क्या लाभ अपनी दोनों अंगुठीयां छोटे भाई को दे दी...उसके जीवन मे जरुर सकारात्मक बदलाव आया हैं।
थोडा बहुत ज्योतिष मे छात्र स्तर का जो ज्ञान है उसी से प्रेरणा पा कर मैने फिर से कुछ रत्न धारण करने का मन बनाया और मन क्या बनाया एक आंतरिक आवाज़ आ रही थी बार –बार सो मैने सोचा अपने दिमाग की नही दिल की बात मानूं अब देखते है कि क्या होता नवरात्र मे फिर से मै अपने रत्नादि के हथियारों से लैस होकर जीवन युद्द में उतर रहा हूं जिसमे मेरे द्वारा संकलित एक उपरत्नों का लाकिट भी है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि आने वाला कल कैसा रहेगा? आप भी सोच रहें कि मै एक मनोविज्ञान का आदमी होता हुआ भी कहाँ से रत्नों के चक्कर मे पड गया इसके जवाब मे मै बस यही कहूंगा कि यह व्यक्तिगत जिज्ञासा और आस्था का प्रश्न है और विज्ञान की भाषा मे कहूं तो कास्मोलाजी है बस अपनी ऊर्जा को अपने सकारात्मक उर्जा से जोडने का एक प्रयास है। मैने अपने ज्योतिष ज्ञान और जिज्ञासा का आधार विज्ञान सम्मत ही चुना है और अभी तक सारे प्रयोग भी खुद पर ही किए हैं ताकि नफा-नुकसान अपना ही हो अपनी प्रयोगधर्मिता के चक्कर के किसी और का बुरा नही होना चाहिए।
आज के दिन का दूसरा नग्न पहलू यह रहा कि मैने अपने बजट को संतुलित रखने के लिए सबसे पहले अपने अविवाहित छोटे भाई के पास 2500 की आर्थिक मदद का एसएमएस दागा(जबसे वह नौकरी कर रहा है तब से लेकर आजतक मै उससे लगभग 10,000 रुपयों की मदद ले चूका हूं)मेरी इतनी बेशर्मी पर पत्नि अक्सर खफा रहती है उसका मानना है कि मै अपने छोटे भाई से पहले से पैसा कमा रहा हूं और उसकी मदद के बदले कभी भी एक फूटीं कौडी उसको नही दे सका बल्कि जब कभी वह आनलाईन रेलवे का टिकिट मेरे माध्यम से बनवाता है तब उसको टिकिट मेल करने के बाद उसकी राशि भी बडी बेशर्मी से उसको बता देता हूं एसएमएस से और वो बेचारा तुरंत ही मेरे बैंक खाते मे फंड ट्रांसफर्र कर भी देता है।
मेरी तरह से आजकल उसका भी हाथ तंग चल रहा है लेकिन फिर उसने मुझे आश्वस्त किया कि उसके वेतन के आते ही वह मुझे पैसे दे देगा। इसके अलावा मैने अपने दो बौद्दिक मित्रों के पास भी वही एसएमएस फारवर्ड किया लेकिन दोनो ने ही हर बार की तरह से मुझे निराश ही किया निराश इस बात से नही कि वें मेरी मदद नही कर सकते बस मुझे निराशा इस बात से हुई कि उन्होनें मेरे एसएमएस का कोई जवाब ही नही दिया न सकारात्मक और न ही नकारात्मक।मुझे जहाँ से यह मदद मिली वहाँ से मै कभी उम्मीद नही कर सकता था बस यही ज़िन्दगी की रहस्यात्मकता है और मेरे एक अजिज़ दोस्त के मुताबिक कि आजकल चौकनें का दौर हैं...।
यहाँ मैने अपने दिल को यह शे’र सुना करा कर तसल्ली दी....
फिलहाल ये लम्हा जी लेने दें...मेघना गुलज़ार की फिल्म का यह गीत बज रहा है शाम से मेरे लेपटाप पर दो दिन से मै ऐसी फुर्सत के लम्हों मे जी रहा था मतलब अतीत का व्यसन तो मुझे है ही तभी भावनात्मक रुप से परेशान भी रहता हूं अक्सर...कल का लेखा-जोखा आपके सामने इसलिए नही आ पाया क्योंकि कल मै एक महफिल मे मशरुफ था..देर रात से घर लौटा और उस वक्त कुछ लिखने का मन भी नही हुआ मै सीधा सो गया।कल विश्वविद्यालय से आकर खाना खा कर अपने मोबाईल का स्वीच आफ करके सो गया उठने पर जैसे ही फोन आन किया अचानक एक एसएमएस टपका कि आज शाम क्या कर रहें हो? एसएमएस अपने मित्र योगी जी का था मै तभी समझ गया कि आज की शाम अपने पुराने यार के साथ बीतेगी मैने तुरंत जवाब दिया कि मै खाली हूं और शाम को मिलते है,जैसे ही मै योगी जी के यहाँ पहूंचा योगी घर के बाहर ही मिल गया और फिर हम दोनो मेरी बाईक से सवार हो लिए एक शाम को रंगीन और हसीन बनाने जुगत में योगी पर एक ट्रीट भी बाकि थी बेटी के जन्म होने के उपलक्ष्य मे, सो हमने सोचा शहर के कोलाहल से बाहर एकांत के यह शाम बिताई जाए फिर हमने अपने खाने-पीने का सामान लिया और गंगा के एक सुनसान घाट पर बैठ गये लगभग दो घन्टे वही बैठे रहे यह घाट हमारे विश्वविद्यालय के सामने ही है लेकिन शाम को अक्सर सुनसान पडा रहता है यहाँ बैठने के लिए थोडा नीचे उतरना पडता है लेकिन ऐसे एकांत का भी एक अलग ही मज़ा है सामने गंगा की विशालता और नजदीक मन की लघुता क्या बेहतरीन जुगलबन्दी होती है मै ब्याँ नही कर सकता हूं जब कभी पढते थे तब अक्सर मेरी शाम यहाँ गुजरती थी वें भी सारी यादें ताज़ा हो गई कल...।
जैसे ही हम दो पुराने यारो की यह महफिल जमी पहले तो औपचारिक ही बातें होती रही थोडी देर मे दोनो के मन मे जो ढेरों पारस्परिक शिकवे-शिकायतों के जो पुलिन्दें जमा हो रखे थे वे सारे खुल कर सामने आने शुरु हो गये भावनाओं का ऐसा अनोखा विरेचन हुआ कि मन बहुत हल्का हो गया हम दोनो का ही...कुछ मेरी बदतमीजियां थी जिस पर योगी को मलाल और रंज था कुछ और मेरी अपेक्षा टूटने की पीडा थी हमने सब कुछ शेयर किया खुलकर और मानो फिर ऐसा लगा कि वक्त थम सा गया हो हम दोनो ही फ्लेशबैक मे चले गये अपने कालिज़ के दिनों सारी शरारतें और बेहूदगियों पर हमने इस महफिल मे तब्सरा(चर्चा) किया। कुल मिलाकर हम दोनो इस बात पर सहमत हुए कि यह एक बुरा वक्त था जिसकी परिभाषा हमने अपनी-अपनी मनस्थिति के हिसाब गढी...एक दूसरे से असहमत होते हुए हम अपने आत्मीयता के मसले पर सहमत थें।
गंगा का साक्षी मान कर हमने अपने अतीत और आज को जीने के एक कोशिस की इस दौरान मैने कोई फोन भी रिसीव नही किया योगी जी ने अपने मोबाईल के वालपेपर की जगह अपनी नन्ही सी बिटिया की तस्वीर लगा ली है जहाँ पर इससे पहले भाभी जी का कब्ज़ा था...संतान ऐसे ही अपनी जिन्दगी दखल बना लेती है अच्छा लगा यह सब देखकर।
मै पहले ही घर यह बोल कर निकला था आज मुझे आने मे आने मे वक्त लग जायेगा सो पत्नि देर रात से घर लौटने पर उतनी नाराज़ नही थी जितनी अक्सर रहती है।
घाट पर बतकही और गालबजाई करने के बाद हम योगी जी के घर पहूंचे मैने रात का खाना वही पर खाया हालांकि मैने आजकल शाम का खाना खाना छोड रखा है लेकिन आंटी जी के ममत्व के आग्रह के सामने मैने अपने डायटिंग के फंडे को एक तरफ रख कर खाना वंही पर खाया एक खास बात यह भी रही मैने और योगी ने एक ही थाली में साथ-साथ खाना खाया पुराने हास्टल के दिन याद आ गयें जब मै अक्सर अपने मित्रो के साथ अपना खाना शेयर करके खाया करता था..झूठन आदि की शुचिता मुझमें कभी से नही है सो एक थाली मे छोले और जीरे के छोंक वाल रायता खाने-पीने के बाद मै घर लौट आया...।
आज का दिन सामान्य ही बीता विभाग मे वर्तमान हेड की छूट्टी की सूचना से थोडी सी बेफिक्री बनी रही आज कोई लेक्चर भी नही हुआ बालक लगता है त्योहारों के बाद ही आएंगे। अपने गुरुदेव के कुछ अकादमिक काम निबटाए मसलन रिसर्च पेपर ई-मेल आदि की...।
रोजाना ज़िन्दगी में कुछ ऐसा घट-बढ जाता है कि अब मुझे लगने लगा कि इस ब्लाग के लिए लिखने की सामग्री की कमी नही होने वाली है। पिछली 21 तारीख को मै पंतजलि विश्वविद्यालय(बाबा रामदेव जी वाला) मे असि.प्रोफेसर पद के लिए साक्षात्कार देने गया था कम वेतन और आवास व्यवस्था न मिलने के कारण मैने वहाँ ज्वाईन करने से मना कर दिया पहले मै बहुत उत्साहित था इसमे नियुक्ति को लेकर और अपने दो मित्रों जिनमे से एक ऐसे भी शामिल है जो कभी किसी की सिफारिश नही करते,उनसे मैने मंत्री से लेकर रसूखदार लोगो की सिफारिश का भी इंतजाम भी किया हुआ था लेकिन बाद मे जब वहाँ के पैकेज़ के बारे मे पता चला तो मेरा मन वही अनुलोम-विलोम करने लगा था और कपालभाति भी...खैर ! एक अच्छी बात यह रही जिसकी मै खुले दिल से तारीफ कर रहा हूं और ऐसा कोई साक्षात्कार आयोजित करने वाला संस्थान करता भी नही है कि साक्षात्कार के बाद पंतजलि योगपीठ के सौजन्य से हमे एक गिफ्ट हैम्पर किस्म का एक बैग दिया गया जिसमे स्वामी रामदेव जी एवं आचार्य बालकृष्ण जी का साहित्य और साथ मे एक 500 ग्राम का चटपटा आंवला कैंडी,दंत मजंन,साबुन और शैम्पू भी था। बाकि सबको पत्नि के हवाले करने के बाद मैने चटपटा आंवला कैंडी का स्वाद चखा...और चखा क्या अपने चटोरपने मे मै इसे दो दिन साफ कर गया मतलब मुझे इसका स्वाद मुझे इतना भाया कि मैने दो दिन आधी किलो चटपटा आंवला कैंडी चट कर साफ कर दी...मेरी पत्नि मेरे इस रुप को देखकर हैरान थी। चटपटा आंवला कैंडी का स्वाद इतना मुझे भाया कि एक बार खुद खरीद कर ले आया और फिर से दो-तीन दिन में ही डिब्बा खाली...। मेरी जीभ को इसका इतना चस्का लग चूका था कि आज फिर मन कर रहा था कि एक डिब्बा और खरीद लाऊं लेकिन पहली बार मेरे पास पत्नि को इसकी वजह बताने का कोई बहाना नही मिल रहा था,लेकिन चटोरामन सब रास्ते निकाल ही लेता है मैने पत्नि से कहा कि मै तुम्हारें लिए दिव्य योग पीठ से सेब का मुरब्बा लाने जा रहा हूं और सच मे लाना भी चाह रहा था लेकिन वहा जब मैने एक दो और आईटम जिसमे चटपटा आंवला कैंडी भी शामिल थी का पर्चा थमाया तो काउंटर पर बैठे आदमी ने कहा इनमे से केवल चटपटा आंवला कैंडी ही मिल पायेगी। मै पहले तो सकपका गया लेकिन फिर साहस कर ले ही आया एक और डिब्बा चटपटा आंवला कैंडी का और शाम से उसको खाने मे लगा हुआ हूं अभी यह वृतांत लिखते हुए मेरे मुहँ मे चटपटा आंवला कैंडी ही है और मै मजे लेकर खा रहा हूं उम्मीद करता हू क्या तो कल वरना परसों यह डिब्बा भी मै चट कर जाने वाला हूं। मेरी पत्नि अब मुझ से हैरान भी है और परेशान भी मैने अपने बचाव मे यह तर्क गढ लिया है कि कोई बुरी चीज़ थोडी ही खा रहा हूं आयुर्वेद मे तो आवंले को अमृत कहा गया है सो मै तो अमृतपान कर रहा हूं वो बेचारी मेरे इस नये चटोरपने पर एक दार्शनिक चुप्पी बना लेती है और चटपटा आंवला कैंडी खाए जा रहा हूं...। ...लेकिन आज मैने शाम को पत्नि और बच्चे को शहर की सैर भी करवायी उनको मै अपने मित्र योगी जी के यहाँ लेकर गया था जैसाकि मै पहले लिख चूका हूं कि उनके यहाँ बेटी हुई वो अब घर आ गयें है अस्पताल सो सोचा पत्नि को मिलवा लाऊं उनको योगी जी के घर छोड कर मै अपने गुरुभाई और मित्र डा.ब्रिजेश उपाध्याय जी के आफिस चला गया और उनके हाई स्पीड ब्राडबैंड से अपना एंटी वायरस अपडेट किया कुछ आपबीती सुनी उनकी सुनी उनका भी आजकल मेरी तरह राहूकाल चल रहा सो दोनो ने अपने अपने दुखडे रो कर मन हल्का किया वक्त को गरिया कर...। वापस लौटते हुए मैने पत्नि और बालक को गोल गप्पे,चाट और जूस आदि का सेवन करवाया ताकि एक हसीन शाम बन सके वैसे ही मेरी पत्नि बाहर के खाने से परहेज़ करती है लेकिन मेरे और बच्चे के आग्रह और उत्साह के आगे उसने अपने हथियार डाल ही दिए और जो मैने खिलाया वही खाया प्रेम से...। दो दिन से मैने जागिंग करना छोड दिया है मन बहाना तलाश लेता है जोकि मेरी एक बुरी आदत है अपने आपको जस्टीफाई करने की...। अब जो है सो है कुछ बदला तो नही जा सकता है कल कोशिस करुंगा फिर से जाने की लेकिन अब लग रहा है कि काहे को फिटनेस के चक्कर मे शाम को बुजुर्गो की सोहबत मे हाँफना...? शरीर तो नश्वर है। अब कल की बात कल देखी जाएगी आज काफी विस्तार हो गया है क्या करुं गागर मे सागर भरने की कलाकारी मुझमें है ही नही....। डा.अजीत