24 दिसम्बर को घर से झोला उठा कर निकला था
सबसे पहला पडाव राजधानी दिल्ली में था एक निजि मित्र और कई फेसबुक के माध्यम से
बने मित्रों से मेल मिलाप का मन था सो सबसे पहले अपने पीजी के दिनों के दोस्त पवन
लालचंद (सीनियर रिपोर्टर ईटीवी न्यूज़) के घर पर डेरा डाला गया गौरतलब हो कि हम
लगभग दो साल बाद साक्षात मिले थे 6 महीने
से फोन पर पुनर्सवांद हो रहा था एक दौर
ऐसा भी आया था कि लगभग डेढ साल तक हमारे मध्य संवादशून्यता की स्थिति रही है वजह
कुछ अलग किस्म की थी उनकी चर्चा यहाँ करना न प्रासंगिक है और न ही अर्थपूर्ण...
खैर ! पवन जी उसी दोस्त के रुप मे मिलें जैसे हम कभी हुआ करते थे हालांकि मेरे दिल
में उनके घर जाने से पहले के कुछ संकोच अवश्य थे लेकिन बाद मे जी को कडा किया और
पवन जी को साधिकार कह दिया कि मै फलां तारीख को आपके घर रात्रि विश्राम करुंगा और
उन्होनें भी उसी सहज़ता से मुझे आश्रय दिया।
अगले दिन सुबह ब्रंच करने के बाद मुझे अपने एक दूसरे सजातीय
मित्र एडवोकेट सुनील बैंसला साहब से मिलना था सो फिर वहाँ से रवानगी ली और सुनील
भाईसाहब के घर पहूंचा उनसे मेरी यह पहली मुलाकात थी इससे पहले हम फोन/फेसबुक के
माध्यम से एक दूसरे से बतियाते रहे है। सुनील भाईसाहब का अपनापन और स्नेहिल
व्यवहार मेरे लिए अभूतपूर्व किस्म का था उन्होने साधिकार अपने साथ नाश्ता करवाया
हालांकि मै ब्रंच कर चुका था लेकिन फिर भी उनके घर पर नाश्ता करके मुझे ऐसा लगा
जैसे कि अपने गांव मे घर पर नाश्ता कर रहा हूँ क्योंकि भले ही वह आधुनिक और
प्रगतिशील लोगों मे शुमार है लेकिन भी फिर भी खान पान के मामलें में उनका देहाती
टेस्ट मुझे प्रभावित कर रहा था। सुनील भाई साहब से कई समसामयिक विषयों पर चर्चा
हुई मुझे किसी मसले पर उनकी मदद की जरुरत थी सो वो भी मांगी गई कुल मिलाकर सुनील
भाईसाहब एक सह्र्दय और बुद्धिजीवी साथी लगे मुझे उनकी तत्परता का मै कायल हो गया
हूँ।
चाय,घर का मक्खन और आलू के परांठे का भोग लगाने के बाद मै वहाँ
से मेटरो पकड कर सीधा शाहदरा पहूंच गया वहाँ पर राजेश भाई मेरा इंतजार कर रहे थे
उनकी बाईक पर सवार हो सीधे उनके फ्लैट पहूंच गये... चाय-पानी के बाद गप्पबाजी का
सिलसिला शुरु हुआ वो देर रात तक चलता ही रहा 3 बार चाय 1 बार सूजी का हलवा का भोग
लगाया गया...राजेश भाई पाक कला में निष्णात हैं इसलिए कोई दिक्कत नही हुई उस दिन
उनका मंगलवार का व्रत था फिर भी उन्होनें मेरे आतिथ्य मे कोई कसर नही छोडी हालांकि
मुझे थोडा बहुत अपराधबोध भी हुआ उनसे खादय सामग्री बनवानें में लेकिन उनकी सदाशयता
के समक्ष सब कुछ छोटा पड गया।
राजेश भाई के मकान पर ही बिट्टु कसाना जावली (बीकेजे साहब) से
मुलाकात हुई उनसे मिलने का कार्यक्रम भी पिछले एक साल से बन बिगड रहा था लेकिन
अंत: वह घडी आ ही गई जिसका इंतजार था फेसबुक के माध्यम से मिले पूर्व के लोगो के
साथ मेरे अनुभव कुछ कडवे किस्म के रहे है इसलिए मन मे एक भय भी था कि कही फिर से
वैसी ही पुनरावृत्ति हो अक्सर लोग दिल मे जगह बना लेते है लेकिन बाद मे दिल तोड कर
जाते है....खैर! बिट्टु भाई से मिलकर ऐसा कुछ नही लगा कि फिर से वही सब होने जा
रहा है जो पहले मेरे साथ हो चुका है वो एक बेहद सरल,निष्पाप किस्म के सच्चे इंसान
लगे उन्होने कम से कम से मुझे उतना स्पेस प्रदान किया जितना मुझे जरुरी था अन्यथा
अपने अधिकारबोध के चलते वो कई बार अतिवादी भी हो जाते है लेकिन मेरी सुविधा से
उन्होनें अपना मिलने का समय तय किया यह मेरे लिए एक बडी बात थी...मै राजेश भाई और
बिट्टु भाई की गप्पबाजी का सिलसिला जब एक बार चल निकला तो फिर रुका का नाम ही नही
लिया बीच-बीच मे चाय की चुस्कियाँ चल रही थी। बिट्टु भाई मुझे आग्रह कर रहे थे कि
मै आज रात उनके साथ जावली ही चलूँ और वही रात्रि विश्राम करुँ लेकिन मैने मना कर
दिया थोडी तर्क वितर्क के बाद मान गये...। उस रात हम तीनो दोनो ने साथ ही भोजन किया
और इसके बाद बिट्टु भाई ने विदा ली।
रात मे थोडी देर तत्व.दर्शन की की चर्चा के बाद सोने चले गये
राजेश भाई मेरे फोल्डिंग के नजदीक ही सोफे पर ही पसर कर सो गये...कुल मिलाकर एक
यादगार मुलाकत रही।
अगले दिन बिट्टु भाई का आग्रह था कि उनके गांव पधारा जाए और नाश्ता
साथ ही किया जाए...इस आग्रह को मै चाहकर भी मना न कर सका सो सुबह जल्दी ही नहाकर
मै और राजेश भाई जावली पहूंच गये...वहाँ बिट्टु भाई के परिवार से मिलना हुआ और साथ
ही पनीर,आलू के परांठो का पेट भरवा नाश्ता किया गया एक आत्मीय जन से मिलकर जैसा
रिश्ता महसूस हो जाता है वैसा ही मुझे उनके यहाँ लगा...वहाँ एक फोटो सेशन के बाद
मै और राजेश जी वापिस शाहदरा आ गये।
मुझे दिन मे एक मित्र रविकांत शर्मा से मिलना था उसके लिए पहले
दिल्ली विश्वविद्यालय जाने का कार्यक्रम था लेकिन बाद मे यह तय किया गया कि रवि को
यही बुला लेते है रविकांत को फोन पर पता बता दिया गया और जब तक रवि आया मै और
राजेश जी धूप में बैठे गपियाते रहें इस
दौरान राजेश जी ने नींद की एक झपकी भी ले ली क्योंकि जावली मे खाये गए आलू के
परांठो के असरात हो रहे थे...।
रविकांत 2 बजे के आसपास पहूंचा... और लगभग हम 2 घंटे बतियाते
रहे...बातचीत का मुख्य मसला रहा फैमिनिज़्म रविकांत एक समानतावादी समाज़ की वकालत
करता रहा और मै उस समाज़ की कल्पना...इस सिलसिले मे सारा वक्त गुजर गया..।
शाम होने को थी तो शाम की महफिल की तैयारी की गई...इस रात के
मुख्य आकर्षण थे मित्र राहुल खारी और राहुल चौधरी दोनो ही विदेशी भाषा क्रमश:
(पुर्तगाली,इटैलियन) के प्राध्यापक है दिल्ली विश्वविद्यालय में... राजेश जी फ्लैट
बैचलर होस्टल बन चुका था और इस बार हमने डेरा जमाया था उनके बैडरुम में क्योंकि उस
दिन उनकी पत्नि घर पर नही थी...।
राहुल खारी और राहुल चौधरी दोनो लगभग साथ ही पहूंचे और इन
दोनों से मेरी मुलाकत पहली बार ही हो रही थी इससे पहले हम फेसबुक के माध्यम से
सम्पर्क मे थे।
दोनो ही जिंदादिल और आत्मीय लगें मुझे राहुल खारी से पहले
ज्यादा सम्पर्क था राहुल चौधरी से थोडा कम लेकिन दोनो से मिलकर ऐसा नही लगा कि हम
पहली बार मिल रहे थे...राहुल चौधरी काफी समय यूरोप मे रहा है पढाई के सिलसिले में
और राहुल खारी भी पुर्तगाल मे रहकर आ चुका है ऐसे में दोनो का बहु सांस्कृतिक
ज्ञान बेहद सम्पन्न है अपनी किस्सागोई ऐसे ही चल निकली और जैसे ही महफिल जँवा होती
गई सब अपने अपने तेवर और कलेवर मे आते गये...जब मुझे लगा कि इतिहास,परम्परा और
सांस्कृतिक मसलों पर खुब चर्चा हो गई है इसके बाद मै महफिल के उवान को गज़ल और
कविता के तरफ ले गया और मै चंद शेर और दो गज़ले तरन्नुम मे गाकर सुनाई... जिसे
शामीन ने खुब पसंद किया...।
हम चारों ने साथ ही डीनर किया मेरी इस यात्रा में दो दिन से
भोजन का भार राजेश के उपर था वो बाहर से ही खाने आर्डर कर रहे थे....मुझे थोडा
अजीब भी लग रहा था क्योंकि ये मज़मा मैने जमाया था और सारा भार राजेश भाई वहन कर
रहे थे...खैर ! धीरे-धीरे मै अपनी बेशर्मी के साथ मज़ा ले रहा था..। खुब गप्पबाजी,कविताई,आदि
के बाद फोटोशेसन हुआ और फिर राहुल स्कैवयर (राहुल खारी,राहुल चौधरी) ने विदा ली और
मैने और राजेश जी ने अपने अपने खंरार्टो से आलाप छेड दिए...बेहद गहरी और धुत्त
किस्म की नींद के बाद सुबह आंख खुली...आज मुझे जयपुर के लिए निकलना था सो जल्दी
नहा धो कर तैयार हो गया सुबह बिट्टु भाई भी राजेश जी के मकान पर ही आ गये पूडी,दही
और सब्जी का भरपेट नाश्ता करने के बाद बिट्टु भाई ने अपनी कार से मुझे जयपुर की बस
पकडने के लिए बीकानेर हाउस छोडा...रास्ते में भी बातचीत का सिलसिला चलता ही
रहा...विदाई का समय मेरे लिए भावुक क्षण था क्योंकि राजेश भाई के अपनेपन और
अनौपचारिक व्यवहार ने दिल मे एक खास जगह बना ली थी साथ ही बिट्टु भाई की सदाशयता
का भी मै आभारी हो गया था...खैर ! कार से उतरते ही बस मिल गई और मैने दोनों बंधुओं
से विदा ली...बस मे बैठकर दोनों को एक एक कृतज्ञता ज्ञापित करता हुआ एसएमएस भेजा।
यह एक वोल्वो बस थी बस मे ज्यादा यात्री नही थें सो मुझे ठीक
सीट मिल गई थी।
मैने कंडक्टर से टिकिट के कहा तो सुना टिकिट मुझे थमाते हुए
कहा 685/- रुपये....मुझे एक बार झटका सा लगा लेकिन जल्दी ही संभल गया सोचा भईया !
अभिजात्य श्रेणी मे सफर करने के अपने आर्थिक जोखिम तो होते ही है...इस टिकिट के
साथ मुझे मात्र एक पानी की बोतल मिली थी जिसकी सर्दी मे कोई जरुरत भी नही पडी..।
रास्ते मे एक थ्री स्टार टाईप के रिसार्ट पर बस रुकी जहाँ मैने
लंच किया एक सौ बीस रुपये मे दो नान और एक थर्माकोल की बनी दाल मखनी की कटोरी भूख
लगी हुई थी इसलिए अच्छी ही लगी....रास्ते में मोबाईल पर गाने सुनता रहा और बस बाहर
झांकता रहा...।
जयपुर में फेसबुक के माध्यम से मिलें एक और मित्र रत्नजीत सिंह
से मिलने का कार्यक्रम था वैसे भी यह यात्रा फेसबुकिया सम्बंधो के ही नाम थी रत्नजीत
भी आज ही अपने गांव से लौटा था मुझसे मिलने के चक्कर मे वह भी अपने गांव से जल्दी
आ गया था..बस स्टैंड पर उतरते ही मुझे अंजान यात्री समझकर आटो वालो ने घेर लिया
लेकिन अपनी पूर्व की यात्राओं के अनुभव के चलते मै चालाकी से जयपुर को जानने
पहचानने वाले का अभिनय करने मे लगभग कामयाब रहा है मंदिर मे पडें-पुजारी और बस
स्टैंड पर ऑटो चालको का आतंक मुझे सबसे ज्यादा परेशान करता है।
रत्नजीत से जयपुर पहूंचने से पहले से ही फोन पर सम्पर्क पर
था...सो तय हुआ कि मुझे टोंक फाटक पहूंचना है जहाँ मेरे रुकने की भी व्यवस्था
रत्नजीत ने की हुई थी। होटल के बाहर पहूंचकर रत्नजीत को फोन मिलाया और रत्नजीत
बमुश्किल दो मिनट मे वही पर हाजिर हो गया।
पहली बार में रत्नजीत को देखकर मुझे ऐसा नही लगा कि हम पहली
बार मिल रहे है जल्दी ही हम दोनो होटल पहूंच गए वहाँ की आरम्भिक औपचारिकताओं के
बाद हम रुबरु थे...शुरुवात मे रत्नजीत थोडा संकोच कर रहा था और शायद होटल की
व्यवस्थाओं से असहज़ भी थी लेकिन फिर एक बार जब मै अपनी रौ और औकात मे आ गया तो
सारा बेगानापन दूर हो गया मुझे रत्नजीत अपने गांव के दोस्त जैसा लगा जिसका मै
यदा-कदा जिक्र भी करता हूँ हालांकि रत्नजीत आर ए एस का प्री एग्ज़ाम पास कर चुका है
तथा अपने करियर को लेकर बेहद सचेत और जागरुक किस्म का है लेकिन मुझे उसके ज्ञान की
बजाए उसके अपनेपन और जिज्ञासु प्रवृत्ति ने प्रभावित किया।
रत्नजीत से खुब बातें हुई साथ खाया-पीया गया रात में वो मेरे
साथ होटल मे ही रुक गया जहाँ मैने उसको चंद शेर और दो गज़ल सस्वर सुनाई...कुल
मिलाकर खुब शमाँ बंधा..सुबह मै जल्दी जाग गया फिर एक वार्तालाप का सत्र शुरु हुआ
जो 2 घंटे के तकरीबन चला मुझे बेहद अपनापन,सम्मान मिला रत्नजीत से और उसे मुझ जैसे
करमठोक इंसान से क्या मिला यह तो वह ही बता सकता है।
सुबह होटल मे नान हाईजिनक बाथरुम होने के कारण नहाने की हिम्मत
ही नही सो हमने निवृत्ति के बाद होटल छोड दिया पढाई के लिहाज़ से रत्नजीत का यह समय
काफी महत्वपूर्ण था इसलिए मै अपनी आवारागर्दी के चक्कर में उसका ज्यादा वक्त
बर्बाद नही करना चाहता था सो बस वही टोंक फाटक पर हमने छाछ पी एक दूसरे से मुलाकात
ली...मुझे उस वक्त एक शेर याद आ रहा था...
ऐसे ही लोगो के सहारे जिन्दगी कटती है
बैगाने होकर भी जो अपने से लगते है
वहाँ से मै पैदल-पैदल लक्ष्मीमन्दिर टॉकीज़ तक पहूंचा अब मुझे
एक और मित्र यावर अली से मिलना था लेकिन तकनीकि वजह से पता चला कि उनसे आज मुलाकात
नही हो पायेगी ऐसे मेरे पास 2-3 घंटे थे उसके बाद मुझे अजमेर के लिए निकलना था सो
मैने नेहरु गार्डन में वह वक्त बिताना का निर्णय लिया..।
नहाया नही था इसलिए अजीब सा लग रहा था सो सोचा किसी सैलून पर
सेविंग करवायी जाए उसके बाद एक थोडे हाई-फाई किस्म के सैलून मे घूस गया वहाँ
सेविंग कराई और बालों मे शैम्पू करवाया ताकि नहाने जैसी फीलिंग आ सके...सैलून के
स्वामी ने इस काम के 80 रुपये लिए जो मुझे ज्यादा लगे लेकिन शायद वहाँ की
अभिजात्यता की वजह से मै रेट के बारे पूछ ही नही पाया...फिर संतोष करके वहाँ से
निकल पडा।
नेहरु गार्डन मे एक और फेसबुकिया शिष्या से मुलाकात हुई नाम था
एम आई एस सरकार ( मोनू शेर ) इस फेसबुकिया आईडी थी लेकिन इस सांस्कारिक शिष्या का
असल नाम मोनू था... उसको वहीं पहूंचने का आदेश दे दिया गया और मै खुद भी नेहरु गार्डन
मे एक बैंच पर पसर गया थोडी देर बाद वह अपने एक साथी के पहूंच गई...फेसबुक के
कलेवर,तेवर,फ्लेवर के लिहाज़ से मै उनको थोडा दबंग किस्म की लडकी सोच रहा था लेकिन
वो दबंग तो नजर आई लेकिन खालिश वेशभूषा के लिहाज़ से बाकि ऐसा लगा अपने किसी कालिज़
स्टूडेंट से मिल रहा हूँ।
मोनू से काफी बातें हुई कुछ निजि किस्म की कुछ औपचारिक और
दूनियादारी की हमने एक साथ पार्क के कई चक्कर लगाये मैने जैनिज़्म के बारें अपनी
जिज्ञासाएं शांत करता रहा है और वो बताती रही वैसे वो लडकी मुझे सांसारिक गुरु
कहती है लेकिन आज मै जिज्ञासु की भूमिका में था...खैर ! सारांश: यही कहूंगा कि
मोनू में एक पवित्र ऊर्जा है लेकिन उसकी दिशा तय करने मे अभी उसे काफी मेहनत करनी
होगी...वो लीक से हटकर चलना चाहती है लेकिन अभी उसकी बातों में एक ‘बचपन’
है...बचपना नही है ये एक बडी बात है लेकिन अपने आप को समेटते हुए चलना तथा खुद की
शर्तो पर जीने की कोशिस करने के लिए जिस प्रकार की साधना की जरुरत होती है वह अभी
उसे सीखना बाकि इसे मै एक उम्र के तकाजे के साथ भी जोडकर देख रहा हूँ अभी शायद 24
साल की ही है सो अभी दूनिया देखनी बाकी है साथ ही दूनियादारी के प्रपंच भी...।
मोनू से मिलकर अच्छा लगा हमने साथ ही लंच किया उसके बाद मैने
उससे विदाई ली...अब मै अजमेर की बस मे सवार हो गया इसके बाद मेरी निजी आवारागर्दी
एक पारिवारिक यात्रा मे तब्दील हो गई क्योंकि अजमेर में मुझे अपने बडे भाई के पास
जाना था।
इसके बाद मै तीन रात अजमेर मे रुका वहाँ भाई और उसके परिवार के
साथ अच्छा समय बिताया..अजमेर मे आनासागर झील के टापू पर एक दिन अकेले धूप सेंकते
बिताया...एक दिन पुष्कर गया जहाँ पंडो का आतंक देखा खुद को फ्रेंच कट दाढी की वजह
से क्रिश्चिन बता कर जान बचाई...। क्या करें धार्मिक स्थानों पर जाने के अपने खतरे
तो रहते ही है हरिद्वार मे रहता हूँ इसलिए ये सब तमाशे जानता भी हूँ।
31 दिसम्बर को वापसी थी रात मे 8 बजे ट्रेन थी मै आधे घंटे
पहले पहूंच गया था घर से परांठे सब्जी भी मिल गये थे बडे भाई कोच में ही मुझसे
मिलने आएं क्योंकि दिन भर से वो ओ.टी. में ही थें...एक विदाई युक्त मुलाकत के बाद
मैने अपनी बर्थ पर अपना बिस्तर जमा लिया लिम्का के संग जादुई क्षणों का आनंद लिया,
भोजन किया, एकाध मित्रों से गपियाया और फिर लम्बी तानकर सो गया जब आंख खुली तो
अपने प्रदेश में था और 2013 आ चुका था...कहने का एक और नया साल और उसी नए साल मे
ट्रेन में लेटा हुआ एक पुराना आदमी।
उफ्फ....बेहद लम्बी पोस्ट हो गई है इसके लिए क्षमा चाहूंगा अब
मै भी थक गया हूँ यदि कुछ शेष रह गया हो तो आदतन यही कहूंगा.....
शेष फिर
डॉ.अजीत
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