जीवन विरोधाभासों में जीना अब आदत बनता
जा रहा है। कुछ अजीब से इत्तेफाक आपके साथ शेयर कर रहा हूँ जो अपने आप मे विरोधी
प्रतीत होते है लेकिन अपने जेहन मे सह अस्तित्व की अवधारणा के साथ बने हुए है
मसलन:
- मै पीएचडी
मनोविज्ञान मे हूँ और पिछले छ: सालों से मनोविज्ञान का अध्यापन कर रहा हूँ
लेकिन अभी तक खुद को बतौर शिक्षक स्वीकार नही कर पाया आज भी दिलचस्पी के
लिहाज़ से कविता,साहित्य,पत्रकारिता दिल औ’ जेहन के सबसे करीब है...मनोविज्ञान
के उपचारात्मक पक्ष मे गहरी दिलचस्पी है आज भी लगता है कि यदि अध्यापक ही
बनना है तो साहित्य/पत्रकारिता क्यों न पढाया जाएं मनोविज्ञान जीने और समझने
का विज्ञान/कला है इसका टीचर बननें मे दिल नही लगता है।
- लगभग नास्तिक हूँ
लेकिन ज्योतिष,तंत्र में गहरी अभिरुचि है और ज्योतिष को विज्ञान सम्मत भी
मानता हूँ स्वांत सुखाए भाव से मित्र/परिचितों की कुंडलियाँ भी बांचता हूँ
लेकिन गैर पेशेवर ढंग से नही, एक मित्र बहुत दिन से अपने पुत्र की कुंडली
बनाने के लिए जोर दे रहे है लेकिन जब तक दिल नही करेगा मै देखूंगा भी नही..।
- गजल पढना और
सुनना अपना ऑल टाईम फेवरेट काम है लेकिन इसके साथ-साथ मुझे कभी कभी पंजाबी
पॉप और भावपूर्ण नये फिल्मी गीत सुनना भी अच्छा लगता है सबसे बडा विरोधाभास
तो यह है कि इन सबके के साथ मुझे अपने दोआब क्षेत्र के लोकगीत रागणी से बेहद
अनुराग है, है न अजीब सा इत्तेफाक की एक तरफ आप अदब की दूनिया मे गजल सुनते
है दूसरी तरफ ठेठ देहाती लोकगीत।
- पेशे से विश्वविद्यालय का अध्यापक हूँ लेकिन
सभी दोस्त पत्रकार/कवि/लेखक है अपने विषय के अकादमिक लोगो से मुझे एक खास
किस्म की चिढ है।
- शहर के दोस्तों/परिचितों से दिल भर गया है आज
भी गांव का एक दोस्त अपने दिल के बेहद करीब है।
- लोग-बाग संबधो का विस्तार चाहते है और मै खुद
मे सिमटना चाहता हूँ।
और भी बहुत से विरोधाभास है जिनका अगर जिक्र करुंगा तो पोस्ट
बहुत लम्बी हो जायेगी...
शेष फिर
very good Ajeet. Finally I got to read your writing
ReplyDeleteafter some time .Best of luck. Keep at it
Jitendra Kumar
अच्छा विरोधाभास है :D
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