ज़िन्दगी के लगभग एक दशकीय उतार-चढाव भरे सफर में जिसमें मीठी यादों को बहाने से याद करना पडा हो और रिश्तों के बुनावट मे अपने वजूद को बचाए रखने की जद्दोजहद के साथ मिज़ाज अक्सर कडवा होता गया हो...ऐसे तमाम संघर्षो,चुनौतियों,रिक्तता और तिरस्कार को साक्षी भाव से स्वीकार मानकर आज एक छोटी सी उपलब्धि आपके साथ बांट रहा हूँ।
जनाब मसला यह है कि एक पत्रकार मित्र डॉ.सुशील उपाध्याय जी की प्ररेणा,मेरी अल्पज्ञता में भी संभावना के दर्शन और बिना शर्त के प्रेम ने मुझे एक कोशिस मे शामिल होने का हौसला दिया...आध्यात्मिक शिक्षक और यायावर ध्यानी मुकेश जी नें संबल देकर मुझे उस मोड तक जाने का ज़ज्बा दिया और इन सबके बीच पत्नि के उलाहने,मेरे ज्ञान पर संदेह और शुभचिंताओं के सामूहिक बल पर मैने यह दुस्साहस किया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) दिसम्बर,2010 में मै शामिल हुआ और किसी खानदानी राज़ की तरह इस बात को सभी से छुपाए रखने की चालाकी भी की जिसकी एकमात्र वजह खुद पर कम यकीन ही था।
...और आज शाम इसका परिणाम आ गया है सभी के सामूहिक बल से और अपनी कमअक्ली से मैने यह नेट की परीक्षा जनसंचार(मॉस कम्यूनिकेशन) में पास कर ली है वो भी अपने पहले प्रयास मे ही।
शाम को कुछ खास मित्रों को इसकी सूचना फोन से दे दी गई है...व्यक्तिगत तौर पर यह बात मेरे लिए एक बडी उमस भरी दुपहरी मे किसी बुढे बरगद ने नीचे सुस्तानें जैसी बात है शायद अब यात्रा इसी दिशा मे शुरु हो....।
किसी किताबी ज्ञान के बजाए पत्रकार मित्रों की सोहबत...ब्लॉग,न्यू मीडिया से जुडाव और सुबह उठतें ही दो अखबारों की खबरों की कटेंट से लेकर ले आउट तक की तुलना करने के चस्के नें मेरी इस परीक्षा को पास करनें मे बडी मदद की है तो भईया मेरा एक्ज़ाम सीक्रेट भी बस यही है।
मुझमे विश्वास प्रकट करने वाले मित्रों के प्रति मे कृतज्ञता प्रकट करता हूँ और उन सभी शुभचिंतको का भी आभार जिन्होनें मुझे कम गंभीरता से लिया तभी शायद में इस तरफ थोडा सा गंभीर हो पाया।डॉ.अजीत
bahut khoob.... klm ke dhani hai sir aap....
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