जब से 2011 शुरु हुआ है तब से अपनी कोई गालबजाई प्रकाशित नही हुई ऐसा नही है कि पिछले कुछ दिनों से मै निर्विचार जी रहा हूँ बल्कि कुछ ज्यादा ही क्रांतिकारी रुप से विचारशील हूँ लेकिन आजकल कुछ लिखने का मन नही होता है आज अनायास ही ये पोस्ट लिख रहा हूँ जब यह ब्लाग लिखना शुरु किया था तब यह खुद से वादा किया था कि मैं यहाँ रोज़ाना कुछ न कुछ जरुर लिखा करुंगा बहुत दिनों तक मैने अपना वादा निभाया लेकिन फिर मेरा हौसला जवाब दे गया। मेरी यह आदत भी रही है कि मै जितनी तत्परता से कोई काम शुरु करता हूँ उससे उतनी ही जल्दी मोहभंग भी हो जाता है। मेरी विस्तार मे जीने की आदत है आपने देखा भी होगा कि जब भी लिखा है तफसील से लिखा है जबकि मेरे एक अभिन्न मित्र के अनुसार ब्लाग की मूल आत्मा संक्षप्तिकरण ही हैं,मै भी उनसे अक्षरश: सहमत हूँ...काहे को लम्बा चिट्ठा लिखना अपना दुखडा रोने से फायदा भी कुछ नही है किसी को इससे कोई फर्क नही पडता कि आप क्या भोग रहें है और न ही जीवन की आपधापी मे किसी के पास इतना वक्त है कि वो आपके विधवा विलाप मे शामिल हो सके।
बहरहाल, ये सब तो अपनी जगह है नया साल बहुत से लोगो के लिए नई उम्मीदें लेकर आया है अपने लिए तो बस कैलेंडर बदल जायेगा...वही पुराने लोग पुराने किस्से...। मेरे लिए 2011 का बस इतना महत्व है कि मै इस साल अपना चोला बदलने की सोच रहा हूँ बदल पाउंगा या नही इसका पता नही लेकिन इरादा है कि इस मास्टरी के लबादे को उतार कर फैंक दूँ और अपने जेहन की बैचेनी खत्म करने के लिए कुछ ऐसा करुँ जिससे बिना मलाल के जी सकूँ यदि यह बदलाव आया तो कई अर्थों मे नया होगा और अप्रत्याशित भी क्योंकि इस बार मै ‘आमूलचूल’ परिवर्तन के मूड मे हूँ।
एक नई दूनिया...और एक नये जिन्दगी एक पुरानी पहचान के साथ फिर इस तथाकथित बौद्दिक और पढी लिखी दूनिया से मेरा कोई ताल्लुक नही रहेगा और मै अपने डाक्टर(पी.एच.डी.) के विशेषण और इसके औपचारिक शिष्टाचार से भी मुक्ति पा लूंगा साथ उन सभी भद्र शिक्षाविदो,पत्रकारों और पढे लिखे लोगो से भी जिनसे मेरा औपचारिक या आत्मीय किस्म का परिचय है तब मै बिना परिचय और बिना सम्पर्क सुत्र के जीना चाहता हूँ वह भी एकांत मे अपेक्षा रहित...। ओशो कहते है कि भूत मे देखने वाला बुढा होता है और भविष्य बुनने वाला जवान सो मै भी अतीत के कडवे-मीठे अनुभवों को विस्मृत करके जीना चाहता हूँ एक नई ज़िन्दगी जिसमे मेरे अतीत का कोई अंश न हो न मित्र,परिचत के रुप मे और न ही किसी किस्से में...।
इस बदलाव के बाद मै अपने मोबाईल पर उपलब्ध नही रहूंगा और शायद ही ई मेल का भी जवाब दे पाउं अलबत्ता किसी को इसकी जरुरत ही नही पडेगी फिर भी यदि किसी का कोई किसी किस्म का उधार मुझे पर शेष हो चाहे वो मानसिक हो या आर्थिक या किसी और वजह से मुझे तलाशना चाहे या मुझ से सम्पर्क करना चाहे वह मेरे घर के पते पर पत्र के द्वारा मुझ से सम्पर्क कर सकता है मै केवल पत्र के द्वारा ही एक्सेस किया जा सकता हूँ फोन,मोबाईल के लिए माफी चाहूंगा....मैं।
जब मै औपचारिक रुप से यह चोला बदलूंगा उससे पहले एक पोस्ट के माध्यम से सबको सूचित कर दूंगा तभी अपने घर का पता भी दूंगा।
अब अपने मित्र मनोज अनुरागी जी की पुस्तक ‘सन्यास से सन्यास तक’ के शीर्षक को उधार लेकर कहना चाहूंगा कि मेरी भी यात्रा कुछ ऐसी ही होगी और यदि संभव हुआ तो अपने कुछ संस्मण इस ब्लाग के माध्यम से आपके साथ सांझा करुंगा।
ईश्वर मेरी मदद करें!
डा.अजीत
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