आज का दिन उलझन सुलझने का रहा है राम जन्म भूमि विवाद पर बहुप्रतिक्षित हाईकोर्ट का फैसला आ गया है, हिन्दूओं मे जश्न का माहौल है लोग सुबह से टी.वी. से चिपके बैठे थे मानो भारत पाकिस्तान का मैच चल रहा हो...जिज्ञासा और आशंका का होना स्वाभाविक ही है इस देश के इतिहास की एक बडी घटना है यह भी राम जन्मभूमि विवाद। मैने आज दिन भर टी वी नही देखा वैसे भी मुझे टी.वी. देखने का कोई खास शौक नही है पहले बालक चिपका रहता है पोगो और कार्टून नेटवर्क पर फिर उसके हाथ से रिमोट लेकर पत्नि सास-बहूओं के रोने धोने और शोषण कथानक के साथ अपने को जोडकर रोती हंसती हुई टी.वी. पर कब्जा जमाए रहती है मेरा नम्बर कम ही आता है और ठीक भी है मेरे पास न रसीली कथाएं है न चूटीले किस्से जिससे पत्नि का दिल बहल सके। आज से रविवार तक विश्वविद्यालय मे अवकाश है सो मै यूं ही अवधूत और औघड बना रहूंगा..मंजन से लेकर स्नान सब कुछ तीसरे पहर होगा में केवल शौच आदि की निवृत्ति को छोडकर..।
आज का दिन वैसे मेरे लिए किसी और मायने मे खास है मेरे एक बहुत ही करीबी लगोंटिए किस्म के दोस्त के यहाँ एक नया मेहमान आने की तैयारी मे है भाभी जी अस्पताल मे भर्ती है प्रसव हेतु और मै यहाँ ब्लाग लेखन कर गाल बजाई कर रहा हूं कायदे प्लस कानून से ऐसे खास मौके पर मुझे अपने उस दोस्त के साथ होना चाहिए जीवन का बडा ही भावुक क्षण होता है पिता बनना...लेकिन दरअसल बात यह है दोस्त के पास अभी बहुत से दोस्त मौजूद है दूनियादारी की पकड और खबर रखने वाले मेरी इतनी जरुरत है ही नही। कभी हमने साथ- साथ छात्र राजनीति और संपादक के नाम पत्र वाली पत्रकारिता की थी बहुत कुछ साथ किया और जीया है मै लडिया कर उसे कभी नेता जी कहा करता था ठीक उतने सम्मान के साथ जितना आजाद हिन्द फौज का कोई भी सैनिक सुभाषचन्द्र बोस को नेता जी कहता होगा या कोई पक्का समाजवादी मुलायम सिंह यादव को जिस भाव के साथ नेताजी कहता है मेरे भी भाव वैसे ही हुआ करते थे उसे भी केवल मेरे ही मुख से नेताजी सुनना अच्छा लगता था अब आप हमारे प्रेम का अन्दाजा लगा सकते है।
वक्त बदला,मायने बदले और सम्बन्धों की परिभाषाएं बदल गई है आज मै उसके लिए उसका ज़िगरी दोस्त अजीत डाक्टर साहब बन गया हूँ और मेरे लिए नेता जी से योगी जी मतलब उनका नाम योगेश योगी है। शहर के जाने माने पत्रकार है इसी शहर मे ससुराल भी है रसूखदार लोगो मे ऊठना-बैठना है। उन्होनें कभी मुझे हीन समझा हो ऐसा भी नही है लेकिन पता ही नही चला कब वो एक समानांतर लकीर हमारे सम्बन्धों मे खीच गई जिसे दूनियादारी की भाषा मे औपचारिकता कहते है कभी बहुत आत्मीय हम कुछ भी निजी नही था हमारा सब कुछ सांझा था।
कभी इस शहर मे मेरी वजह वे आयें थे आज मेरी इस शहर मे होने की एक वजह वे है अभी-अभी फोन करके हालचाल जाना है दिन मे एकाध बार एसएमएस बाजी भी हुई हालांकि मुझे औपचारिक होना अच्छा नही लगता और न ही ऐसे भाव होते है लेकिन पता नही अब अधिकार नही रहा संदेश ऐसा ही आता-जाता है कि पारस्परिक औपचारिक हो गये है हम..।
एक टीस दिल मे अब भी हो रही है जब मैने उनसे पूछा कि कौन-कौन है साथ मे तो उन्होनें वे सब नाम गिनाए जो मेरे बाद आते है उसके जीवन मे लेकिन आज ऐसे मौके पर मुझ से पहले खडे है उसके साथ मुझे यह सोचकर आत्मग्लानि भी हो रही है और दुख भी...।
भले ही आज मै वहाँ नही हूं लेकिन दिन मे पता नही कितनी बार ख्याल आया अस्पताल के बारे मे सोचा चलूं ....लेकिन कदम खुद बखुद ठिठक गये अभी भी लग रहा है आज कि रात मुझे योगेश के साथ होना चाहिए अपने बच्चों को छोडकर...लेकिन खाली लगने से क्या होता अब मेरे अन्दर वो हौसला नही रहा जब मै अधिकारपूर्वक योगी के घर से लेकर जीवन मे घुस जाता था।
मन भावुक हो गया...अतीत सामने आकर खडा हो जाता है बार-बार ऐसे मै तो बस ईश्वर से यही प्रार्थना कर सकता हूं कि जीवन के इस महत्वपूर्ण पलों मे भले ही मै उसके साथ शरीर से नही हूं लेकिन मन की शक्ति वही पर है और उसे वो खुशी मिले जिसके लिए उसने नौ महीने इंतजार किया है.....हो सकता है कल तक कोई खुशखबरी आ जाए। मेरा कायर मन बार बार यही प्रार्थना कर रहा है कि आने वाले मेहमान की रोशनी के साथ हमारे सम्बन्धों पर पडी वक्त की वह बेदर्द धुन्ध भी छंट जाए जिसके कारण हम करीब रह कर भी दूर हो गये है।
ईश्वर मेरी मदद करें....
शेष फिर...
डा.अजीत